क्या हरित क्रांति सिर्फ पंजाब में ही आई?


भारत एक कृषि प्रधान देश है। हमारी अर्थव्यवस्था, हमारी संस्कृति और हमारी पहचान – सब पर खेती की गहरी छाप रही है। लेकिन आज़ादी के शुरुआती वर्षों में भारत को एक बहुत बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा – भोजन की कमी। उस समय देश को अपना पेट भरने के लिए बाहर से अनाज आयात करना पड़ता था। इसी संकट से निकलने के लिए 1960 के दशक में शुरू हुआ आंदोलन था – हरित क्रांति। जब भी हरित क्रांति की बात होती है तो सबसे पहले पंजाब का नाम सामने आता है। ऐसा क्यों? क्या सचमुच हरित क्रांति सिर्फ पंजाब तक सीमित थी? या फिर इसके प्रभाव दूसरे राज्यों में भी हुए? आइए इस पर विस्तार से नज़र डालते हैं।

हरित क्रांति की शुरुआत कैसे हुई?
साल 1965-66 के दौरान भारत को सूखे और खाद्यान्न संकट ने हिला दिया था। उस समय सरकार ने अमेरिकी वैज्ञानिक नॉर्मन बोरलॉग और भारतीय कृषि वैज्ञानिक एम.एस. स्वामीनाथन के साथ मिलकर नई किस्मों के बीज, रासायनिक खाद और आधुनिक सिंचाई तकनीक अपनाने की पहल की। इस अभियान को "हरित क्रांति" नाम दिया गया। इसका मुख्य उद्देश्य था – किसानों को ज्यादा उपज देने वाले बीज देना, आधुनिक खाद और कीटनाशक उपलब्ध कराना, सिंचाई की सुविधा बढ़ाना और उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाना।
पंजाब में हरित क्रांति क्यों सफल हुई?
हरित क्रांति की सबसे ज़्यादा सफलता पंजाब में देखने को मिली। इसके पीछे कई कारण थे – 1. उपजाऊ मिट्टी: पंजाब की मिट्टी गेहूँ और धान की खेती के लिए बेहद उपयुक्त है। यहाँ के मैदान प्राकृतिक रूप से खेती के लिए आदर्श थे। 2. सिंचाई की सुविधा: पंजाब में नहरों और भूमिगत पानी की अच्छी व्यवस्था पहले से थी। सबमर्सिबल पंप और ट्यूबवेल के ज़रिए सिंचाई आसानी से हो पाई। 3. किसानों की मेहनत और उत्साह: पंजाब के किसानों ने नई तकनीक और नए बीजों को अपनाने में सबसे आगे बढ़कर हिस्सा लिया। 4. सरकारी समर्थन: सरकार ने पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में अधिक निवेश किया। बीज, खाद, ट्रैक्टर और सिंचाई उपकरणों पर सब्सिडी दी गई। 5. बाज़ार और खरीद की सुविधा: पंजाब में मंडियों और सरकारी खरीद केंद्रों की बेहतर व्यवस्था थी। किसानों को उनकी फसल का उचित दाम मिला। इन्हीं कारणों से पंजाब में गेहूँ और धान का उत्पादन तेजी से बढ़ा और यह राज्य हरित क्रांति का प्रतीक बन गया।
क्या हरित क्रांति सिर्फ पंजाब तक सीमित रही?
यह सच है कि हरित क्रांति की सबसे चमकदार सफलता पंजाब में देखी गई, लेकिन इसका असर हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी काफी दिखाई दिया।
हरियाणा: पंजाब की तरह यहाँ भी उपजाऊ जमीन और सिंचाई की अच्छी सुविधा थी। हरियाणा ने गेहूँ उत्पादन में रिकॉर्ड तोड़ वृद्धि की।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश: गंगा-यमुना के मैदानों में हरित क्रांति की तकनीक अपनाई गई और धान-गेहूँ की पैदावार में बड़ी बढ़ोतरी हुई।
अन्य राज्य: बिहार, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में धीरे-धीरे हरित क्रांति की तकनीक पहुँची, लेकिन वहाँ उतनी बड़ी सफलता नहीं मिल पाई क्योंकि सिंचाई और सरकारी समर्थन उतना मजबूत नहीं था।
हरित क्रांति के फायदे
1. अनाज में आत्मनिर्भरता: भारत को अब बाहर से अनाज आयात करने की ज़रूरत नहीं रही। 2. किसानों की आय बढ़ी: पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत हुई। 3. खाद्यान्न सुरक्षा: देश में भुखमरी की समस्या काफी हद तक खत्म हो गई। 4. नई तकनीक का प्रसार: ट्रैक्टर, हार्वेस्टर और अन्य मशीनें खेती का हिस्सा बन गईं।

हरित क्रांति की सीमाएँ
हालाँकि हरित क्रांति ने अनाज की समस्या हल कर दी, लेकिन इसके कुछ दुष्प्रभाव भी सामने आए – केवल गेहूँ और धान पर ज़ोर दिया गया, जिससे फसल विविधता कम हो गई। रासायनिक खाद और कीटनाशक के अत्यधिक इस्तेमाल से मिट्टी और पानी प्रदूषित हुए। भूजल का अंधाधुंध दोहन हुआ और आज पंजाब जैसे राज्यों में पानी का स्तर लगातार गिर रहा है। छोटे और गरीब किसान उतना लाभ नहीं उठा पाए जितना बड़े किसानों ने उठाया।
निष्कर्ष
तो क्या हरित क्रांति सिर्फ पंजाब में आई? नहीं, लेकिन यह कहना गलत नहीं होगा कि इसकी सबसे बड़ी सफलता पंजाब में दिखाई दी। पंजाब और हरियाणा ने पूरे देश को अनाज में आत्मनिर्भर बनाने में सबसे अहम भूमिका निभाई। पश्चिमी उत्तर प्रदेश और कुछ अन्य राज्यों को भी इसका लाभ मिला, लेकिन उतनी मात्रा में नहीं। आज जब हम जलवायु परिवर्तन और मिट्टी की खराब होती हालत को देख रहे हैं, तो हमें यह मानना पड़ेगा कि अब समय नई तरह की "हरित क्रांति" की है – जहाँ फसल विविधता, जैविक खेती और जल संरक्षण पर ज़ोर दिया जाए। हरित क्रांति ने भारत को भुखमरी से बचाया, लेकिन अब भविष्य की चुनौती यह है कि खेती को टिकाऊ (Sustainable) कैसे बनाया जाए। और इसमें पूरे देश को पंजाब की तरह आगे आना होगा।
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