घर में केसर का उत्पादन कर कमा रहे लाखों रुपए


अपने गुणों के कारण हमेशा मांग में रहने वाला एक ऐसा औषधिय पौधा केसर(साफ्रान), जिसकी डिमांड ना सिर्फ भारत बल्कि विदेशों में भी खूब है। कुछ हाईटेक किसान इसका उत्पादन एक छोटे से कमरे में अनुकूल वातावरण देकर लाखों रुपए कमा रहे हैं। वैसे तो धरती का सोना कहे जाने वाले केसर की खेती ठंडे और शुष्क इलाकों में उगने वाली खेती है; परंतु इसका तकनीकी अध्ययन कर विशेष तरीके से उगाने की विधि सामने आयी है, जिसे जानेंगे हम आज के लेख में।
अनुकूल वातावरण:
केसर के लिए सूखी और गर्म जलवायु सबसे अच्छी होती है, जिसमें गर्मियों में तापमान 30-35 डिग्री सेल्सियस और सर्दियों में 0-10 डिग्री सेल्सियस होना आवश्यक होता है तथा इसके लिए काली या अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी, जिसका पीएच 6-8 हो, केसर के लिए उपयुक्त है। रेत-मिट्टी का मिश्रण सबसे अच्छा होता है। भारत में ठंडे और शुष्क क्षेत्र जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, राजस्थान आदि राज्यों में की जाती है। यहां पर केसर के बड़े-बड़े बागान आसानी से देखने को मिल जाते हैं; परंतु यदि कोई किसान अपने घर पर एक छोटे-से 15×15 के कमरे में केशर उगना चाहे तो वह भी निम्न तरीके से इसकी फसल प्राप्त कर सकता है-

कमरे या प्रयोगशाला में केसर उगाने की विधि:
इसके लिए सबसे पहले एक कमरे में विधिवत रूप से स्ट्रक्चर तैयार किया जाता है, जिसमें लोहे की हंगल द्वारा पूरे कमरे में अलग-अलग जगह स्लैप बना दिए जाते हैं तथा उन पर लकड़ी से बने 4 इंच गहरे बॉक्स रखे जाते हैं। इसी के साथ कश्मीर जैसा ठंडा वातावरण बनाने के लिए चिल्लर या डेढ़ टन के एसी का प्रयोग किया जाता है तथा ह्यूमिडिटी बढ़ाने हेतु विभिन्न ह्यूमिडेटरों का भी यूज़ करते हैं। इस विधि को एरोपोनिक तकनीक कहते हैं। इसके लिए आदर्श ह्यूमिडिटी 80 से 90% के बीच होनी चाहिए। एरोपोनिक ढांचा तैयार करने के बाद रेतीली चिकनी बलुई मिट्टी को भुरभूरा कर डालें। इसके साथ मिट्टी में फास्फोरस,नाइट्रोजन,पोटाश तथा गोबर खाद का मिश्रण डालना भी फायदेमंद माना जाता है।

दरअसल केसर की खेती कंद से की जाती है। अच्छे गुणवत्ता के कंदों का चयन कर कंदों को 10 से 15 सेंटीमीटर की गहराई पर तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 से 20 सेंटीमीटर दूर पंक्तियों में रखें। एक बार रोपाई करने के बाद किसान दूसरे वर्ष भी इससे फसल प्राप्त कर सकता है। केसर बैंगनी रंग के फूलों वाले एक पौधे पर लगता है, जिसके नीचे एक बल्ब गण होता है, फूलों के पास नारंगी रंग के तीन कलंक लच्छेदार होते हैं। जिन्हें सावधानीपूर्वक फूलों से अलग किया जाता है और उन्हें सुखाकर प्रयोग हेतू संचित कर लेते हैं।
केसर की फसल में लागत:
अन्य फसलों की तरह केसर की खेती में भी पहले वर्ष अधिक लागत आती है;परंतु पहली उपज प्राप्त करने के उपरांत किसान को इसमें लाभ ही लाभ होता है। पहले वर्ष एरोपोनिक स्ट्रक्चर तैयार करने तथा एसी और हयूमीडिएटर आदि लगाने में लगभग तीन से चार लाख रुपए तक का खर्चा आ जाता है। इसी के साथ एक किलोग्राम केसर के बीज 800 से ₹1000 प्रति किलो ग्राम तक मिल जाते हैं जिन्हें उपरोक्त लकड़ी की बनी ट्रे में उगा देते हैं। अतिरिक्त खर्चों में कीटनाशक, श्रमिक आदि का भी रहता है।
मुनाफा:
यदि मुनाफे की बात करें तो केसर धरती के सोने के रूप में जाना जाता है। इसके एक ग्राम की कीमत भी 500 से ₹600 होती है, वहीं यदि एक किसान एक किलोग्राम तक केसर भी उत्पादित कर रहा है तो वह 5 से 6 लाख रुपए की खेती एक छोटे से कमरे में कर सकता है। किसी के साथ केसर के नीचे जड़ के रूप में लगने वाला बल्ब भी बाजार में 500 से ₹600 किलो तक बिकता है। इस प्रकार अच्छा मुनाफा प्राप्त होता है, जिसमें पहले वर्ष तो अधिक लागत; परंतु बाद में बचत ही बचत है।
अवधि:
केसर की फसल 6-8 महीने में तैयार होती है। आमतौर पर, अक्टूबर-नवंबर में फूल आते हैं और नवंबर में काटने के लिए तैयार हो जाते हैं। क्योंकि हम कृत्रिम वातावरण देकर ये मूल्यवान फसल उग रहे हैं, इसलिए इसे किसी भी महीने या समय में उगा सकते हैं और 6 महीने बाद कटाई कर सकते हैं।

केसर का महत्व:
इसमें एंटीऑक्सीडेंट, एंटी-इंफ्लेमेटरी, और एंटी-डिप्रेशन गुण होते हैं। ये तनाव कम करने, नींद में सुधार, और पाचन में मदद करता है। इसे खाद्य रंग और सुगंध के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। मिठाइयों, बिरयानी, और अन्य व्यंजनों में इसके स्वाद और रंग के लिए इसका उपयोग होता है। केसर एक उच्च मूल्य वाली फसल है, जिससे किसानों को अच्छी आय होती है। यह कृषि क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण आय का स्रोत बनता है। इसे पूजा और विशेष अवसरों पर भी इस्तेमाल किया जाता है एवं इसी के साथ इससे कई सौंदर्य प्रसाधनों का भी निर्माण किया जाता है। केसर की ये विशेषताएं इसे एक महत्वपूर्ण और बहुपरकारी उत्पाद बनाती हैं। दोस्तों कैसी लगी आपको यह जानकारी कमेंट पर अवश्य बताएं तथा ऐसे ही जानकारी के लिए जुड़े रहे "हेलो किसान" के साथ। धन्यवाद॥ जय हिंद, जय किसान॥
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