आज के समय में कृषि के तरीके बदलते जा रहे हैं। पढ़े-लिखे, डिग्रीधारी युवाओं ने खेती में नए-नए प्रयोग करके क्रांति ला दी है। कम जगह तथा कम खपत में ज्यादा उत्पादन कर पा रहे हैं। यह नतीजा है सिर्फ सही मैनेजमेंट और टेक्नोलॉजी का। इसी कड़ी में 24 साल की श्रद्धा 80 भैंसों का तीन मंजिला फॉर्म चला कर एक तीर से कई निशाने वाला बेहतरीन काम कर रही है। 80 भैंसों का दूध बेचने के साथ, उनके गोबर से फर्टिलाइजर तथा बायोगैस और गैस से बिजली का उत्पादन कर रही है। तो दोस्तों! है ना कमाल का फॉर्म ? आये विस्तार से जानते हैं श्रद्धा जी से वे किस तरह इस यूनिक से फॉर्म को मैनेज कर रही है-



श्रद्धा फॉर्म मात्र 6000 स्क्वायर फीट की जगह में बना है, जिसमें 80 भैंसों से दूध तथा दूध से बनने वाले अन्य प्रोडक्ट जैसे दही, छाछ, पनीर, घी इत्यादि बनाकर भी सेल किये जाते हैं। बेहद शानदार और बेहतरीन ढंग से छोटी-छोटी बचत और उत्पादन  करके कमाया जाता है खूब। कुछ इस तरीके से डिजाइन किया गया है यह डेयरी फॉर्म...


तबेला बनाने का तरीका: 

इस तबेले को इन्होंने 3000 स्क्वायर फीट में डिजाइन किया हुआ है, जिसमें 8 फीट की ऊंचाई पर दो मंजिला लेंटर डाला हुआ है। इसी के साथ प्रत्येक माले के एंट्री गेट पर रैम्प बना है और बीच में लंबवत 4 फीट की गैलरी छोड़ी है तथा गैलरी के दोनों तरफ भैंसों के चारे की के लिए खोर बनी है। अर्थात् भैंस आमने-सामने व्यवस्थित रूप से बंधी है। गैलरी से भैंसों की खोर में चारा डालने में आसानी होती है। इसी प्रकार ऊपर का माला भी सेम पैटर्न से डेवलप किया हुआ है। यूं तो टीन की शेड डालकर भी तबेला बनाया जा सकता है, परंतु उसमें गर्मियों में बहुत गर्मी और सर्दियों में बहुत सर्दी रहती है, जिससे भैंसों को अनुकूल वातावरण नहीं मिल पाता और उन्हें रहने में काफी दिक्कतें आती है। भैंसे अधिक होने के कारण उन्हें बार-बार पेड़ की छाव में बांधना भी संभव नहीं है, इसीलिए उन्होंने एक बार ही मजबूत और टिकाऊ ढंग से लेंटर डालकर तबेले को डेवलप किया है। ‌




भैंसों के वेस्टेज से बिजली बनाने की विधि:

इसके लिए इन्होंने दोनों मालों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थ जिसमें भैंस के गोबर, मूत्र और धुलने से प्राप्त हुए पानी को एक बड़े से टैंक में स्टोर कर लेते हैं। इसमें धुलने में प्रयोग हुआ पानी तथा मूत्र को पाइप द्वारा टैंक तक लाया जाता है तथा गोबर को अलग से डालना पड़ता है। इसके बाद यह सभी पदार्थ 30,000 लीटर क्षमता वाले दो डाइजेस्टर में प्रवाहित होता है, जिसमें मोटे-मोटे पाइप नोज्ल लगे होते हैं, जिन में गैस डाइजेस्टर से रिलीज होकर आती है।



गैस की नमी को थोड़ा कम करके, पाइपों के माध्यम से ऊपर छत पर बने बायोगैस स्टोरेज बैलून में गैस को स्टोर कर लेते हैं। जिसका उपयोग बाद में विद्युत बनाने में किया जाता है। गैस बनने के बाद बचे अपशिष्ट पदार्थ का ऑर्गेनिक खाद्य के रूप में प्रयोग हो जाता है। यह शानदार सा बायोगैस प्लांट बनाने में तकरीबन 10 से 12 लाख तक का खर्च आ जाता है। जो 10 से 15 साल तक चल सकता है। 



चारा व्यवस्था:

