खजूर की खेती, मोटा मुनाफा


सब्र का फल मीठा होता है इस कहावत को खजूर की खेती ने सिद्ध कर दिखाया है। खजूर का उत्पादन पेड़ लगाने के 5 साल बाद शुरू हो जाता है; परंतु जब होता है तो किसान को तरक्की की तरफ लेकर जाता है। एक पेड़ से ही 50 हजार तक की कमाई सही तरीके, जानकारी और तजुर्बे के बलबूते की जा सकती है। आये जानते हैं संपूर्ण जानकारी हनुमानगढ़ राजस्थान के विजय जी से, जो करीब 14 साल से इस खेती को 2 हैकटेयर क्षेत्रफल पर कर रहे हैं।

खजूर की वैरायटी और प्रोडक्शन:
इस 2 हेक्टेयर क्षेत्रफल में इन्होंने खजूर की चार किस्मों के करीब 312 पौधे लगाए हुए हैं। जिनसे 1 वर्ष में करीब 300 कुंतल तक फल प्राप्त कर सकते है। इनके पास लगी खजूर की मुख्य किस्मों में खालसा, खूनेजी, मेड़जूल तथा जाहीदी है।

यदि उत्पादन की बात करें तो प्रति पेड़ से करीब 1 से 1.5 कुंटल तक फल का उत्पादन हो रहा है। बाकी उत्पादन वैरायटी पर भी निर्भर करता है। जैसे ब्राई और खनूजी किस्म फ्रेश फ्रूट के तौर पर प्रयोग की जाती है। मेड़जूल और खलास किस्मों पर अन्य प्रोसेस लागू कर मार्केट में अधिक दिनों तक यूज होती है। यदि फ्रेश फ्रूट की बात करें तो वह करीब 3 कुंतल तक निकल जाता है। क्योंकि यह अपने इस फॉर्म पर पूर्णतया जैविक खेती करते हैं, फर्टिलाइजर का अतिरिक्त प्रयोग नहीं करते।

इन्हीं पेड़ों से इनके पास 4 से 5 टन के करीब छुआरे 2 से 3 टन पिंड खजूर प्रति सीजन तैयार हो जाते हैं। दरअसल खजूर की निश्चित किस्म से ही अन्य उत्पाद बनाए जा सकते हैं। जैसे ब्राई किस्म से पिंड नहीं बनाया जा सकते हैं, जबकि खानुची किस्म से बनाये जा सकते है। खलास किस्म से भी अच्छी क्वालिटी के पिंड खजूर बनाए जा सकते हैं; परंतु मेडजौल वैरायटी से बने पिंड खजूर सबसे अच्छे माने जाते हैं। यदि राजस्थान या पूरे भारत में ही प्रचलित किस्मों की बात करें ब्राई पहले नंबर पर तथा खनूजी दूसरे नंबर पर आती है।

खजूर की खेती करने का तरीका:
खजूर के आमतौर पर दो प्रकार के पौधे होते हैं। जिसमें पहले टिशूएबल प्रकार का पौधा होता है, जो नर्सरी में मिलता है तथा दूसरे सकर्स द्वारा उगाए जाते हैं। खजूर के एक पेड़ से उसके पूरे जीवन काल में 15 से 20 सकर्स प्राप्त होते हैं। यह पौधे के रोपण के रूप में शुरू के 10 से 15 वर्ष की उम्र तक पैदा होते हैं। पूरे भारत में राष्ट्रीय स्तर पर एक अतुल्य नामक कंपनी खजूर की खेती के लिए कार्य कर रही है, जो इसके बीज या पौध भी वितरित करती है। खजूर के फल का उत्पादन फीमेल प्लांट पर होता है, जिसके लिए 6 से 7% मेल प्लांट रखने आवश्यक हैं, जिनका हाथों के द्वारा ही पोलिनेशन कराया जाता है।

इस फसल को उगाने का सबसे उपयुक्त महीना अगस्त व सितंबर का है तथा इनका रोपण 8 मीटर के अंतर पर करना चाहिए।
पेड रोपित करते समय पहले ही दो से तीन फीट का गड्ढा खोदकर उसमें फर्टिगेशन डीएपी, सुपर फास्फेट, जिंक, गोबर, रेत आदि डालकर एकदम उपजाऊ मिट्टी बनाई जानी चाहिए तथा उसमें पौधे का रोपण करें।
पालीनेट करने का तरीका:
फीमेल प्लांट का बंच खुल जाने के 38 घंटे के अंदर पोलिनेट करना होता है। इसके लिए फीमेल प्लांट के बंच के छिलके उतार कर उसे पर मेल पाउडर लगाया जाता है और फिर उसे प्लास्टिक की बोतल या पन्नी से ढक देते हैं, ताकि मधुमक्खियां पोलन को लेकर ना जा पाए।

