वृक्षों की खेती कर कमा रहे करोड़ों, पारंपरिक खेती से अधिक मुनाफा

22 Aug 2024 | NA
वृक्षों की खेती कर कमा रहे करोड़ों, पारंपरिक खेती से अधिक मुनाफा

दोस्तों लकड़ी की मांग सदाबहार है और यह हमेशा बनी रहेगी। यूकेलिप्टस की सफेदा नामक किस्म का बाजार बल्ली से लेकर पेपर तक फैला है। इसी के साथ पॉपुलर की लकड़ी का भी बेहद अनोखे ढंग से प्रयोग किया जाता है। इन बड़े-बड़े वृक्षों की पौध को किस प्रकार विकसित किया जाता है? एक एकड़ में कितने पेड़ होते हैं? किस तरह से लगेंगे ? कौन-कौन सी वेराइटी होती है? इसकी पूरी आर्थिक व्यवस्था तथा बाजार में मांग क्या है? इन सभी प्रश्नों का जवाब हम जानेंगे सहारनपुर स्टार पेपर मील के जनरल मैनेजर पीके गर्ग जी से।

वृक्षों की खेती कर कमा रहे करोड़ों, पारंपरिक खेती से अधिक मुनाफा_3839


सहारनपुर में स्थित इनकी यह फैक्ट्री सन् 1938 से, लकड़ी से कागज बना रही है। इन्होंने अपने फार्म में यूकेलिपस्टिक के 50 लाख से अधिक वृक्ष तथा बहुत ही उच्च किस्म के क्लोन डेवलप किए हुए हैं, जिन्हें ये किसानों को वितरित कर उनका सहयोग भी कर रहे हैं। आमतौर पर यूकेलिप्टस, पॉपुलर और बंबू की लकडियां किसानों से खरीदते भी है। पौध तैयार होने वाली नर्सरी तीन हेक्टेयर क्षेत्रफल भूमि में तथा वृक्षारोपण 10 हैकटेयर की विशाल भूमि क्षेत्रफल पर फैला है। यूकेलिप्टस की वैरायटी में SPM-405, SPM-23 समेत करीब 10 किस्में मौजूद है।

वृक्षों की खेती कर कमा रहे करोड़ों, पारंपरिक खेती से अधिक मुनाफा_3839


यूकेलिप्टस पौध बनाने की प्रक्रिया: 

एक प्रकार के ग्रीन हाउस में सिलेक्टेड वैरायटी का मदर प्लांट उगाया गया है। इसके विभिन्न बेड 15 फीट लंबे तथा 8 फीट चौड़े बने हैं। इसमें पेड़ों के बीच की दूरी का अंतर भी एक-एक फिट है। एक मदर प्लांट से करीब 15 टहनियों की कटिंग करते हैं तथा एक कटिंग में से चार कलम निकलेगी और यह कटिंग प्रोसेस 1 साल में आठ बार दोहराते हैं। इस प्रकार एक मदर प्लांट से 1 साल में लगभग 500 पौधे तैयार हो जाते हैं।


वृक्षों की खेती कर कमा रहे करोड़ों, पारंपरिक खेती से अधिक मुनाफा_3839


इन टहनियों के पत्तों को एक स्क्वायर सेंटीमीटर छोड़कर काट देते हैं तथा 4 से 5 सेमी लंबी कलम बना लेते हैं। 

वृक्षों की खेती कर कमा रहे करोड़ों, पारंपरिक खेती से अधिक मुनाफा_3839


इन सभी कलमों को एक सफेद रंग के साफ कपड़े पर रख लेते हैं और उस कपड़े को एक बार सिस्टमिक फंगीसाइड अर्थात् कवकनाशी में डुबोकर तथा दूसरी बार फ्रेश वाटर में डुबोकर ट्रीटमेंट किया जाता है।


वृक्षों की खेती कर कमा रहे करोड़ों, पारंपरिक खेती से अधिक मुनाफा_3839


इसके उपरांत इन कलम पर रूटिंग हार्मोन लगाकर पौधे लगाने वाली ट्रे, जिसमें कोको पीस पाउडर भरा होता है में रोपित कर देते हैं। इस प्रकार एक ट्रे में 60 पौधे लग जाते हैं। जिन्हें एक ग्रीन हाउस चेंबर में शिफ्ट कर देते हैं, जहां पर आर्टिफिशियल टेंपरेचर क्रिएट कर पौधों को कृत्रिम तरीके से तैयार करते हैं। इस चेंबर में इन पौधों को 30 दिन के लिए रखते हैं। यह ग्रीन हाउस चैंबर ढाई सौ स्क्वायर फीट क्षेत्रफल का है, जिसमें करीब 1 लाख तक पौधे रखे जा सकते हैं। इन पौध लगाई गई ट्रे में करीब 10 दिन में जड़े निकालना शुरू हो जाती है। 70% जड़ आ जाने के बाद इन्हें बाहर खेत में रोपित करते हैं। इस चेंबर में ह्यूमिडिटी अर्थात् आद्रता 90% तथा टेंपरेचर 35 से 38 डिग्री सेंटीग्रेड तक क्रिएट किया जाता है। 

