तरबूज एक गर्मियों का मुख्य फल है । जोकि मई-जून की तेज धूप व लू के लिये लाभदायक होता है। फल गर्मी में अधिक स्वादिष्ट होते हैं । फलों का सेवन स्वास्थ्य के लिये अच्छा होता है । तरबूजे में पोषक तत्व भी होते हैं जैसे- कैलोरीज, मैग्नीशियम, सल्फर, लोहा, आक्जौलिक अम्ल तथा पोटेशियम की अधिक मात्रा प्राप्त होती है तथा पानी की भी अधिक मात्रा होती है।
तरबूज के लिए रेतीली तथा रेतीली दोमट भूमि सबसे अच्छी होती है । इसकी खेती गंगा, यमुना व नदियों के खाली स्थानों में क्यारियां बनाकर की जाती है । भूमि में गोबर की खाद को अच्छी तरह मिलाना चाहिए । अधिक रेत होने पर ऊपरी सतह को हटाकर नीचे की मिट्टी में खाद मिलाना चाहिए । इस प्रकार से भूमि का पी. एच. मान 5.5-7.0 के बीच होना चाहिए।
भूमि की तैयारी की आवश्यकता अनुसार जुताई कराकर खेत को ठीक प्रकार से तैयार कर लेना चाहिए तथा साथ-साथ छोटी-छोटी क्यारियां बना लेनी उचित रहती हैं । भारी मिट्टी को ढेले रहित कर बोना चाहिए । रेतीली भूमि के लिये अधिक जुताइयों की आवश्यकता नहीं पड़ती । इस प्रकार से 3-4 जुताई पर्याप्त होती हैं ।
तरबूज की किस्में
1.सुगर बेबी
इसकी बेलें औसत लम्बाई की होती हैं और फलों का औसत वनज 2 से 5 किलोग्राम तक होता है । फल का ऊपरी छिलका गहरे हरे रंग का और उन पर धूमिल सी धारियाँ होती हैं । फल का आकार गोल तथा गूदे का रंग गहरा लाल होता है । इसके फलों में 11-13 प्रतिशत टी.एस.एस. होता है । यह शीघ्र पकने वाली प्रजाति है । बीज छोटे, भूरे रंग के होते हैं । जिनका शिरा काला होता है । औसत पैदावार 400-450 कु./है. है । इस किस्म को पककर तैयार होने में लगभग 85 दिन लगते हैं ।
2.दुर्गापुर केसर
यह देर से पकने वाली किस्म है, तना 3 मीटर लम्बे, फलों का औसत वजन 6-8 किलोग्राम, गूदे का रंग पीला तथा छिलका हरे रंग का व धारीदार होता है । बीज बड़े व पीले रंग के होते हैं । इसकी औसत उपज 350-450 कुन्टल प्रति हैक्टेयर होती है ।
3.अर्का मानिक
इस किस्म के फल गोल, अण्डाकार व छिलका हरा जिस पर गहरी हरी धारियां होती हैं तथा गूदा गुलाबी रंग का होता है । औसत फल वनज 6 किलोग्राम, मिठास 12-15 प्रतिशत एवं गूदा सुगंधित होता है । फलों में बीज एक पंक्ति में लगे रहते हैं । जिससे खाने में काफी सुविधा होती है । इसकी भण्डारण एवं परिवहन क्षमता अच्छी है । यह चूर्णिल आसिता, मृदुरोमिल आसिता एवं एन्थ्रेक्नोज रोग के प्रति अवरोधी है । औसत उपज 500 कुन्टल प्रति हैक्टेयर 110-115 दिनों में प्राप्त की जा सकती है ।
4.दुर्गापुर मीठा
इस किस्म का फल गोल हल्का हरा होता है । फल का औसत वनज 7-8 कि.ग्रा. तथा मिठास 11 प्रतिशत होती है । इसकी औसत उपज 400-500 कु./है. होती है । इस किस्म को तैयार होने में लगभग 125 दिन लगते हैं ।
5.काशी पीताम्बर
इसके फल गोल, अण्डाकार व छिलका पीले रंग का होता है तथा गूदा गुलाबी रंग का होता है । औसत फल वनज 2.5 से 3.5 कि.ग्रा. होता है । औसत उपज 400-450 कु./है. होती है ।
खाद एवं उर्वरक
तरबूजे को खाद की आवश्यकता पड़ती है । गोबर की खाद 20-25 ट्रौली को रेतीली भूमि में भली-भांति मिला देना चाहिए । यह खाद क्यारियों में डालकर भूमि तैयारी के समय मिला देना चाहिए । 80 कि.ग्रा. नत्रजन प्रति हैक्टर देना चाहिए तथा फास्फेट व पोटाश की मात्रा 60-60 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर की दर से देनी चाहिए । फास्फेट व पोटाश तथा नत्रजन की आधी मात्रा को भूमि की तैयारी के समय मिलाना चाहिए तथा शेष नत्रजन की मात्रा को बुवाई के 25-30 दिन के बाद देना चाहिए ।
