75 वर्षीय एक ऐसा किसान जिसने फेल कर दिये बड़े-बड़े साइंटिस्ट। गोबर से निर्मित बायोगैस प्लांट तो आप सभी ने देखे होंगे परंतु इंसानी मल से भी बना रहे बिजली। इनके पास है 30 पशु जिनके गोबर से उत्पन्न बायोगैस किचन में खाना पकाया जाता है। वहीं इंसानी मल तथा बायोगैस से चारा काटने की मशीन, सबमर्सिबल तथा अन्य बिजली से चलने वाले यंत्र चलते हैं। इस बुजुर्ग किसान की प्रोग्रेसिव सोच और संघर्ष आपको चकित कर देगा। आये जानते हैं उनके द्वारा विकसित इस टेक्नोलॉजी के बारे में।
किसानी दिमाग:
कहते हैं कि वही किसान कामयाब है जो कमाने से ज्यादा बचाने पर ध्यान दें। डीग राजस्थान का यह किसान 25 बीघा भूमि पर कृषि करता है। जिसमें ये बिना खाद पर इन्वेस्ट किये उच्च उत्पादन के साथ ऑर्गेनिक फार्मिंग कर रहे हैं और साथ में 35 देसी नस्ल की गायों का भी पालन करते हैं, जिनके गोबर से बायोगैस का उत्पादन किया जाता हैं तथा बचे हुए अपशिष्ट पदार्थ का खाद के रूप में इस्तेमाल होता है और यह खाद इतना गुणकारी की इसका घोल बनाकर फसलों पर छिड़क दे तो कीट-पतंगों से भी रक्षा हो जाती है।
बायोगैस पावर प्लांट:
पशुओं के तबले के पास की भूमि पर 10 घन क्यूबिक मीटर का एक टैंक बनाया हुआ है, जिसमें पशुओं का गोबर डालते है तथा पास में ही बने पानी के टैंक से पर्याप्त मात्रा में पानी डाला जाता हैं। गोबर को घोलने के लिए इन्होंने साइकिल के पेंडल का इस्तेमाल करते हुए नीचे टैंक की तली को छूता हुआ एक प्रकार का पंखा बना रखा है। जो पेंडल घूमने पर चलता है और नीचे तली तक गोबर को घुमा-घुमा कर मिला देता है।
इस टैंक में एक वॉल लगा है, जो दूसरे बंद टैंक से अटैच है। इस वॉल्व को खोलने पर घुला हुआ गोबर उसमें चला जाता है और गैस बनने लगती है इस बंद टैंक में मोटे पाइप लगे हैं, जिनके माध्यम से गैस बाहर आती है और उस गैस को आवश्यकता अनुसार किचन तथा अन्य ऊर्जा बनाने के लिए प्रयोग करते हैं।
बायोगैस से चलने वाला चूल्हा भी मोटे सुराखों वाला होता है, जिनसे गैस अच्छी मात्रा में बाहर निकले और लगातार चूल्हा जलता रहे।
इंसानी मल से बिजली:
सुनने में थोड़ा अजीब लगता है, लेकिन इस किसान ने ऐसा वास्तव में कर रखा है। इन्होंने शौचालय के टैंक को पूर्ण रूप से बंद किया हुआ है, जिससे बनने वाली गैस को पाइप के माध्यम से बाहर निकालते हैं तथा वह बायोगैस की तरह ही इस्तेमाल होती है। वह इसको डीजल के रूप में प्रयोग कर चारा काटने की या अन्य मशीन चलाने का कार्य करते हैं। अल्टरनेटर करंट बनाता है, जिससे आटा चक्की भी चल जाती है। दरअसल मशीन में डीजल और उत्पन्न बायोगैस दोनों होती है; परंतु डीजल की खपत मात्र 5 से 10 परसेंट होती है और 95% बायोगैस के प्रयोग से मशीन चलती है।
इसमें से गैस निकालने के साथ-साथ एक प्रकार का पानी भी निकलता है, जिसको खेतों में खाद के रूप में प्रयोग करते हैं तथा ये बहुत ही लाभदायक है। अन्य इलेक्ट्रिक सामंजस्य के लिए इंजन को ठंडा करने हेतु पास में एक वाटर टैंक का निर्माण भी किया हुआ है। इस गैस में से किसी भी प्रकार की कोई दुर्गंध नहीं आती है। अतः इन्होंने इसको सबसे बड़ा स्वच्छता अभियान बताया है।तो दोस्तों आपने देखा कैसे एक आत्मनिर्भर किसान अपनी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति पशुपालन और कृषि द्वारा कर रहें है। यह अपनी इस टेक्नोलॉजी का प्रचार विभिन्न सेमिनार में जाकर भी करते हैं, जिस कारण इनका बहुत सारे अवार्डों से भी नवाजा जा चुका है। कैसी लगी आपको यह जानकारी कमेंट कर अवश्य बताएं तथा ऐसे ही और जानकारी के लिए जुड़े रहे "द अमेजिंग भारत" के साथ। धन्यवाद॥
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