वृक्षों की खेती कर कमा रहे करोड़ों, पारंपरिक खेती से अधिक मुनाफा_3839


पौधे का हार्डेनिंग प्रोसेसिंग :

30 दिन चेंबर में रखने के बाद पौधों को बाहर नर्सरी में लाया जाता है, जहां यह 30 से 40 दिन रहते हैं। यहां पर पौधे अपनी क्षमता अनुसार बड़े और विकसित होता है, जिन्हें उनके गुणों के आधार पर ए-ग्रेड, बी-ग्रेड और सी-ग्रेड की तीन कैटेगरी में बांट देते हैं। ए-ग्रेड पौधे के विकसित होने के 100% चांस होते हैं वही सी-ग्रेड पौधे के 50% चांस है। इन पौधों को इस प्रकार डेवलप किया गया है कि ये गर्मी सर्दी में भी आसानी से सरवाइव कर जाते हैं। ए-ग्रेड पौधा ट्रे में करीब एक फिट लंबा विकसित हो जाता है, जिसकी जडें कोकोपीट के साथ अच्छे से विकसित होकर जालीदार गुच्छा बना लेती है। 

वृक्षों की खेती कर कमा रहे करोड़ों, पारंपरिक खेती से अधिक मुनाफा_3839


खेत में पौधों का रोपण:

 पौधें रोपण के कितने सारे तरीके हैं जिनमें मुख्य रूप से एग्रोफोरेस्टिंग मॉडल, बण्ड प्लांटेशन मॉडल तथा ब्लॉक प्लांटेशन मॉडल पद्धति में पेड़ों को लगाकर विकसित किया जाता है।

ब्लॉक प्लांटेशन मॉडल:

इसमें पेड़ों को 10 फिट× 5 फिट के डिस्टेंस पर लगाया जाता है। पेड़ों की दो लाइनों के बीच की दूरी 10 फिट होती है, जिससे ट्रैक्टर आसानी से निकल जाये तथा जुताई वगैहरा सुचारू रूप से होती है। इस प्रकार एक एकड़ में करीब 888 प्लांट विकसित हो जाते हैं। इस मॉडल मैं खर्च की बात करें तो एक पौधे की कोस्ट ₹12, ₹2 लगाने की कास्ट और ₹1 ट्रांसपोर्टेशन मैं इस प्रकार कुल खर्च ₹15 प्रति पौधा आ जाता है। और यदि प्रति पेड़ से मुनाफे की बात करें तो 3 साल के पेड़ में एक कुंटल तथा 5 साल के पेड़ में करीब 1.5 कुंतल तक वजन हो जाता है। जो मार्केट में ₹1000 का आसानी से बिक जाता है।

वृक्षों की खेती कर कमा रहे करोड़ों, पारंपरिक खेती से अधिक मुनाफा_3839


इस प्रकार ₹15 का पौधा लगाने के अलावा इस खेती में आगे के 5 साल और कुछ खाद्य, पानी, जुताई आदि करने की आवश्यकता नहीं होती, यह प्राकृतिक बारिश के आधार पर ही विकसित हो जाता है। अतः 1 एकड़ जमीन पर 888×15= ₹1320 की लागत तथा लगभग 8 लाख रुपए का मुनाफा 5 साल में अर्थात् ₹1,60,000 प्रतिवर्ष हो सकता है। यदि इसकी गन्ने की खेती से तुलना करें तो सामान्यतः एक एकड़ भूमि पर करीब 500 कुंतल गन्ना उगता है, जिसकी कीमत लगभग 1,20,000 रुपए होती है; परंतु इसमें मेहनत और लागत ज्यादा आ जाती है और पेड़ उगाने में कोई लागत या फसल खराब होने का खतरा नहीं है।


एग्रोफोरेस्ट्री प्लांटेशन मॉडल: 

