विकास की और अग्रसर भारत में लेटेस्ट टेक्नोलॉजी से युक्त मशीनों द्वारा होते हैं ऐसे बेहतरीन कार्य, जिसके कारनामे देख आप भी दंग रह जाए। फुल ऑटोमेटिक मशीनों द्वारा एक छोटे से प्लास्टिक के टुकड़े से बन जाता हैं ऐसा बेहतरीन चश्मा जिनकी देश-विदेश तक खूब डिमांड है। इन हाइटेक कंप्यूटराइज मशीन में चश्मे का डिजाइन फीड करते हैं और दूसरी तरफ उसी आकार में कटिंग शुरू हो जाती है आये जानते हैं इस बेहतरीन सी वर्कशॉप के बारे में जहां यह शानदार कार्य हो रहा है।
चश्मे का प्लास्टिक फ्रेम बनाना:
इसमें कच्चे माल के रूप में अच्छी क्वालिटी की ट्रांसपेरेंट या रंगीन पीवीसी प्लास्टिक सीट की आवश्यकता होती है। जिसमें सबसे पहले चश्मे की डंडियों को पतली-पतली स्टिक्स के रूप में मशीन द्वारा काटा जाता है। इनके पास बेहतरीन टेक्नोलॉजी से युक्त सीएनसी मशीन है, जिसमें आवश्यक डिजाइन को पहले से ही फीड कर दिया जाता है और फिर मशीन को जॉब के रूप में प्लास्टिक का एक टुकड़ा देते हैं, जिसे मशीन दोनों ओर से होल्ड कर लेती है और ऊपर से एक कटर चलता है, जो सबसे पहले चश्मे के लेंस लगने वाले दोनों भागों को काटता है। वह कटिंग में पहले से ही इस प्रकार खांचे बनता है कि लेंस आसानी से फंस जाए। उसके बाद उस पीवीसी टुकड़े में से चश्मा के आउटसाइड डिजाइन की शेप में काटा जाता है। इस प्रकार फ्रंट रेडी हो जाता है।
चश्मे की साइड स्टिक्स बनाने की तकनीक:
पीवीसी शीट में से काटी गई उन पत्तियों को चश्मे की स्टिक्स के रूप में मोल्ड किया जाता है। पहले इन स्टिक्स को मशीन में डालकर थोड़ा गर्म करके नरम कर लेते हैं और फिर इनके बीच में एक लोहे या स्टील का तार डाला जाता है, जिससे स्टिक मजबूत और लचीली हो जाती है। मशीन में डालकर ही स्टिक को कर्व के रूप में भी मोल्ड कर लेते हैं।
लॉकिंग सिस्टम:
लेंस लगने वाले पार्ट में किनारों पर स्टिक लगाने हेतु लॉक भी सेट किया जाता है। मशीन किनारे पर प्लास्टिक को गरम करके मुलायम कर लॉक को अंदर इंसर्ट कर देती हैं। जिसमें स्टिक को पेंच के माध्यम से लॉक में कसते हैं और चश्मा तैयार हो जाता है।
चश्मे की पॉलिसिंग:
इस तैयार चश्मे में और ज्यादा शाइनिंग लाने के लिए पॉलिशिंग के तीन तरीके अपनाए जाते हैं, जिसमें सबसे पहले एक मशीन जिसमें वुडन मीडिया होता है, में बहुत सारे चश्मों के कर्वेचर को डाल देते हैं। जब वह मशीन राउंड-राउंड घूमती है तो वुडन मीडिया के घर्षण के माध्यम से चश्मे के पार्ट में घिसाई होने पर चमक उत्पन्न होती है। इसी के साथ केमिकल पेस्ट के माध्यम से भी पॉलिशिंग होती है, जिससे उनमें प्रयुक्त प्लास्टिक अधिक चिकनी और चमकदार हो जाती है।लेंस आर्मेचर स्टिक्स और पॉलिशिंग आदि हो जाने के बाद इन सभी पार्ट्स को स्क्रू के माध्यम से असेंबल कर देते हैं तथा फिर चश्मे की स्टिक को गर्म कर कानों पर रखने वाले हिस्से को थोड़ा मोड देते हैं और तब अंतिम रूप से इसकी बफिंग कर तैयार कर देते हैं।
लेंस लगाने का प्रोसेस:
रिक्वायरमेंट के अनुसार उपर्युक्त लेंस को पसंद किये गये फ्रेम के आकार में मशीन द्वारा काटा जाता है, जिसे फ्रेम में बड़ी ही आसानी से सेट कर देते हैं और बाद में स्टीक पर अपनी कंपनी का लॉगो स्क्रीन प्रिंटिंग द्वारा छापते हैं। इस प्रकार चश्मा पूर्ण रूप से बनकर तैयार हो जाता है। तो दोस्तों आपने देखा कैसे इस शानदार वर्कशॉप में चश्मे के फ्रेम और लेंस असेंबल कर बेहतरीन क्वालिटी के चश्मा तैयार किए जाते हैं। 1964 में इस्टैबलिश्ड हुई इस कंपनी को यदि कोई विजिट करना चाहे तो ये मुंबई में स्टाइल राइट ऑप्टिकल इंडस्ट्री के नाम से स्थित है। इनका मोबाइल नंबर 9892744443 है। दोस्तों कैसी लगी आपको यह जानकारी कमेंट कर अवश्य बताएं तथा ऐसे ही रोचक जानकारी के लिए जुड़े रहे "द अमेजिंग भारत" के साथ। धन्यवाद॥
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