उन्नत किस्म के केलों की खेती


बारहमासी फल के नाम से विख्यात केला ना सिर्फ भारत बल्कि पूरे विश्व में प्रमुख फलों के रूप में जाना जाता है। जिसकी कीमत उसके आकार, वजन और मौसम पर निर्भर करती है। वर्तमान में किसानों ने इसके उत्पादन पर नए-नए प्रयोग कर इसके आकार को बढ़ा दिया है। भारत विश्व में केला उत्पादन में प्रथम स्थान रखता है। आज हम जानेंगे किसान भाइयों को कौन-सी वैरायटी और किस विधि द्वारा इसका उत्पादन करना चाहिए, जिससे उनकी आमदनी अधिक से अधिक हो सके।
सबसे लंबा केला:
दुनिया में सबसे बड़ा केला अपनी जलवायु और मिट्टी के गुणों के कारण न्यू गिनी में दुर्लभ जॉइंट हाईलैंड केले का होता है। यह केला 3 किलो से भी अधिक वजनी और 25 से 30 सेंटीमीटर लंबा होता है।
उपयुक्त जलवायु:
केले की खेती मुख्यतः उष्णकटिबंधीय और उप उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में होती है। इसमें अनुकूल तापमान 18 से 36 डिग्री सेंटीग्रेड तक है। केले की खेती मुख्यतः वर्ष भर की जा सकती है, लेकिन इसकी बुवाई का सही समय मानसून अर्थात् जून से सितंबर जब बारिश के कारण मिट्टी में नमी बनी रही हो। दिसंबर से फरवरी के बीच भी बुवाई का सही समय माना जाता है। भारत में मुख्यतः केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश में सफल रूप से की जा रही है।

उन्नत वैरायटी:
भारत में केले की सबसे लंबी किस्म नैनो कहलाती है। नैनो केले की विशेषता इसकी लंबाई और विशेष स्वाद से है, जिससे यह स्थानीय बाजारों में बहुत लोकप्रिय है।जी-9 किस्म: वर्तमान में भारतीय किसान g9 केले की किस्म सर्वाधिक मात्रा में लगा रहे हैं, क्योंकि यह अपने बंपर उत्पादन के लिए मशहूर है।
ग्रेड- नैन: यह किस्म भी उत्पादन की दृष्टि से काफी अच्छी मानी जाती है। इसके लिए 20 से 36 डिग्री सेल्सियस का टेंपरेचर अच्छा माना जाता है तथा यह 16 से लेकर 18 महीने के अंदर तैयार हो जाती है। इसको बोने के लिए लाइन से लाइन की दूरी 5 से 6 सेंटीमीटर होनी जरूरी है तथा मार्केट में इसका पौधा ₹10 में मिल जाता है।इसी के साथ केले की रस्ताली किस्म, ड्वॉर्फ कैवेंडिश, रोबेस्ट, मलभोग, चिनिया चंपा, अल्पना, बत्तीसा आदि प्रमुख एवं उन्नत किस्में है। जो अपने चीनी जैसे स्वाद और अधिक मात्रा में उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है।

खेती की विधि:
पोषण और खनिज लवण जैसे फास्फोरस और कैल्शियम की प्रचुर मात्रा रखने वाले केले की खेती बड़े ही ध्यान पूर्वक की जाती है। इसमें सबसे पहले दोमट मिट्टी वाली भूमि का चयन करना चाहिए, जिसका जल निकास अच्छा हो और उस भूमि का पीएच मान 6 से 7.5 के बीच होना चाहिए। उपरोक्त वैरायटी के पौधों को नर्सरी में विधिवत रूप से तैयार किया जाता है, जिन्हें गढ्ढ़ों में जरूरी खाद मिलाकर बो दिया जाता है। गड्ढे की लंबाई, चौड़ाई और गहराई 60-60 सेंटीमीटर होनी चाहिए। लगाए जाने वाले पौधों की पौधों से दूरी 1.5×1.5 मीटर हो तो पेड़ का विकास अच्छे से होगा। इस प्रकार एक हेक्टेयर में करीब 4400 पौधे आसानी से लगाए जा सकते हैं। केले में रोपण के लगभग 12 माह बाद फूल आते हैं और 3.5 महीने बाद घार काटने योग्य हो जाता है।
फसल की देखभाल:
अक्टूबर महीने में पौधे के नीचे पुआल अथवा गन्ने की पत्ती को बिछा देना चाहिए, इससे सिंचाई में कमी आती है और व्यर्थ की खरपतवार नहीं उगती तथा भूमि की उर्वरकता शक्ति बढ़ जाती है।पौधे के बगल में निकलने वाली बड्स को 20 सेंटीमीटर तक की वृद्धि से पहले ही काट कर निकाल देना चाहिए। फल टिकाव हो जाने पर घार के अगले भाग पर लटके फूलों के गुच्छों को काट देना चाहिए।घार निकलते समय बांस बंल्ली की कैंची बनकर पौधें को दो तरफ से सहारा देना चाहिए। तथा बरसात से पहले पौधों के दोनों तरफ मिट्टी को पौधे की जड़ों में ऊपर चढ़ाना चाहिए। इसी के साथ पत्तियों तथा फल में लगने वाले रोगों की रोकथाम के लिए डाईथेन m-45 के 2 ग्राम अथवा कॉपर ऑक्सिक्लोराइड के 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर 15 दिन के अंतराल पर 2 से 3 बार छिड़काव कर देना चाहिए।

केले के पेड़ से एक बार फल प्राप्त करने के बाद पेड़ के तने को काट देते हैं और फिर नए तने से फल आने लगते हैं। इस पेड़ में यदि उचित मिट्टी पानी और खाद मिलता रहे तो इसका जीवनकाल करीब 25 साल तक होता है। तो दोस्तों इस प्रकार किसान भाई केले की खेती कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। कैसी लगी आपको यह जानकारी कमेंट कर अवश्य बताएं तथा ऐसे ही तथ्यों के लिए जुड़े रहे "Hello Kisaan" के साथ। धन्यवाद॥ जय हिंद, जय किसान॥
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