इस मॉडल को बड़े ही बेहतरीन तरीके से विकसित किया गया है। एग्रो-फॉरेस्ट्री प्लांटेशन से अभिप्राय है की पेड़ उत्पादन के साथ-साथ विभिन्न फसलों का प्रोडक्शन करना। इसमें किनारे पर पेड़ की 4फिट×4फिट की दो लाइन लगाते हैं, इसके बाद 30 फीट का खेत छोड़ते हैं और फिर 4 फीट × 4 फीट की दो लाइन लगते हैं।

वृक्षों की खेती कर कमा रहे करोड़ों, पारंपरिक खेती से अधिक मुनाफा_3839


यही पैटर्न पूरे भूमि क्षेत्रफल पर लागू करते हैं। इस प्रकार दोनों तरफ पेड़ उगते हैं और बीच के 30 फीट चौड़े भाग पर गन्ने,चावल, गेहूं इत्यादि की खेती की जाती है। और पेड़ों की दोनों लाइनों के बीच भी लहसुन, प्याज आदि की फसल लगा देते हैं। इन पेड़ों को बीच में लगाने का एक फायदा यह भी होता है कि पेड़ों को हवा का सरकुलेशन, और पोषक तत्व अच्छी मात्रा में प्राप्त हो जाते हैं, जिससे वह कम समय में विकसित हो जाते। इस मॉडल को दो एकड़ भूमि क्षेत्रफल पर लगाया है, जिसमें 1750 पौधे उगाये हुए हैं।

वृक्षों की खेती कर कमा रहे करोड़ों, पारंपरिक खेती से अधिक मुनाफा_3839

नयी वैरायटी विकसित करने का प्रोसेस: 

निरंतर प्रयास और अनुभव से विशेष और अपडेटेड वैरायटी लॉन्च करते हैं। इसके लिए इन्होंने सुपीरियर क्लांस वाले पौधे लगा रखे हैं और उन सुपीरियर में से भी बेस्ट क्लोन चुनते हैं। यूकेलिप्टिक का वृक्ष मोनोसिस प्लांट होता है अर्थात् मेल और फीमेल फ्लावर्स एक ही प्लांट में पाए जाते हैं, तो बेहतरीन बीज प्राप्त करने के लिए एक फीमेल फ्लावर सेलेक्ट करते हैं और उसमें से मेल पार्ट को हटा देते हैं, जिसे एमस्कुलेशन प्रक्रिया कहते हैं। मेल फ्लावर हटा देने के बाद फीमेल फ्लावर की बैगिंग कर पैक कर देते हैं। जिसमें कुछ दिन नई बड्स निकल आती है। सुपीरियर क्लोन प्राप्त करने का फायदा यह है कि इससे पौधा विभिन्न प्रकार के रोगों से मुक्त रहता है और इसकी रोटेशन में भी तीव्र गति से वृद्धि होती है।

वृक्षों की खेती कर कमा रहे करोड़ों, पारंपरिक खेती से अधिक मुनाफा_3839


लकड़ी से पेपर बनने तक का सफर: 

सबसे पहले अपने खेत में लगाये गये वृक्ष की लकड़ी तथा बाहर से अन्य किसानों द्वारा लकडियां प्राप्त की जाती है। इसके लिए पेड़ के तने का व्यास 5 से 12 इंच तक होना आवश्यक है। इससे ज्यादा व्यास के लक्कड़ों को प्लाईवुड बनाने हेतु यमुनानगर वाली फैक्ट्री में भेज दिया जाता है। इन पेपर बनाने वाली लकडियों को सबसे पहले डेवारकर मशीन में डालकर इन लंबे-लंबे लक्कड़ के छिलके को अलग कर लेते हैं। छिलने के बाद प्राप्त हुई लकड़ी पेपर बनाने हेतु तथा छिलके को सुखाकर ईंधन के रूप में प्रयोग किया जाता है।

वृक्षों की खेती कर कमा रहे करोड़ों, पारंपरिक खेती से अधिक मुनाफा_3839

अब इन प्राप्त लकडियों को एक मशीन द्वारा चिप्स की फॉम अर्थात् छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लिया जाता है और कन्वेयर बेल्ट के द्वारा ऊपर ले जाकर एक डाइजेस्टर नामक मशीन में ले जाते हैं। जहां पर चिप्स में केमिकल डालकर कुकिंग की जाती है, जिससे वह एक लुगदी के रूप में प्राप्त हो जाता है। अब उस लूगदी को वॉशिंग कर केमिकल ट्रीटमेंट किया जाता है।

