दुनिया के सबसे बड़े और वजनदार अमरुद की खेती


किसान की मेहनत और और लगन के बालबूते अमरूद के पेड़ पर लग रहे एक से डेढ़ किलो वजनी अमरूद। एक ही पेड़ से कमा रहे हजारों रुपए तथा साल में दो बार देते हैं फल। खाने में इतने स्वादिष्ट की भूल जाएंगे साधारण वैरायटी। बिना बीज के विकसित इतने बड़े-बड़े अमरूदों के पीछे क्या है राज? आज जानेंगे हम इस लेख में, बने रहे हमारे साथ।अमरूद के लिए गर्म तथा शुष्क जलवायु सबसे अधिक उपयुक्त मानी जाती है। यह गर्मी तथा पाला दोनों ही सहन कर सकता है, इसलिए यह देशभर में सभी स्थानों पर आसानी से देखने को मिल जाता है। वैसे तो सभी प्रकार की मिट्टी में यह उगया जा सकता है; परंतु बलुई दोमट मिट्टी उसके लिए आदर्श मिट्टी मानी जाती है। विभिन्न शोधों के उपरांत विकसित इन अमरूद की प्रजातियां में यूं तो बहुत सारी डेवलप्ड वैरायटी है; परंतु वर्तमान में सबसे अधिक प्रचलित जंबो अमरूद को मुनाफेदार फसल माना जा रहा है।

जंबो वैरायटी का अमरूद:
जंबो अमरूद का पौधा मात्र 6 महीने बाद ही फल देना शुरू कर देता है। इसकी ऊंचाई भी केवल चार-पांच फीट ही रहती है, जबकि यह फल एक फिट की ऊंचाई पर ही देना शुरू कर देता है। फल का आकार बहुत बड़ा होता है। एक से डेढ़ किलो तक का अमरुद इस छोटे से पेड़ पर विकसित हो जाता है। किसानों के लिए जंबो अमरुद काफी फायदेमंद फसल है। विशेष विधि से पौधे की क्राफ्टिंग कर इसे विकसित किया जाता है। वर्तमान में किसान इस फसल को लगाने में बढ़-चढ़कर रुचि ले रहे हैं। इन बड़े-बड़े अमरूदों को उगाने के लिए इनकी देखरेख भी विशेष प्रकार से करनी पड़ती है। विभिन्न कीटों से बचाने के लिए अमरुद को छोटी अवस्था में है एंटी फागिंग पन्नी या अखबरी कागज से कवर कर दिया जाता है।

वीएनआर बीही प्रजाति का अमरूद:
रायपुर के छत्तीसगढ़ में विकसित इस प्रजाति का अमरूद भी सबसे बड़ा माना जाता है। कच्ची अवस्था में ही इसका वजन 700 से 800 ग्राम तक हो जाता है तथा पक पर एक से डेढ़ किलो तक हो जाता है। इसका उत्पादन कम पानी और अधिक नमी वाले स्थान पर होता है। पंतनगर मेले में इस अमरूद के प्रचार के लिए प्रदर्शनी भी लगाई गई थी, जिसमें किसानों को जागरुक कर यह प्रजाति लगाने के लिए प्रोत्साहित किया गया।
अमरूद की विभिन्न विकसित वैरायटियां:
कम भूमि में अधिक पैदावार उत्पादित करने के लिए उन्नत किस्म की वैरायटी का ही प्रयोग करना चाहिए। इन वैरायटी में मुख्य रूप से वीएनआर बिही, जंबो अमरुद, इलाहाबाद सफेदा, कृषि विश्वविद्यालय पंतनगर में विकसित पंत प्रभात वैरायटी, सीआईएसएच लखनऊ में विकसित श्वेता वैरायटी, बहुत कम समय में फल देने वाली विदेशी वैरायटी थाई अमरूद आदि उन्नत किस्म के है, जिन्हें उगाकर कम भूमि पर अधिक पैदावार की जा सकती है।

सावधानियां:
पौधे लगाते समय सड़ी हुई गोबर की खाद और ऑर्गेनिक खाद मिट्टी आदि का मिश्रण अच्छे से करना चाहिए। कीट नियंत्रण के लिए नीम की पत्तियों को उबालकर उनका छिड़काव अमरुद पर करते रहना चाहिए तथा फल थोड़ा बड़ा हो जाने पर उसे कवर कर देना चाहिए। जून के महीने में उर्वरकों का प्रयोग करके आने वाले प्रथम प्रकार के फूलों की संख्या को बढ़ा और गुणवत्ता युक्त फल प्राप्त कर सकते हैं। दोस्तों कैसी लगी आपको उन्नत किस्म के अमरुद उत्पादन की जानकारी कमेंट कर अवश्य बताएं तथा ऐसे ही अन्य रोचक तथ्यों के लिए जुड़े रहे "हेलो किसान" के साथ। धन्यवाद॥जय हिंद, जय किसान॥
Comment
Also Read

मांस, दूध और ऊन से किसानों के लिए सुनहरा व्यवसाय
किसान की असली ताकत सिर्फ खेत में उ

रंगीन शिमला मिर्च की खेती से किसानों को मुनाफा
भारत में खेती को लेकर अब सोच बदल र

पपीते की खेती – किसानों के लिए फायदे का सौदा
खेती किसानी में अक्सर किसान भाई यह

बकरी के दूध से बने प्रोडक्ट्स – पनीर, साबुन और पाउडर
भारत में बकरी पालन (Goat Farming)

एक्सपोर्ट के लिए फसलें: कौन-कौन सी भारतीय फसल विदेशों में सबसे ज्यादा बिकती हैं
भारत सिर्फ़ अपने विशाल कृषि उत्पादन के लिए ही नहीं, बल्कि दुनिया क
Related Posts
Short Details About