पालक की 1 बार बोआई करने के बाद उस की 5-6 बार कटाई की जाती है। इस की फसल में कीटों व बीमारियों का प्रकोप कम पाया जाता है। पालक की फसल पूरे साल ली जाती है। इस के लिए अलग अलग महीनों में इस की बोआई करनी पड़ती है। वैसे अक्तूबर से अप्रैल तक का समय पालक की खेती के लिए सब से मुफीद होता है। पालक की खेती करने से पहले यह देख लेना चाहिए कि जिस खेत में आप उसे बोने जा रहे हैं। वह समतल हो और उस में जलनिकासी का अच्छा इंतजाम हो। पालक की खेती के लिए सब से अच्छी मिट्टी बलुई दोमट या मटियार होती है।
जलवायु
पत्ती वाली सब्जियों पलक महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। पालक की सफलतापूर्वक खेती के लिए ठण्डी जलवायु की आवश्यकता होती है। ठण्ड में पालक की पत्तियों का बढ़वार अधिक होता है जबकि तापमान अधिक होने पर इसकी बढ़वार रूक जाती है, इसलिए पालक की खेती मुख्यत: शीतकाल में करना अधिक लाभकर होता है। परन्तु पालक की खेती मध्यम जलवायु में वर्षभर की जा सकती है।
भूमि एवं तयारी
पालक उगाने के लिए समतल भूमि का चुनाव करना चाहिए जिस जगह का चुनाव करें वहां पानी के निकास कि अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए जीवांश युक्त बलुई या दोमट या मटियार किस्म कि होती है तो उसमे पौधे कि बढ़वार अच्छी होती है ध्यान रहे कि पालक के पौधे अम्लीय जमीन में नहीं बढ़ते जबकि क्षारीय जमीन में इसकी खेती आसानी पूर्वक कि जा सकती है भूमि का पी.एच. मान 6 से 7 के मध्य हो। भूमि की तैयारी के लिए भूमि का पलेवा करके जब वह जुताई योग्य हो जाए तब मिट्टी पलटने वाले हल से एक जुताई करना चाहिए, इसके बाद 2 या 3 बार हैरो या कल्टीवेटर चलाकर मिट्टी को भूरभूरा बना लेना चाहिए। साथ ही पाटा चलाकर भूमि को समतल करें।खरपतवारों के डंठल और अन्य अवांछित वस्तुओं को निकाल देते है।
प्रजातियाँ
पालक की उन्नतशील प्रजातियों में जोबनेर ग्रीन, हिसार सिलेक्सन 26, पूसा पालक, पूसा हरित, आलग्रीन, पूसा ज्योति, बनर्जी जाइंट, लांग स्टैंडिंग, पूसा भारती, पंत कंपोजिटी 1, पालक नंबर 15-16 खास हैं। इन प्रजातियों के पौधे लंबे होते हैं । इन के पत्ते कोमल व खाने में स्वादिष्ठ होते हैं।
पालक के लिए उपयुक्त खाद व उर्वरक
पालक की फसल के लिये 18-20 ट्रौली गोबर की खाद तथा 100 किलो D.A.P. प्रति हेक्टर की दर से बुवाई से पहले खेत तैयार करते समय मिट्टी में मिलाना चाहिए तथा पहली कटाई के बाद व अन्य कटाई के बाद 20-25 किलो यूरिया प्रति हेक्टर देने से फसल की पैदावार अधिक मिलती है। इस प्रकार से वृद्धि शीघ्र होती है।
