आर्टीमीशिया की खेती के लिए एक ग्राम बीज प्रति एकड़ जमीन के लिए पर्याप्त होता है। एक एकड़ खेत में सिम संजीवनी की 35 कुंतल पत्तियां निकलती हैं, जबकि सिम आरोग्या से 30 कुंतल पत्तियां ही निकलती है। जलभराव वाली जगह में आर्टीमीसिया की खेती नहीं करनी चाहिए। गर्मी के मौसम में दस से पंद्रह दिनों में सिंचाई करनी चाहिए, लेकिन ये ध्यान देना चाहिए कि ज्यादा पानी न भरने पाए।


फार्मा कंपनियों कराती हैं खेती

अर्टिमीसिया की खेती के लिए किसान को सीमैप में पंजीकरण कराना होता है। पंजीकरण के बाद फार्मा कंपनी से अनुबंध के जरिए कंपनी ही किसान से अर्टिमीसिया की खेती कराती है। फार्मा कंपनी किसान को बीज देती हैं और फसल तैयार होने के बाद आर्टीमीसिया की सूखी पत्तियां भी किसानों से खरीदती हैं।


बुवाई का समय

आर्टीमीशिया फसल की बुवाई का समय मार्च से जून के बीच का होता हैं । हमे इसमें ये ध्यान रखना हैं की अगर हमे फसल की बुवाई फरवरी मैं करनी हे तो आर्टीमीशिया के पोधो की नर्सरी दिसंबर के अंत मैं बना कर पौधे तैयार किये जातें हैं जिन्हे फिर फरवरी मैं खेत मैं लगाते हैं ।



भूमि

आर्टीमीशिया की खेती को शुरू करने से पहले किसान अपने क्षेत्र की मिट्टी की जाच कर ले। इस तरह अगर किसान को 1 हेक्टेयर मैं आर्टीमीशिया की खेती करनी हे तो इसके लिए उसे करीब 500 वर्ग मीटर मैं इसकी नर्सरी तैयार करनी होगी जिस्मे करीब 66 हजार पौधे तैयार होते हैं ।


खाद और उर्वरक

आर्टीमीशिया की खेती मैं एक और जो सबसे अच्छी बात ये हे की ये बिना खाद और उर्वरक के की जाने वाली खेती हैं।


सिंचाई

सिंचाई में यह ध्यान रखने की जरुरत हे की हमे 12 से 13 दिन के अंतराल मैं सिचाई करने की जरुरत होती हैं ।


आर्टीमीशिया की खेती किसानो के लिए एक अच्छी आय का स्रोत हैं । जिस्मे एक एकड़ मैं इसकी खेती करने मैं 10 से 12 हजार रूपए लगत लगती हैं और इसका उत्पादन मैं करीब 1 लाख तक का मुनाफा होता हैं । दरअसल इसकी खेती मैं इसकी पत्तिया फार्मेसी कंपनी को देनी होती हे जो की एक आंकड़े के अनुसार एक एकड़ मैं करीब 30 क्विंटल निकलती हैं और कंपनी किसानो से 33 से 35 रूपए प्रति किलो के हिसाब से किसानो से पत्तिया लेती हैं।


तैयार होती है मलेरिया की दवा

आर्टीमीशिया एक औषधीय खेती है। यह सामान्य बुखार के साथ-साथ मलेरिया के बुखार के लिए दवा बनाने के काम आती है। इसलिए आयुर्वेदिक कंपनियां इसकी बड़ी मात्रा में खरीद करती हैं। जिससे किसान को घर बैठे ही कम लागत और कम मेहनत के बावजूद फसल की अच्छी कीमत मिल जाती है ।


कैसा है आर्टीमीशिया का मार्केट

औषधीय खेती आर्टीमीशिया का मार्केट भी अलग है। अन्य फसलों में मेहनत कर कटाई करने के बाद उत्पादन को बाजार ले जाकर सस्ती कीमतों पर बेचना पड़ता है। जिससे किसान फसल बाजार तक ले जाने में किराया और खर्च भी अदा करते हैं। लेकिन आर्टीमीशिया की बिक्री घर बैठे ही हो जाती है। इसे किसी बाजार में ले जाने की जरूरत नहीं। आयुर्वेदिक कंपनियों के एजेंट गांव में आकर किसानों की फसल खरीद लेते हैं। यहां तक कि फसल तैयार होने से पहले ही इसकी एडवांस बुकिंग तक हो जाती है। फसल तैयार होते ही एजेंट इसे खरीदकर ले जाते हैं। आर्टीमीशिया की खेती से यहां के किसान ने दिनरात मेहनत कर कम समय में लाखों रुपए का मुनाफा कमा रहे हैं।