जगह कम होने की वजह से यह आधे चारे को बाहर से मांगते हैं तथा आधे को अपने फार्म पर ही बनाते हैं। हरा चारा काटने के लिए बड़ा इलेक्ट्रिक ऑटोमेटिक गंडासा लगा हुआ है, जिससे यह अपने लिए तथा बेचने के लिए भी चारा काटते हैं। इस तरह से यह भैंसों को विभिन्न प्रकार का हरा चारा काटकर खिलाना ज्यादा अच्छा मानते हैं। इसके अलावा पशु खाद्य में खल-चूरी,चौकर आदि का प्रयोग भी समय-समय पर किया जाता है, क्योंकि जितना अच्छा भैसें चारा खायेगी उतना ही अच्छा उनसे दूध प्राप्त होगा।



श्रद्धा जी महिला होकर इतने बड़े फॉर्म को इतनी कुशलता से चला रही है यह वास्तव एक मिशाल है। इसमें उनके पिताजी, भाई तथा ससुराल वालों का भी सहयोग है। जिसमें सभी के अलग-अलग कार्य बंटे हुए हैं, जैसे उनके पिता भैंसों की ट्रेडिंग आदि पर कार्य करते हैं और भाई चारे और ट्रीटमेंट से संबंधित जिम्मेदारी संभाले हुए हैं। तथा श्रद्धा जी खुद बायोगैस आदि टेक्निकल कार्यों को मैनेज करती है। 


10 भैंसों से शुरुआत करने की प्रक्रिया:

यदि छोटे तौर पर फॉर्म शुरू करने के लिए 10 भैंसों से शुरुआत की जाए, तो इसमें करीब 10 से 12 लाख तक की बढ़िया दुधारू किस्म की भैंसे आएगी तथा प्रति भैंस पर ₹50,000 शेडिंग का खर्च मान कर चलें। इस प्रकार चारे तथा अन्य सामग्री के खर्चों के साथ करीब 18 से 20 लाख रुपए में 10 भैंसों से यह लघु डेरी का बिजनेस शुरू किया जा सकता है। 



कमाई की बात करें तो 10 भैंसों से 100 लीटर तक दूध आसानी से प्राप्त हो जाता है। यदि दूध ₹60 प्रति लीटर की दर से भी बिके तो दिन के ₹6,000 तथा महीने के 1,80,000 रुपए तक कमाये जा सकते हैं। जिसमें ₹80,000 अतिरिक्त खर्च काट दें तो भी एक लाख रुपए की नेट बचत प्रतिमाह केवल दूध से हो जाती है। 


सावधानियां: 

किसी फ्रेशर व्यक्ति को तजुर्बे के तौर पर चार या पांच भैंसों से यह बिजनेस शुरू करना चाहिए, क्योंकि भैंस का दूध 12 महीनों इसी मात्रा में उत्पादित नहीं होता यह घटता-बढ़ता रहता है। इसे भैंसों की विशेष देखभाल द्वारा सुधारा कर, नियमित रूप से अच्छी मात्रा में दूध प्राप्त किया जा सकता है। पहले साल थोड़ा कम परंतु दूसरे साल से अच्छा मुनाफा होने लगता है। इसी के साथ भैंसों से संबंधित 90% तक का कार्य स्वयं को आना जरूरी है, वह कब हीट पर है, कब क्रॉस कराना है, कब उनका दूध निकलना बंद करना है, जैसी संबंधित बातों का यदि किसान को ज्ञान हो जाता है, तो उसे इस व्यवसाय में कभी घटा नहीं होगा। 



इस कार्य को कंटिन्यूटी तथा सभी के सहयोग के साथ किया जाए तो यह बहुत आसान और प्रॉफिटेबल बिजनेस सिद्ध होता है। क्योंकि इसमें जितना स्वयं के कार्य का रोल होगा उतनी ज्यादा बचत हो पाएगी। यदि कोई किसान भाई इनसे संपर्क करना चाहे तो इनका पता- पारनियर तालुका,अमन नगर,पुणे है। दोस्तों युवाओं से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है और वे हमारे लिए प्रेरणा स्रोत भी हो सकते हैं, जैसे की श्रद्धा जी! इसी प्रकार यदि आपको भी डेरी फार्मिंग के बारे में और अधिक जानकारी चाहिए तो हमसे संपर्क कर सकते हैं। धन्यवाद॥