वृक्षों की खेती कर कमा रहे करोड़ों, पारंपरिक खेती से अधिक मुनाफा_3839


उसके बाद लुगदी को पेपर मशीन पर ले जाया जाता है, जिसमें अतिरिक्त केमिकल मिलाकर मशीन द्वारा पेपर बनाया जाता है। इस फैक्ट्री में प्रतिदिन लगभग 300 टन से ज्यादा लकड़ी से पेपर बनाए जाते हैं। पेपर मशीन से पेपर बनाने के बाद रिवाइंडर मशीन द्वारा कागज की रील बन जाती है तथा बाद में सीट कटर द्वारा काटकर सीट बन देते हैं। इस प्रकार पेपर पूर्ण रूप से बनकर तैयार हो जाता है।

वृक्षों की खेती कर कमा रहे करोड़ों, पारंपरिक खेती से अधिक मुनाफा_3839


आर्थिक जानकारी: 

ये किसानो से लकड़ी को लगभग ₹600 प्रति कुंतल की दर से खरीदते हैं। लकड़ी प्राप्त करने के इनके दो तरीके हैं ।पहला तो यह की है कि पूरे खेत में लगे पेड़ों की ग्रोथ मापकर उसे प्रति पेड़ की दर से खरीद लेते हैं। इसके लिए पेड़ों की कटाई तथा फैक्ट्री तक लाने ले जाने का कार्य स्वयं इनकी टीम द्वारा ही किया जाता है। दूसरा तरीका किसान खुद काटकर भी इन्हें लकड़ी बाहर से बाहर ही बेच कर अपना भुगतान प्राप्त कर लेते हैं। स्टार पेपर मिल का उद्देश्य भी यही है कि किसानों से सीधे लकडियां प्राप्त करें और किसानों को अधिक से अधिक लाभ प्रदान हो सकें।

वृक्षों की खेती कर कमा रहे करोड़ों, पारंपरिक खेती से अधिक मुनाफा_3839


दोस्तों आपने जाना किस प्रकार वृक्ष लगाकर उनकी खेती की जाती है और पारंपरिक फसलों से भी अधिक लाभ कमाया जा सकता है; परंतु इसके साथ हमें की जा रही खेती की प्रकृति और आवश्यक जरूरत की जानकारी होना आवश्यक है, अन्यथा फसल खराब भी हो सकती है। जैसे यूकेलिप्टस के पौधों को उन क्षेत्रों में लगाना चाहिए जहां तापमान करीब 30 से 35 डिग्री के आसपास तथा सफेदा के पौधों को लगाते समय इस बात का ध्यान रखना भी आवश्यक है, कि वहां जल निकासी की व्यवस्था अच्छी हो। इस फसल के लिए दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है, जिसकी पीएच वैल्यू 6.5 से 7.5 तक हो तो पौधा बहुत ही जल्दी विकसित होता है। इसी के साथ पॉपुलर की खेती भी उपयुक्त है, क्योंकि पॉपुलर बेहद तेजी से बढ़ने वाला वृक्ष है, जो 5 से 8 फीट करीब 1 साल में हो जाता है। आशा करते हैं सभी पाठकों को यह लेख पसंद आया होगा। इसी प्रकार अन्य जानकारी के लिए जुड़े रहे "हेलो किसान" के साथ। धन्यवाद॥



Share

Comment

Loading comments...

Also Read

मांस, दूध और ऊन से किसानों के लिए सुनहरा व्यवसाय
मांस, दूध और ऊन से किसानों के लिए सुनहरा व्यवसाय

किसान की असली ताकत सिर्फ खेत में उ

01/01/1970
रंगीन शिमला मिर्च की खेती से किसानों को मुनाफा
रंगीन शिमला मिर्च की खेती से किसानों को मुनाफा

भारत में खेती को लेकर अब सोच बदल र

01/01/1970
पपीते की खेती – किसानों के लिए फायदे का सौदा
पपीते की खेती – किसानों के लिए फायदे का सौदा

खेती किसानी में अक्सर किसान भाई यह

01/01/1970
एक्सपोर्ट के लिए फसलें: कौन-कौन सी भारतीय फसल विदेशों में सबसे ज्यादा बिकती हैं
एक्सपोर्ट के लिए फसलें: कौन-कौन सी भारतीय फसल विदेशों में सबसे ज्यादा बिकती हैं

भारत सिर्फ़ अपने विशाल कृषि उत्पादन के लिए ही नहीं, बल्कि दुनिया क

01/01/1970

Related Posts

Short Details About