दुनिया की सबसे ज्यादा दूध देने वाली भैसं


जब हम भारत की बात करते हैं, तो खेती और पशुपालन इस देश की आत्मा हैं। इन दोनों से जुड़ी हजारों कहानियां रोज जन्म लेती हैं खेतों के बाद अगर किसी चीज़ ने किसानों की ज़िंदगी को सबसे ज़्यादा सहारा दिया है, तो वो है दूध उत्पादन। और इसी क्षेत्र में एक नाम आज देशभर में गर्व से लिया जा रहा है रेशमा, हरियाणा की मुर्रा नस्ल की भैंस, जिसने 33.8 लीटर दूध देकर इतिहास रच दिया है। यह रिकॉर्ड हरियाणा के कैथल जिले के बूढ़ाखेड़ा गांव में स्थित विजय गाहल्याण के डेयरी फार्म पर बना।

कहां की है रेशमा?
रेशमा हरियाणा राज्य की एक मुर्रा नस्ल की भैंस है। मुर्रा नस्ल को दुनिया की सबसे बेहतरीन दूध देने वाली नस्लों में गिना जाता है। पर रेशमा ने इस नस्ल की भी सीमाएं तोड़ दी हैं। यह भैंस एक सामान्य गांव की नहीं, बल्कि एक ऐसे पशुपालक की है जिसने उसे प्यार, विज्ञान और धैर्य के साथ तैयार किया। उसके मालिक ने उसे कभी सिर्फ "दूध देने वाला जानवर" नहीं माना, बल्कि अपने परिवार का हिस्सा माना। इसी वजह से आज रेशमा बन गई है पूरे भारत के पशुपालकों के लिए प्रेरणा की मिसाल।
कैसे बना रिकॉर्ड?
इसने 33.8 लीटर दूध एक दिन में देकर राज्य स्तरीय पशु मेले में सबको चौंका दिया। जहाँ एक सामान्य भैंस 8 से 12 लीटर दूध देती है, वहीं रेशमा का यह प्रदर्शन अद्वितीय था। पशु विशेषज्ञ, डॉक्टर और पशुपालक सभी हैरान थे कि एक देसी भैंस इस कदर प्रदर्शन कर सकती है। यह सिर्फ रेशमा का रिकॉर्ड नहीं था, बल्कि एक किसान के समर्पण, उसके समय, मेहनत और वैज्ञानिक सोच का भी परिणाम था।
कैसी है रेशमा की परवरिश?
रेशमा को जिस तरह से पाला गया है, वह किसी इंसान से कम नहीं है:
- उसे दिन में दो बार ताजे हरे चारे, दाने, मिनरल मिक्सचर और साफ पानी का पूरा ध्यान रखा जाता है।
- दिन में दो बार उसकी मालिश की जाती है जिससे उसके शरीर में रक्तसंचार बेहतर बना रहे और वह आरामदायक महसूस करे।
- उसका ठहरने का स्थान हमेशा साफ-सुथरा और डिसइंफेक्टेड रहता है।
- दूध दुहने की प्रक्रिया पूरी तरह स्वच्छ, मशीन आधारित और पशु के आराम का ध्यान रखकर की जाती है।
- इसकी सेहत की नियमित जांच होती है और उसे समय-समय पर टीके भी लगाए जाते हैं।
रेशमा की कीमत और लोकप्रियता
इसकी लोकप्रियता इतनी बढ़ गई है कि देशभर से लोग उसे देखने आने लगे हैं। कई पशुपालकों ने करोड़ों रुपये की बोली भी लगाई, लेकिन रेशमा के मालिक ने साफ कह दिया:
यह हमारी शान है, कोई व्यापार नहीं। वो हमारे परिवार की सदस्य है, और उसकी कोई कीमत नहीं लगाई जा सकती। क्युकी रेशमा उनके लिए सोने के अंडे देने वाली मुर्गी है रेशमा के मालिक का कहना है की अंडे बेके जा सकते है मुर्गी नहीं।
रेशमा की अगली पीढ़ी: एक उम्मीद
अब रेशमा की संतानों को भी उसी तकनीक और देखभाल से तैयार किया जा रहा है ताकि उसके जैसे और उत्कृष्ट भैंसें भारत को मिल सकें। इससे देश के किसानों को अधिक दूध, अच्छी नस्लें और बेहतर आमदनी का अवसर मिलेगा।
सरस्वती' मुर्रा नस्ल की एक प्रसिद्ध भैंस थी, जिसने 32.66 लीटर दूध देकर पाकिस्तान का दूध उत्पादन का विश्व रिकॉर्ड तोड़ा था और हरियाणा के हिसार जिले के लितानी के किसान सुखबीर सिंह ढांडा द्वारा 51 लाख रुपये में बेची गई थी। तो आप खुद सोचो की रेशमा की कितनी अधिक कीमत होगी।
भारत की श्वेत क्रांति को नई दिशा
रेशमा एक संकेत है कि भारत की देसी नस्लें अगर सही तरीके से पाली जाएं, तो वे दुनिया की किसी भी विदेशी नस्ल से पीछे नहीं हैं। अगर हर किसान थोड़ी समझदारी और मेहनत करे, तो देश का हर गांव दूध उत्पादन में आत्मनिर्भर हो सकता है।
निष्कर्ष: एक सोच जो इतिहास बना दे
रेशमा एक मिसाल है मेहनत, समर्पण और सही तकनीक की। उसने यह सिद्ध कर दिया कि भारत की जमीन में सिर्फ अन्न नहीं, बल्कि संभावनाएं भी उपजती हैं। अगर हर किसान भाई अपने पशुओं के लिए थोड़ी समझ, थोड़ा समय और सही देखभाल दे, तो हर पशु रेशमा बन सकता है।
यह कहानी हमें यह बताती है कि असंभव कुछ भी नहीं। बस एक सोच चाहिए बदलने की, बेहतर करने की। और तभी रचे जाते हैं ऐसे इतिहास।
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