मसूर की बेहतरीन वैरायटी और खेती से जुड़ी पूरी जानकारी


भारत में दलहनी फसलों का अपना एक अलग ही महत्व है। इनमें मसूर (Lentil) सबसे ज्यादा लोकप्रिय और लाभदायक फसल मानी जाती है। मसूर दाल हमारी थाली में प्रोटीन का सस्ता और अच्छा स्रोत है, इसलिए इसकी मांग पूरे साल बनी रहती है। किसानों के लिए मसूर की खेती इसलिए भी फायदेमंद है क्योंकि यह मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाती है और अगली फसलों के लिए खेत को उपजाऊ बनाती है। लेकिन अच्छी पैदावार और मुनाफा तभी मिलता है जब किसान सही मसूर की वैरायटी (Variety of Lentil) का चुनाव करें। इस लेख में हम मसूर की प्रमुख किस्मों, उनकी विशेषताओं और खेती की उपयोगी जानकारियों को विस्तार से समझेंगे।

मसूर की प्रमुख वैरायटी
भारत में मसूर की कई किस्में विकसित की गई हैं, जो अलग-अलग क्षेत्रों और जलवायु परिस्थितियों के अनुसार अच्छी उपज देती हैं। आइए इन्हें विस्तार से जानते हैं:
1. पंत मसूर – 5 (Pant Masoor – 5) : यह किस्म उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में काफी लोकप्रिय है। इसकी पैदावार 16-18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है। बीज का रंग लाल और दाना मध्यम आकार का होता है। इसकी सबसे बड़ी खासियत है कि यह जल्दी पकने वाली किस्म है (110-115 दिन)।
2. पंत मसूर – 7 (Pant Masoor – 7) : यह वैरायटी सूखे इलाकों के लिए उपयुक्त है। इसमें दानों का रंग हल्का लाल होता है। रोगों के प्रति सहनशील और औसतन 17-18 क्विंटल/हेक्टेयर उत्पादन देती है।
3. पंत मसूर – 8 (Pant Masoor – 8) : जल्दी पकने वाली वैरायटी, लगभग 105-110 दिन में तैयार। यह उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और बिहार में काफी सफल रही है। बीज छोटा और चमकदार लाल रंग का होता है।
4. आरवीएल – 11 (RVL – 11) : यह राजस्थान की जलवायु के लिए अनुकूलित किस्म है। इसमें दाना मोटा और गहरे रंग का होता है। औसतन 15-16 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन।
5. आईपीएल – 406 (IPL – 406) : भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित। रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी है, खासकर पत्ती झुलसा और जड़ सड़न से बचाती है। उत्पादन क्षमता 18-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर।

6. आईपीएल – 81 (IPL – 81) : यह किस्म छोटे दानों वाली है और स्वादिष्ट मानी जाती है। इसकी फसल 115-120 दिन में तैयार हो जाती है। उत्पादन लगभग 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक।
7. मालवी मसूर : यह खासतौर पर मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ क्षेत्र में बोई जाती है। दाने मध्यम आकार के और हल्के लाल रंग के होते हैं। यह किस्म बाजार में काफी मांग में रहती है। मसूर की खेती से जुड़ी खास बातें
खेती किस तरीके से करे?
1. मौसम और मिट्टी : मसूर की फसल ठंडी और शुष्क जलवायु में अच्छी होती है। इसे रबी सीजन में बोया जाता है (अक्टूबर-नवंबर)। बलुई दोमट या दोमट मिट्टी जिसमें पानी का निकास अच्छा हो, सबसे उपयुक्त है। pH मान 6.0 से 7.5 आदर्श माना जाता है।
2. बुवाई का समय और बीज की मात्रा : मध्य भारत और उत्तर भारत में 15 अक्टूबर से 15 नवंबर तक बोना सबसे अच्छा रहता है। बीज की मात्रा 30-40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रखी जाती है। कतार से कतार की दूरी 25-30 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर रखनी चाहिए।
3. खाद और उर्वरक प्रबंधन : मसूर दलहनी फसल है, इसलिए इसमें नाइट्रोजन की जरूरत कम होती है। बुवाई के समय 20 किग्रा नाइट्रोजन और 40-50 किग्रा फॉस्फोरस प्रति हेक्टेयर देना लाभकारी है। जैविक खाद जैसे गोबर की सड़ी हुई खाद या वर्मी कम्पोस्ट का उपयोग करने से पैदावार और मिट्टी दोनों की सेहत सुधरती है।
4. सिंचाई प्रबंधन : मसूर की फसल सूखा सहन कर सकती है लेकिन दो सिंचाइयां जरूरी होती हैं। पहली सिंचाई – फूल आने पर और दूसरी सिंचाई – दाना भरने पर, पानी भराव वाली जमीन से मसूर को बचाना चाहिए।
5. रोग और कीट नियंत्रण : झुलसा रोग – इस पर मैनकोजेब दवा का छिड़काव प्रभावी है। जड़ सड़न – बीजोपचार कार्बेन्डाजिम से करें। कीटों में एफिड (Aphid) प्रमुख है, जिसे इमिडाक्लोप्रिड दवा से नियंत्रित किया जा सकता है।
6. कटाई और मड़ाई : जब पत्ते पीले होकर झड़ने लगें और फली का रंग भूरा हो जाए तो फसल कटाई के लिए तैयार होती है। दरांती से पौधों को काटकर 5-6 दिन तक खेत में सुखाना चाहिए। मड़ाई करके बीज निकालकर साफ-सुथरे और सूखे स्थान पर भंडारण करें।

मसूर की खेती के फायदे
1. कम लागत – ज्यादा मुनाफा : मसूर की खेती में ज्यादा सिंचाई, खाद और कीटनाशक की जरूरत नहीं होती। कम खर्च में अच्छी पैदावार मिलती है।
2. बाजार में स्थायी मांग : मसूर दाल की मांग पूरे साल रहती है। किसान सीधे मंडी या प्रोसेसिंग यूनिट्स में बेचकर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।
3. मिट्टी की उर्वरता में सुधार : मसूर की जड़ों में राइजोबियम बैक्टीरिया होता है, जो नाइट्रोजन को स्थिर करके मिट्टी को उपजाऊ बनाता है।
4. फसल चक्र में लाभकारी: मसूर को गेहूं, चना, जौ जैसी फसलों के साथ फसल चक्र में लेने से खेत की उत्पादकता बढ़ती है।
निष्कर्ष
मसूर की खेती किसानों के लिए कम लागत और ज्यादा लाभ देने वाली फसल है। अगर किसान सही मसूर की वैरायटी का चुनाव करें और खेती के वैज्ञानिक तरीकों को अपनाएं, तो उन्हें 18-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन आसानी से मिल सकता है। यह फसल न केवल किसानों की आय बढ़ाती है, बल्कि मिट्टी की सेहत सुधारने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में भी मदद करती है। इसलिए कहा जा सकता है कि मसूर की सही वैरायटी और सही तकनीक से खेती करना किसानों के लिए सोने पर सुहागा है। ऐसी अमेजिंग जानकारी के लिए जुड़े रहे Hello Kisaan के साथ और आपको ये जानकारी कैसी लगी हमे कमेंट कर के जरूर बताइये ।। जय हिन्द जय भारत ।।
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