मशरुम की खेती का प्रचलन भारत में करीब 200 सालों से है। हालांकि भारत में इसकी व्यावसायिक खेती की शुरुआत हाल के वर्षों में ही हुई है। नियंत्रित वातावरण में मशरुम की पैदावार करना हाल के दिनों का उभरता ट्रेंड है। इसकी लोकप्रियता बढ़ती जा रही है और यह आयात निर्देशित एक व्यवसाय का रुप ले चुका है।
हाल के दिनों में उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान (शीतकालीन महीनों में) जैसे राज्यों में भी मशरुम की खेती की जा रही है। जबकि इससे पहले इसकी खेती सिर्फ हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और पहाड़ी इलाकों तक ही सीमित थी। मशरुम प्रोटीन, विटामिन्स, मिनरल्स, फॉलिक एसिड का बेहतरीन श्रोत है। यह रक्तहीनता से पीड़ित रोगी के लिए जरूरी आयरन का अच्छा श्रोत है।
जहाँ इंडिया में पहले मशरुम खेती या अन्य खेती सम्बन्धी कार्य करना अशिक्षा की पहचान होती थी अर्थात जो लोग खेती करते थे उन्हें अशिक्षित समझ लिया जाता था, और सच्चाई भी यही थी की अधिकतर अशिक्षित लोग ही इस तरह के कार्यों को करने में संलिप्त थे | लेकिन बदलते समय ने कृषि में भी पढ़े लिखे अर्थात शिक्षित लोगों के लिए अवसर पैदा किये हैं और वर्तमान में बहुत सारे नौजवान भी डेयरी फार्मिंग पोल्ट्री फार्मिंग गोट फार्मिंग फिश फार्मिंग एवं जैविक खेती के कार्यों में संलिप्त हैं और अपना व्यापार सफलतापूर्वक चला भी रहे हैं |
मशरुम की किस्मे
1. बटन मशरुम
2. ढिंगरी (घोंघा)
3. पुआल मशरुम (सभी प्रकार के)
बटन मशरुम सबसे ज्यादा लोकप्रिय है। बड़े पैमाने पर खेती के अलावे मशरुम की खेती छोटे स्तर पर एक झोपड़ी में की जा सकती है
खेती का समय
आखिर सितम्बर से लेकर अप्रैल के पहले हफ्ते तक ऊगा सकते हैं ( लेकिन अगर आप एयर कंडीशन कमरा रखते हैं या तापमान काम है तो एक महीना पहले और एक महीना बाद तक भी ऊगा सकते हैं। ) तापमान चौदह से पचीस डिग्री होना चाहिए।
मशरुम की खेती के लिए कमरे का वातावरण कैसा होना चाहिए: मशरुम की खेती के लिए एक ऐसे कमरे की आवश्यकता होती है जिसमे दरवाजे के साथ एक खिड़की भी होनी जरुरी होती है और खिड़की और दरवाजे अगर आमने सामने हों तो और भी बढ़िया रहता है | कमरे में प्लास्टिक बैग को रखने के लिए उद्यमी चाहे तो कमरे में बांस इत्यादि का उपयोग करके रैक तैयार करवा सकता है, या फिर बांस एवं रस्सी का प्रयोग करके भी लटकाने की विधि का प्रयोग करके भी मशरुम के रखने की जगह बनाई जा सकती है | जब उद्यमी द्वारा उपर्युक्त प्रक्रिया करके पैकेट कमरे में प्रविष्ट करा दिए जाते हैं उसके बाद मशरुम की खेती में 15 दिनों तक उस कमरे की लाइट से लेकर दरवाजे खिड़कियाँ सभी बंद रहती हैं | कहने का अभिप्राय यह है की उस कमरे में ऐसा वातावरण होना चाहिए की कहीं से भी हवा उस कमरे के अन्दर प्रविष्ट न हो लगभग पन्द्रह दिनों के बाद वह कमरा खोला जाता है जिसमे मशरुम की खेती की जा रही हो तब तक फफूंद पन्नी के चारों तरफ फैल चुकी होती है |
उसके बाद कमरे में उपलब्ध निकास पंखाके माध्यम से उस फफूंद को हवा की जाती है | मशरुम की खेती में यह निकास पंखा जमीन से पांच सात इंच ही ऊपर लगा होता है | यह प्रक्रिया दो घटे तक चलेगी उसके बाद वापस उस कमरे की दरवाजे, खिड़कियाँ लाइट सभी कुछ बंद कर दिया जाता है उसके बाद एक घंटे बाद फिर से कमरे को दो घंटे के लिए खोल दिया जाता है उसके बाद फिर से एक घंटे के लिए रूम को पूरी तरह से बंद कर दिया जाता है और फिर उसके बाद एक घंटे के लिए फिर से हवा दी जाती है | इस पूरे हवा देने की प्रक्रिया में निकास पंखा सिर्फ दो घंटे चलाया जाता है जबकि टोटल कमरा लगभग छह घंटे खुला रहता है | मशरुम की खेती में भी कमरे का तापमान लगभग 30° से ऊपर नहीं होना चाहिए और जहाँ तक आर्द्रता का सवाल है यह लगभग 70% होनी चाहिए | मशरुम प्लास्टिक के बैग के चारों तरफ अर्थात आड़ी तिरछी निकलती हैं |
