भारत में कृषि और ग्रामीण जीवन भी जुगाड़ और तकनीक से भरा होता है, जहाँ संसाधनों की कमी के बावजूद लोग नवाचार के माध्यम से समस्याओं का समाधान ढूंढ लेते हैं। गोबर बायोगैस से ट्रैक्टर चलाना इसी का एक अद्भुत उदाहरण है। यह प्रक्रिया न केवल पर्यावरण के लिए फायदेमंद है, बल्कि किसानों को भी आर्थिक रूप से सशक्त बनाती है। आये जानते हैं किस प्रकार गांव के किसान इस शानदार कार्य को कर रहे हैं।
गोबर बायोगैस:
गोबर बायोगैस, मुख्यतः गाय या भैंस के गोबर से उत्पादित होती है। यह एक नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है, जिसे मेथेन (CH₄) गैस के रूप में जाना जाता है। गोबर में उपस्थित जैविक सामग्री के अपघटन के दौरान, एरोबिक और एनारोबिक बैक्टीरिया द्वारा यह गैस उत्पन्न होती है। बायोगैस का उपयोग बिजली उत्पादन, खाना पकाने और अब ट्रैक्टर चलाने के लिए भी किया जा रहा है।
बायोगैस संयंत्र:
बायोगैस के उत्पादन के लिए सबसे पहले एक वायुगतिकीय टैंक का निर्माण किया जाता है, जिसमें गोबर और पानी का मिश्रण होता है। बायोगैस संयंत्र के लिए ताजा गोबर को टैंक में इकट्ठा किया जाता है। इसमें गायों और भैंसों के गोबर का उपयोग सबसे अधिक होता है। गोबर के साथ-साथ अन्य जैविक अपशिष्ट जैसे खाद्य अपशिष्ट, फसल के अवशेष, आदि का भी उपयोग किया जा सकता है। टैंक के ऊपर एक गैस कलेक्टर स्थापित किया जाता है, जो उत्पन्न मेथेन गैस को संग्रहित करता है। गोबर को पानी के साथ मिलाकर वायुगतिकीय टैंक में रखा जाता है। यहाँ पर बैक्टीरिया गोबर को तोड़ते हैं और गैस का उत्पादन करते हैं। यह प्रक्रिया आमतौर पर 30 से 60 दिनों तक चलती है। तथा जैसे ही गैस उत्पन्न होती है, यह टैंक के ऊपर स्थित कलेक्टर में जमा होती है। यहाँ से इसे ट्रैक्टर के लिए आवश्यक मात्रा में निकाला जाता है।
ट्रैक्टर में बायोगैस का उपयोग:
ट्रैक्टर को बायोगैस से चलने के लिए इसके इंजन में भी कुछ परिवर्तन करना पड़ता है। ट्रैक्टर के पेट्रोल या डीजल इंजन को बायोगैस के अनुकूल बनाने के लिए कुछ तकनीकी संशोधन किए जाते हैं। इसमें बायोगैस के लिए अलग-अलग इन्सुलेटर्स और वायस पाइपिंग सिस्टम जोड़ते हैं। बायोगैस को इंटेक सिस्टम में इंजेक्ट किया जाता है, जहाँ यह हवा के साथ मिलकर जलती है और इसी ईंधन से ट्रैक्टर का इंजन चल जाता है।
फायदे और चुनौतियाँ:
बायोगैस उत्पादन से मीथेन का उत्सर्जन कम होता है और यह एक स्वच्छ ऊर्जा स्रोत है। किसानों को अपनी ऊर्जा की जरूरतों के लिए बाहर के स्रोतों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता।गोबर को बेकार सामग्री समझने के बजाय, इसे ऊर्जा उत्पादन में परिवर्तित किया जाता है।
इसी के साथ किसानों के बीच कुछ चुनौतियां भी आ सकती है। जैसे इस तकनीक को अपनाने में बाधाएँ हो सकती हैं। बायोगैस संयंत्रों के लिए आवश्यक उपकरणों और तकनीक की उपलब्धता कभी-कभी सीमित हो जाती है। भारत के विभिन्न हिस्सों में, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में, किसानों ने गोबर बायोगैस का उपयोग करके ट्रैक्टर चलाने का सफल प्रयोग किया है। उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश के कुछ गांवों में किसान ने गोबर बायोगैस संयंत्र स्थापित किए हैं और अपनी फसलों के लिए ट्रैक्टर को इस बायोगैस से चलाते है।
किसानों का अनुभव:
किसानों ने साझा किया है कि बायोगैस ट्रैक्टर चलाने से उनके खर्चे कम हुए हैं। इसके अलावा, वे अपने फसलों को बेहतर तरीके से प्रबंधित कर पा रहे हैं, क्योंकि उन्हें ऊर्जा की निरंतरता मिलती है।
भविष्य की संभावनाएँ:
भारत में बायोगैस पर अनुसंधान और विकास की दिशा में कई प्रयास किए जा रहे हैं। सरकार और निजी संस्थाएँ इस क्षेत्र में नए नवाचार लाने का प्रयास कर रही हैं। अगर इसे सफलतापूर्वक लागू किया जाता है, तो यह न केवल ट्रैक्टरों में, बल्कि अन्य कृषि मशीनरी में भी उपयोग किया जा सकता है। गोबर बायोगैस से ट्रैक्टर चलाना एक अद्भुत भारतीय जुगाड़ का उदाहरण है, जो न केवल पर्यावरण के प्रति जागरूकता को दर्शाता है, बल्कि किसानों की आर्थिक स्थिति को भी सुधारता है। यह प्रक्रिया न केवल संसाधनों का बेहतर उपयोग करती है, बल्कि ग्रामीण विकास की दिशा में एक ठोस कदम भी है। यदि सही दिशा में प्रयास किए जाएँ, तो यह तकनीक भारत के कृषि क्षेत्र को और भी अधिक सशक्त बना सकती है। भारत में ऐसे प्रयोगों से यह स्पष्ट होता है कि जुगाड़ की सोच और नवाचार से हम किसी भी समस्या का समाधान कर सकते हैं। गोबर बायोगैस से ट्रैक्टर चलाना इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है। कैसी लगी आपको यह जानकारी कमेंट का अवश्य बताइए तथा ऐसे ही रोचक तथ्यों के लिए जुड़े रहे "Hello Kisaan" के साथ। धन्यवाद॥ जय हिंद, जय किसान॥
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