गोबर से गणेश मूर्ति – किसानों के लिए नया व्यवसाय

27 Aug 2025 | NA
गोबर से गणेश मूर्ति – किसानों के लिए नया व्यवसाय

भारत में गणेश चतुर्थी सिर्फ़ एक त्योहार नहीं है, बल्कि श्रद्धा और खुशियों का बड़ा पर्व है। हर साल लाखों घरों और पंडालों में गणपति बप्पा विराजते हैं। लेकिन इन मूर्तियों का विसर्जन होते ही एक गंभीर समस्या सामने आती है नदियों और तालाबों का प्रदूषण। प्लास्टर ऑफ पेरिस और केमिकल रंगों से बनी मूर्तियाँ पानी और मिट्टी को नुकसान पहुंचाती हैं। इसी समस्या का हल है गोबर से बनी गणेश मूर्तियाँ। यह मूर्तियाँ पूरी तरह प्राकृतिक, इको-फ्रेंडली होती हैं और विसर्जन के बाद मिट्टी में मिलकर खाद बन जाती हैं। खास बात यह है कि यह तरीका किसानों के लिए एक नया व्यवसाय भी बन सकता है।

Ganesh idol from cow dung


क्यों ज़रूरी है गोबर से गणेश मूर्ति?

पर्यावरण हितैषी – गोबर की मूर्तियाँ पानी को प्रदूषित नहीं करतीं। खाद में बदल जाती हैं – विसर्जन के बाद ये मिट्टी और पौधों के लिए खाद का काम करती हैं। कम लागत – गोबर गाँवों में आसानी से उपलब्ध है, इसलिए मूर्तियाँ सस्ती बनती हैं। नया रोजगार – किसान खाली समय में मूर्तियाँ बनाकर बाज़ार में बेच सकते हैं।

गोबर से गणेश जी की मूर्ति बनाने का तरीका

1. कच्चा माल (Raw Material) - गाय का गोबर (ताज़ा और साफ़ किया हुआ) मिट्टी (गोंद की तरह बाँधने के लिए) थोड़ा गीला आटा या मेथी पाउडर (चिपकाने के लिए) नारियल का रेशा/भूसा (मजबूती देने के लिए) प्राकृतिक रंग (हल्दी, मिट्टी, चूना, गेरू आदि)

2. मिश्रण तैयार करना - सबसे पहले गाय का गोबर, मिट्टी और भूसा अच्छी तरह मिलाएँ। इसमें थोड़ा आटा या मेथी पाउडर मिलाकर पेस्ट जैसा तैयार करें। यह मिश्रण मूर्ति को मज़बूती और टिकाऊपन देगा।

3. मूर्ति बनाना -  बाज़ार में छोटे-बड़े सांचे आसानी से मिल जाते हैं। मिश्रण को सांचे में भरें और हल्के हाथ से दबाएँ। धूप में 2–3 दिन तक सुखाएँ। सूखने के बाद मूर्ति पूरी तरह कठोर और टिकाऊ हो जाएगी।

4. सजावट और रंगाई - मूर्ति को सजाने के लिए प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल करें – हल्दी से पीला, गेरू से लाल-भूरा, पालक या पत्तियों से हरा, फूलों से अलग-अलग रंग, चाहें तो मिट्टी और गोबर की मूर्ति को साधारण स्वरूप में ही रहने दें, यह और भी प्राकृतिक लगेगी।

विसर्जन के बाद क्या होगा?

जब यह मूर्तियाँ पानी में विसर्जित होंगी तो कुछ ही घंटों में गोबर और मिट्टी घुल जाएगी। पानी को प्रदूषण से बचाएगी और वहीं कीचड़ खाद बनकर पेड़-पौधों के काम आएगी इस तरह बप्पा भी खुश होंगे और धरती माँ भी।

किसानों के लिए नया व्यवसाय : गाँव में गोबर तो हर जगह उपलब्ध है। अगर किसान मिलकर इस काम को अपनाएँ तो यह अच्छा व्यवसाय मॉडल बन सकता है।

Cow dung Ganesh idol business

कैसे?

एक किसान 5 – 10 मूर्तियाँ बनाकर बेच सकता है। अगर कोई समूह (FPO या महिला स्वयं सहायता समूह) यह काम करे तो सैकड़ों मूर्तियाँ तैयार की जा सकती हैं। 6 – 12 इंच की गोबर की मूर्ति की लागत लगभग 30 – 40 रुपये आती है, जबकि बाज़ार में इसे 150 – 300 रुपये तक बेचा जा सकता है। बड़े आकार की मूर्तियाँ और भी अच्छा मुनाफा देती हैं।

मार्केट और मांग

आजकल लोग पर्यावरण के प्रति जागरूक हो रहे हैं। शहरों में खासतौर पर इको-फ्रेंडली मूर्तियों की मांग बढ़ रही है। किसान सीधे शहर की मंडियों, मंदिरों और ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म (Hello kisaan,Amazon, Flipkart, सोशल मीडिया) पर इन्हें बेच सकते हैं। स्कूल, कॉलेज और एनजीओ भी इस तरह की मूर्तियों को बढ़ावा दे रहे हैं।

सरकार और समाज का सहयोग

कई राज्य सरकारें और एनजीओ इको-फ्रेंडली मूर्तियों पर काम कर रहे हैं। अगर किसान इस व्यवसाय को अपनाते हैं तो उन्हें ट्रेनिंग, सांचे और मार्केट से जोड़ने में मदद मिल सकती है।

निष्कर्ष

गणेश चतुर्थी सिर्फ़ श्रद्धा का पर्व नहीं है, यह हमें प्रकृति और पर्यावरण के प्रति भी जिम्मेदार बनाता है। गोबर से बनी गणेश मूर्तियाँ इस दिशा में एक अनोखा कदम हैं। यह मूर्तियाँ बप्पा को सम्मान भी देती हैं और धरती को नुकसान भी नहीं पहुँचातीं। किसानों के लिए यह एक कम लागत और ज्यादा मुनाफ़े वाला व्यवसाय है, जिसे वे आसानी से शुरू कर सकते हैं। आने वाले समय में यह काम न सिर्फ़ उनकी आमदनी बढ़ाएगा, बल्कि पर्यावरण की रक्षा में भी योगदान देगा। तो इस गणेश चतुर्थी, क्यों न हम सब मिलकर संकल्प लें – बप्पा को प्यार से बुलाएँगे और इको-फ्रेंडली मूर्तियों से सम्मान के साथ विदा करेंगे। गणपति बप्पा मोरया ऐसी अमेजिंग जानकारी के लिए जुड़े रहे Hello Kisaan के साथ और ये जानकारी अच्छी लगी हो तो हमे कमेंट कर के जरूर बताइये ।। जय हिंदी जय भारत ।।

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