पौधे का मूल्य:
खजूर के पौधे का मूल्य थोड़ा महंगा होता है जो 2 से 3 हजार तक की लागत में तैयार होता है, इसलिए इसे अमीर किसानों की फसल भी कहा जाता है। परंतु सरकार इस खेती को करने के लिए सब्सिडी भी देती है। सरकारी संस्थानों से यह पौधा को लगाने में 1600 से 1800 रुपए तक खर्च आता है तथा सब्सिडी मिलने के उपरांत मात्र ₹600 से 700 तक इसका मूल्य पड़ता है।
डॉका और पिंड खजूर उत्पादन में अंतर:
खजूर की थोड़ी कच्ची फसल को डॉका स्टेज कहते हैं, जिसमें खजूर का फल चिपचिपा नहीं हुआ होता। दरअसल यह खेती हर जगह नहीं की जा सकती इसके लिए एक निश्चित जलवायु की जरूरत होती है। अर्थात् यह ड्राई एरिया में ही होती है, अधिक वर्षा होने वाले क्षेत्र में इसका फल खराब हो जाता है। इसलिए खजूर की फसल को डॉका स्टेज में ही काट लेते हैं, जिससे उस पर होने वाली वर्षा का ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ता और इस प्रकार पूरे भारत में कहीं भी इस खेती को सफल रूप से किया जा सकता है।

डॉके से पिंड खजूर बनाने की विधि:
खजूर की फसल के लिए जैसलमेर और बाड़मेर के क्षेत्र की शुष्क जलवायु सबसे उपयुक्त बताई है। यहां से उगने वाले खजूर से पिंड खजूर बनाए जाते हैं। सबसे पहले पेड़ पर लगे अधपके खजूर को तोड़ लिया जाता है, जिसे खजूर की डॉक स्टेज कहते हैं। फिर उसे तीन-चार दिन ड्रायर के अंदर रखकर छोड़ देते हैं, जहां वह एकदम ड्राई और पक कर पिंड खजूर का रूप ले लेता है।

खजूर की मार्केटिंग:
खजूर की खेती की मार्केटिंग के लिए सबसे पहले इनको बड़े शहरों की मंडियों के व्यापारियों से संपर्क करना पड़ा, अपनी फसल उन्हें दिखाई तथा थोड़ी मशक्कत के बाद उनका व्यापारियों से मेलजोल हो गया तथा फिर इनकी सप्लाई अच्छी मात्रा में होने लगी। इसी के साथ कुछ व्यापारी उनके इस फार्म हाउस पर आकर भी खजूर खरीद कर ले जाते हैं।

खेती में चुनौतियां:
•खजूर की खेती करने के लिए सबसे बड़ी चुनौती तो धैर्य पूर्वक 5 साल तक इंतजार करना ही है क्योंकि उसका पेड़ लगाने के 5 साल बाद इस पर फल आना शुरू होता है।
•दूसरा इसमें हाथों से किए गए कार्य की ज्यादा मेहनत है क्योंकि इसमें पॉलिनेशन हाथों द्वारा करना होता है वह किसी मधुमक्खी या अन्य कीटों के द्वारा नहीं होता।
•सीड लगाकर तैयार पौधा अधिक भरोसे का नहीं होता क्योंकि पौधे के मेल या फीमेल निकालने की पहचान 2 से 3 साल बाद होती है। इसलिए सकर्स द्वारा पौधे को आरोपित करना अधिक विश्वसनीय माना जाता है।
•सिंचाई की बात करें तो पहली सिंचाई पराग निकालने के बाद करें तथा फल निकालने के बाद नियमित सिंचाई जरूरी है। गर्मियों में 10 से 15 दिन के अंतराल पर करते हैं तथा सर्दियों में 30 से 40 दिन के अंतराल पर।
•प्रमुख रोगों में दीमक लग जाना, छोटे मुंह वाला पतंगा, सफेद तथा लाल कीट आदि रोग पेड़ पर लग जाते हैं, जिनकी रोकथाम कुछ पेस्टिसाइड्स का प्रयोग कर की जाती है।

विजय जी कि यह सोच उन्हें अन्य किसानों से अलग करती है, उन्होंने शुरू से ही कृषि के क्षेत्र में कुछ अन्य तथा नया उत्पादन करने की ठान ली थी, जिस मजबूत इच्छा के बल पर वह आज इस मुकाम पर आ पहुंचे हैं। खेती करने से पूर्व इन्होंने भी अन्य स्थानों पर पहले से ही हो रही इस खेती के बारे में वहां जाकर जानकारी प्राप्त की।
दोस्तों खजूर के बारे में आज बहुत कुछ जानने को मिला। खजूर इस धरती का सबसे पुराना वृक्ष है, जो कैल्शियम, शुगर, आयरन और पोटेशियम का उच्च स्रोत है। यह कई सामाजिक और धार्मिक त्योहारों में भी प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा यह स्वास्थ्य लाभ जैसे कब्ज से राहत, हृदय रोग, दस्तों का नियंत्रिण और गर्भावस्था में सहायक होता है। इसकी चटनी, अचार, जैम, जूस तथा अन्य बेकरी उत्पाद के रूप में प्रयोग किया जाता है। आपको कैसी लगी यह जानकारी कमेंट पर अवश्य बताएं तथा अन्य जानकारी के लिए जुड़े रहें "Hello Kisaan" के साथ। धन्यवाद ॥ जय किसान॥
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