मशरुम की खेती में लटकाने की विधि क्या है: मशरुम की खेती करने के लिए कमरे के अन्दर प्लास्टिक के बैगों को जमीन में नहीं रखा जा सकता है इसलिए इस बात के मद्देनज़र अर्थात प्लास्टिक के बैग जिनमे मशरुम अंडे की बिजाई की गई है उन्हें रखने की जगह बनाने के लिए इस पद्यति अर्थात लटकाने की विधि का उपयोग किया जाता है | इसमें कमरे के आमने सामने की दीवारों में लकड़ी की गिट्टिया ठोक दी जाती हैं और उन गिट्टियों के ऊपर मजबूत बांस की लकड़ी को सटा दिया जाता है यह प्रक्रिया दो दो फीट छोड़कर की जाती है उसके बाद इस तिरछी बॉस की लकड़ी में दो दो फीट छोड़कर रस्सी फंसा दी जाती है इसमें रस्सी के चार पलड़े नीचे की तरफ झूले होने चाहिए और बीच बीच में निश्चित दूरी पर गाँठ बाँध दी जाती है हालांकि इसमें कितनी गांठे रस्सी पर बाँधी जायेगीं यह कमरे की ऊंचाई पर निर्भर करता है | इस पद्यति में रस्सी के चार पलड़ों के सहारे प्लास्टिक के बैग को लटकाकर रखा जाता है इसलिए मशरुम की खेती में इसे लटकाने की विधि कहा जाता है |
मशरुम की खेती में रैकिंग विधि क्या है: मशरुम की खेती में रैकिंग विधि से आशय कमरे के अन्दर ऐसा इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने से है जिसमे प्लास्टिक के बैगों को रैक के ऊपर रखा जाय | किसान यह रैक अपनी सुविधानुसार किसी भी प्रकार की लकड़ी एवं तख्तों की मदद से तैयार कर सकता है | या फिर बांस की लकड़ियों को तिरछी बिछाकर एवं नीचे से उन्हें सपोर्ट देकर भी रैक तैयार की जा सकती है | या रैक जमीन से छह सात इंच ऊपर की और से शुरू की जा सकती है अर्थात कहने का आशय यह है की पहली रैक किसान चाहे तो जमीन से केवल छह सात इंच ऊपर उठाकर तैयार कर सकता है लेकिन उसके बाद एक रैक से दुसरे रैक की दूरी 2 से 2.5 फीट होनी जरुरी है ताकि किसान बिना छुए मशरुम बैग पर निगरानी रख सके छूने से मशरुम टूट सकती हैं उन्हें नुकसान पहुँच सकता है | हालांकि यह पद्यति लटकाने वाली पद्यति के मुकाबले थोड़ी महंगी एवं समय खाने वाली होती है |
मशरूम कम्पोस्ट तैयार करना
कम्पोस्ट बनने में पचीस दिन लगते हैं। और आठ बार कम्पोस्ट को पलटा जाता है।
1. गेहूं का भूसा (पुआल ) दस क्विंटल या फिर धान का भूसा (पुआल ) बारह क्विंटल
2. अमोनियम सल्फेट या कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट तीस किलो।
3. सुपर फास्फेट दस किलो
4. पोटाश दस किलो
5.यूरिया दस किलो
6. जिप्सम एक क्विंटल
7. गेहूं का चोकर एक क्विंटल
8. फुराडॉन पांच सो ग्राम।
9. बी एच सी पांच सो ग्राम।
10.बिनोला खली 60 किलो
कम्पोस्ट बनने से पेंतालिस घंटे पहले भूसे की पतली तेह फर्श पर बिछा लें। और अच्छी तरह से उलट पलट करें। फिर पानी के फवारे से अच्छी तरह तर कर दें। इस अवस्था में भूसे में नमि पनझतर प्रतिशत होनी चाहिए। भूसे की लम्बाई तीन इंच हो तो बढ़िया है।भूसा गीला नहीं होना चाहिए। फर्श इस तरह का हो की भूसे पर से उतरा पानी दोबारा ढेर पर फेंका जा सके। लगातार दो दिन तक भूसे पर पानी गिराए फिर देखें अंदर से भूसा सूखा न हो अगर सूखा है तो फिरसे पानी गिराए।
कम्पोस्ट
भिगोने के बाद इसमें नीचे दी गई सामग्री डालें
ऊपर दी गई सभी चीजों को अच्छी तरह से मिक्स कर लें और फिर डेढ़ मीटर चौड़ा ढाई मीटर उच्च और जितना चाहे लम्बा ढेर बनायें। नमी बनाए रखने के लिए एक या दो बार बहरी सतह पर पानी छिड़कें।
फिर पहली पलटी 3 दिन बाद करें।
6 दिन बाद दूसरी पलटी दें
फिर 9 दिन तीसरी पलटी करें और जिप्सम और फुरा डॉन मिला दें।
12 दिन फिर पलटी दें
पांचवी पलटी का समय 15 दिन आता है और बी एच सी मिला दें।
छठी पलटी 18 दिन होगी।
सातवीं पलटी 21 दिन होगी