बगीचे की यह एक मुख्य फसल है। पालक को बोने के लिये खेत को ठीक प्रकार से तैयार करके बोना चाहिए। खेत को तैयार करते समय 4-5 टोकरी गोबर की खाद सड़ी हुई या डाई अमोनियम फास्फेट 500 ग्राम 8-10 वर्ग मी. के लिये लेकर मिट्टी में बुवाई से पहले मिला देते हैं। बाद में फसल को बढ़ने के पश्चात् काटते हैं तो प्रत्येक कटाई के बाद 100 ग्राम यूरिया उपरोक्त क्षेत्र में छिड़कना चाहिए जिससे पत्तियों की वृद्धि शीघ्र होती है तथा सब्जी के लिये पत्तियां जल्दी-जल्दी मिलती रहती हैं।
बुवाई का ढंग एवं बीज की मात्रा
पालक की बुवाई दो तरीकों से की जाती है। पहली विधि में बीज को खेत में छिटककर बोते हैं तथा दूसरा विधि में बीज को समान दूरी पर कतारों में बोते हैं। कतारों की विधि सबसे अच्छी रहती है। इस विधि में निराई-गुड़ाई तथा कटाई आसानी से हो जाती है।
पालक के खेत के लिये बीज की 40 किलो प्रति हेक्टर की आवश्यकता होती है। अच्छे अंकुरण के लिये खेत में नमी का होना अति आवश्यक है । बुवाई के बाद बीज को भूमि की ऊपरी सतह में मिला देना चाहिए ।
बगीचे के लिए बीज की मात्रा 100-125 ग्राम 8-10 वर्ग मी. क्षेत्र के लिये पर्याप्त होती है। पालक को गमलों में भी लगाया जा सकता है। एक गमले में 4-5 बीज बोने चाहिए। गमलों से भी समय-समय पर अच्छी पैदावार मिलती है। बोने के बाद बीज को हाथ से मिट्टी में मिला देना चाहिए तथा पानी की मात्रा अंकुरण के लिए देनी चाहिए।
सिंचाई
यदि बुवाई के समय क्यारी में नमी कि कमी हो तो बुवाई के तुरंत बाद एक हल्की सिंचाई कर दे पालक को अधिक पानी कि आवश्यकता होती है।अत: समय समय पर सिंचाई करते रहे।
खरपतवार नियंत्रण
यदि क्यारी में कुछ खर पतवार उग आये हो तो उन्हें जड़ से उखाड़ देना चाहिए यदि पौधे कम उगे हो तो उस अवस्था में खुरपी- कुदाल के जरिये गुड़ाई करने से पौधे कि बढ़वार अच्छी हो जाती है।
कीट नियंत्रण
साधारणतया पालक के पौधे पर कीट का प्रभाव नहीं पड़ता है। परन्तु फसल पत्ती खाने वाले कैटर पिलर का प्रकोप देखा जाता है यह शुरू में पत्तियों को खाता फिर तने को पूर्णतया नष्ट कर देता है इसके लिए नीम का काढ़ा का घोल बनाकर हर 15-20 दिन में छिड़काव करते रहना चाहिए या २० ली गौ मूत्र में 3 किलो नीम की पत्ती आधा किलो तम्बाकू का घोल बना कर छिड्काब करें।
कटाई
बुवाई के 4 सप्ताह बाद पालक की पहली बार कटाई की जाती है पत्तियां जब पूरी तरह से विकसित हो जाये लेकिन हरी कोमल और रसीली अवस्था में हो तो जमीन कि सतह से ही पौधों को हसिया से काट लेते है कटाई के बाद क्यारी का हलकी सिंचाई कर देते है इससे पौधों कि पैदावार तेज होती है।
उपज
पालक की उपज प्रत्येक जाति के ऊपर निर्भर करती है। पूसा आल ग्रीन 30 हजार किलो तथा पूसा ज्योति की उपज 40 हजार किलो प्रति हेक्टर उपज प्राप्त होती है। औसतन प्रत्येक जाति की उपज 25-35 हजार किलो प्रति हेक्टर पैदावार उपलब्ध हो जाती है। बगीचे में भी 20-25 किलो पत्तियां प्राप्त हो जाती हैं जो कि समय-समय पर मिलती रहती हैं।
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