खाद उर्वरकों की मात्रा भूमि की उर्वरा शक्ति के ऊपर निर्भर करती है । उर्वरा शक्ति भूमि में अधिक हो तो उर्वरक व खाद की मात्रा कम की जा सकती है । बगीचों के लिये तरबूजे की फसल के लिए खाद 5-6 टोकरी तथा यूरिया व फास्फेट 200 ग्राम व पोटाश 300 ग्राम मात्रा 8-10 वर्ग मी. क्षेत्र के लिए पर्याप्त होती है । फास्फेट, पोटाश तथा 300 ग्राम यूरिया को बोने से पहले भूमि तैयार करते समय मिला देना चाहिए । शेष यूरिया की मात्रा 20-25 दिनों के बाद तथा फूल बनने से पहले 1-2 चम्मच पौधों में डालते रहना चाहिए ।
बुआई की विधि
तरबूज की बुआई मेड़ों पर 2.5 से 3.0 मीटर की दूरी पर 40 से 50 से.मी. चैड़ी नाली बनाकर करते हैं । इन नालियों के दोनों किनारों पर 60 से.मी. की दूरी पर बीज बोते हैं । यह दूरी मृदा की उर्वरता एवं प्रजाति के अनुसार घट बढ़ सकती है । नदियों के किनारे 60 ग 60 ग 60 से.मी. क्षेत्रफल वाले गड्ढे बनाकर उसमें 1:1:1 के अनुपात में मिट्टी, गोबर की खाद तथा बालू का मिश्रण भरकर थालों को भर देवें तत्पश्चात् प्रत्येक थाले में दो बीज लगाते हैं ।
सिंचाई
यदि तरबूज की खेती नदियों के कछारों में की जाती है तब सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती क्योंकि पौधों की जड़ें बालू के नीचे उपलब्ध पानी को शोषित करती रहती हैं । जब मैदानी भागों में इसकी खेती की जाती है, तो सिंचाई 7-10 दिन के अंतराल पर करते हैं । जब तरबूज आकार में पूरी तरह से बढ़ जाते हैं सिंचाई बन्द कर देते हैं, क्योंकि फल पकते समय खेत में पानी अधिक होने से फल में मिठास कम हो जाती है और फल फटने लगते हैं ।
खरपतवार नियंत्रण
तरबूज के जमाव से लेकर प्रथम 25 दिनों तक खरपतवार फसल को ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं । इससे फसल की वृद्धि पर प्रतिकूल असर पड़ता है तथा पौधे की बढ़वार रुक जाती है । अतः खेत से कम से कम दो बार खरपतवार निकालना चाहिए । रासायनिक खरपतवारनाशी के रूप में बूटाक्लोर रसायन 2 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर की दर से बीज बुआई के तुरंत बाद छिड़काव करते हैं । खरपतवार निकालने के बाद खेत की गुड़ाई करके जड़ों के पास मिट्टी चढ़ाते हैं, जिससे पौधों का विकास तेजी से होता है ।
फलों को तोड़ना
तरबूजे के फलों को बुवाई से 3 या 3½ महीने के बाद तोड़ना आरम्भ कर देते हैं । फलों को यदि दूर भेजना हो तो पहले ही तोड़ना चाहिए । प्रत्येक जाति के हिसाब से फलों के आकार व रंग पर निर्भर करता है कि फल अब परिपक्व हो चुका है । आमतौर से फलों को दबाकर भी देख सकते हैं कि अभी पका है या कच्चा । दूर के बाजार में यदि भेजना हो तो पहले ही फलों को तोड़ना चाहिए । फलों को पौधों से अलग सावधानीपूर्वक करना चाहिए क्योंकि फल बहुत बड़े यानी 10-15 किलो के जाति के अनुसार होते हैं । फलों को डंठल से अलग करने के लिये तेज चाकू का प्रयोग करना चाहिए अन्यथा शाखा टूटने का भय रहता है ।
उपज
तरबूज की पैदावार किस्म के अनुसार अलग-अलग होती है । साधारणत तरबूज की औसतन पैदावार 800-1000 क्विंटल प्रति हेक्टर फल प्राप्त हो जाते हैं ।
भण्डारण
तरबूज को तोड़ने के बाद 2-3 सप्ताह आराम से रखा जा सकता है । फलों को ध्यान से ले जाना चाहिए । हाथ से ले जाने में गिरकर टूटने का भी भय रहता है । फलों को 2 डी०सें०ग्रेड से 5 डी०सें०ग्रेड तापमान पर रखा जा सकता है । अधिक लम्बे समय के लिए रेफरीजरेटर में रखा जा सकता है ।
रोगों से बचाव
तरबूज के लिये भी अन्य कुकरविटस की तरह रोग व कीट लगते हैं लेकिन बीमारी अधिकतर क्यूजैरीयम बिल्ट व एन थ्रेकनोज लगती है तथा कीट रेड बीटिल अधिक क्षति पहुंचाते हैं | बीमारी के लिए रोग-विरोधी जातियों को प्रयोग करना चाहिए तथा कीटों के लिए डी.टी.टी. पाउडर का छिड्काव करना चाहिए ।
ध्यान रहे कि रासायनिक दवाओं के प्रयोग के बाद 10-15 दिन तक फलों का प्रयोग न करें तथा बाद में धोकर प्रयोग करें।
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