और 24 दिन कम्पोस्ट बिजाई के लिए तैयार हो जाता है।
फिर कम्पोस्ट को बेड्स पर बिछा दें और एक क्विंटल कम्पोस्ट में 700 ग्राम से 1 किलो स्पान (मशरुम का बीज ) अच्छी तरह से मिलाया जाता है। बिजाई की गई कम्पोस्ट को शेल्फ पर या पॉलीथिन बैग में हल्का दबा के भरें। शेल्फ में एक क्विंटल प्रति वर्ग मीटर और बैग में दस से पंद्रह किलो एक बैग में कम्पोस्ट भरें। बिजाई के बाद इसे रद्दी अखबार से धक दें।
बिजाई के बाद दिन में दो बार हलके पानी का छिड़काव कर लेना चाहिए।छेह से साथ दिन बाद धागा नुमा मशरुम की फफूंदी दिखाई देने लगती है। जो के बारह से पंद्रह दिन में कम्पोस्ट की सतह को सफ़ेद कर देते हैं।फैली हुई फफूंदी को आवरण मुर्दा से धक दिया जाता है।
आवरण मुर्दा
सामग्री दो साल पुराणी गोबर और बगीचे की मिटटी तीन अनुपात को पक्के फर्श पर रख कर इसमें चार प्रतिशत फर्मलीन का घोल पानी में मिला कर अछि यरह मिला लें। इसके बाद इसे तीन से चार दिन तक उलट पलट करते रहें। और पूर्ण रूप से फर्मलीन गंध रहित करें। इसका पी एच सात दशमलव पांच होना चाहिए। अवराम मर्द की छर सेंटीमीटर मोटी सतह। इसके बाद इसकी चार सेंटीमीटर मोटी सतह कम्पोस्ट पर बिछा दें
आवरण मर्द बिछाने के बाद दो प्रतिशत फर्मलीन घोल का छिड़काव करें। आवरण मुर्दा के बाद एक या दो बार पानी का छिड़काव करें। आवरण मर्दा बिछाने के पंद्रह से अठारह दिन बाद मशरूम निकलना स्टार्ट हो जाता है। और पचास से साठ दिन तक निरन्तर मशरूम निकलता है। मशरुम को दिन में एक या दो बार अंगुलिओं के सहारे ऐंठ कर निकल लेना चाहिए।
तुड़वाई
उतर भारत में बटन मशरूम अच्छी रहती है। बटन मशरूम काटने के लिए लम्बी दण्डी रखें ताकि ज्यादा देर तक रखी जाये। ज्यादा छोटी मशरूम न तोड़ें। ये बहुत नाज़ुक चीज है पैकिंग में और तोड़ते समय धयान से रखें और पैकिंग छोटी रखें। इसकी पैकिंग ऐसे करें की न नमी कम हो न ज्यादा । छोटे छोटे छेद होने चाहिए। इसमें ज्यादा वज़न न हो। जिस गाडी में जा रहे हैं उस गाड़ी में ज्यादा गर्मी न हो। आप मशरूम को सुखा कर भी बेच सकते हैं।
पचीस बय साठ फुट की झौंपड़ी में पचपन बाई चार फुट के सोलह सेल में अस्सी क्विंटल कम्पोस्ट डालने पर। पंद्रह क्विंटल बटन मशरुम निकल जाती है। जिसको एक सो बीस रूपए प्रति किलो के हिसब से बेच सकते हैं। और एक लाख अस्सी हज़ार की कुल आमदनी होती है। जिसमे उगने की कुल लगत पेंतालिस हज़ार रुपये आती हैं। बाकी मुनाफा ही है।
मशरुम बाजार की संभावनाएं
मशरुम के मुख्य उपभोक्ता चाइनीज फूड रेस्त्रां, होटल, क्लब और घर-बार होते हैं। बड़े शहरों में मशरुम को सब्जियों की दुकानों के जरिए बेचा जाता है। घरेलू और निर्यात का बढ़ता बाजार और इसका स्वाद और खाने की कीमत मशरुम की खेती के लिए अच्छी और व्यापक संभावनाएं पैदा करती है।
Reading these mushroom articles are always interesting,me as a practising farmer many times shown my desire for a consultant to establish 100kg/day unit.But no response received.i am still open to it.
ReplyMera name Rekha hai , main Jaipur ke pass gaav hai phagi ki rhne wali hun , mujhe mashroom ki kheti krni hai , or iska beez kanha milta h , isko teyar hone ke baad knha sell krna hai , isme kitna kharcha aata hai , or Kya Jaipur me ye kheti possible hai ? Ye sb janana hai ,
ReplyMera name Rekha hai , main Jaipur ke pass gaav hai phagi ki rhne wali hun , mujhe mashroom ki kheti krni hai , or iska beez kanha milta h , isko teyar hone ke baad knha sell krna hai , isme kitna kharcha aata hai , or Kya Jaipur me ye kheti possible hai ? Ye sb janana hai ,
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