पिस्ता की खेती उसके भीतर पाए जाने वाले फली के लिए की जाती है जिसे खाया जाता है । इसके पेड़ छोटे से लेकर मध्यम आकार के होते हैं। पेड़ के मुख्य तने से शाखाएं निकलती हैं जो तेजी से बढ़ती है। जंगली इलाके में इसकी लंबाई 20 फीट तक बढ़ जाती है और जहां जुताई की जाती है वहां 10 फीट तक बढ़ती है। अधिकांश देशों में उपजाया जाने वाला पिस्ता काजू परिवार का ही एक सदस्य है।


इस बादाम(नट) में कैलरी की मात्रा काफी कम होती है लेकिन ये फाइटोस्टेरोल्स, एंटीऑक्सीडेंट्स, असंतृप्त वसा, केरोटेनॉयड्स, विटामिन, मिनरल्स और फाइबर से भरे रहते हैं। ये पूरी तरह साफ नहीं है कि पिस्ता बादाम का पेड़ मूल रुप से कहां से आया है लेकिन माना जाता है कि इसकी पैदाइश मध्य पूर्व और मध्य एशिया ही है। पिस्ता एनाकारडिएसी और पिस्टासिया प्रजाति परिवार का है। मुख्यरुप से पिस्ता या तो नर पेड़ है या मादा पेड़। हालांकि फसल पैदा करने के लिए दोनों तरह के पेडों की जरूरत होती है। सामान्य तौर पर बादाम या फली मादा पेड़ पर पैदा होता है वहीं, नर पेड़ मादा पेड़ के फूल के गर्भाधान के लिए पराग मुहैया कराता है। पिस्ता का पेड़ उत्पादन स्तर पर आने में लंबा वक्त लगाता है। पिस्ता बादाम की स्थानीय से लेकर अंतर्राष्ट्रीय बाजार तक जबर्दस्त मांग है। कोई भी आदमी अच्छी जलवायु में पिस्ता की खेती सही तरीके से कर अच्छा मुनाफा कमा सकता है।


भारत में पिस्ता की किस्में

जम्मू-कश्मीर इलाके में पैदा की जाने वाली केरमन, पीटर, चिकू, रेड अलेप्पो और जॉली जैसी कुछ प्रमुख किस्में हैं।


जलवायु

पिस्ता की फसल के लिए मौसम की स्थिति बेहद अहम तत्व है। पिस्ता के बादाम को दिन का तापमान 36 डिग्री सेटीग्रेड से ज्यादा चाहिए। वहीं, ठंड के महीने में 7 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान उनके शिथिल अवधि के लिए पर्याप्त है। इसके पेड़ ज्यादा ऊंचाई वाली जगहों पर ठंडे तापमान की वजह से अच्छी तरह बढ़ नहीं पाते हैं। भारत में पिस्ता के नट्स यानी बादाम को बढ़ने के लिए जम्मू-कश्मीर प्राकृतिक जगह है।


मिट्टी

पिस्ता की खेती कई तरह की मिट्टी में हो सकती है। हालांकि इसके लिए अच्छी तरह से सूखी गहरी चिकनी बलुई मिट्टी उपयुक्त मिट्टी है। ऐसे पेड़ सूखे का आसानी से सामना करने में सक्षम हैं लेकिन जहां ज्यादा आर्द्रता होती है वहां अच्छा नहीं कर पाते हैं। बड़े पैमाने पर पिस्ता की खेती करने के लिए मिट्टी की जांच कराना काफी लाभदायक साबित होगा। जिस मिट्टी में पीएच की मात्रा 7.0 से 7.8 है वहां पिस्ता का पेड़ अच्छी किस्म का और ज्यादा मात्रा में पैदा होता है। ये पेड़ थोड़े कठोर जरूर होते हैं लेकिन उच्च क्षारीयता को काफी हद तक बर्दाश्त भी करते हैं।


खेती के लिए जमीन की तैयारी

पिस्ता की खेती के लिए जमीन की तैयारी में भी दूसरे नट या बादाम जैसी स्थिति होती है। जमीन की अच्छी तरह से जुताई, कटाई और लाइन खींची होनी चाहिए ताकि अच्छी जुताई की स्थिति हासिल की जा सके। अगर मिट्टी में 6-7 फीट की लंबाई में कोई कठोर चीज है तो उसे तोड़ देना चाहिए। क्योंकि पिस्ता की जड़ें गहरे तक जाती है और पानी के जमाव से प्रभावित होती है।


पिस्ता की खेती में प्रसारण

सामान्यतौर पर पिस्ता के पेड़ को लगाने के लिए अनुकूल पिस्ता रुटस्टॉक के जरिए पौधारोपन किया जाता है। इस रुटस्टॉक या पौधे को नर्सरी में भी उगाया जा सकता है। सामान्यतौर पर पौधारोपन नीचे स्तर पर किया जाता है और अंकुरित पेड़ को उसी साल या अगले साल लगा दिया जाता है। यह सब कुछ रुटस्टॉक(पौधे) के आकार को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए।


सिंचाई

वैसे तो पिस्ता का पेड़ सूखे को बर्दाश्त कर लेता है लेकिन उनकी देखभाल पर्याप्त नमी के साथ होनी चाहिए(जब उन्हें इसकी आवश्यकता हो)। पानी हासिल करने के लिए गीले घास का इस्तेमाल एक बेहतर तरीका हो सकता है। पानी का अच्छी तरह से उपयोग हो सके इसके लिए ड्रिप सिंचाई का इस्तेमाल किया जा सकता है। यहां पानी के जमाव से भी बचना चाहिए। बारिश के मौसम में सिंचाई की जरूरत नहीं होती है।


खाद और ऊर्वरक

दूसरे बादाम(नट) पेड़ की तरह ही पिस्ता को भी नाइट्रोजन की जरूरत होती है, क्योंकि बादाम जैसी फसल के लिए नाइट्रोजन एक महत्वपूर्ण ऊर्वरक माना जाता है। हालांकि पौधे में पहले साल ऊर्वरक का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए लेकिन उसके बाद अगले साल से की जा सकती है। आने वाले मौसम के दौरान प्रत्येक पिस्ता के पौधे में 450 ग्राम अमोनियम सल्फेट की मात्रा दो भाग में डाली जानी चाहिए। बाद के वर्षों में प्रति एकड़ 45 से 65 किलो वास्तविक नाइट्रोजन (एन) प्रयोग करना चाहिए। आनेवाले मौसम के दौरान नाइट्रोजन को दो भागों में बांटकर इस्तेमाल किया जाना चाहिए।


पिस्ते की खेती में अंतर सांस्कृतिक कार्यप्रणाली

पिस्ता की खेती उसके भीतर पाए जाने वाले फली के लिए की जाती है जिसे खाया जाता है। इसके पेड़ छोटे से लेकर मध्यम आकार के होते हैं। पेड़ के मुख्य तने से शाखाएं निकलती हैं जो तेजी से बढ़ती है। जंगली इलाके में इसकी लंबाई 20 फीट तक बढ़ जाती है और जहां जुताई की जाती है वहां 10 फीट तक बढ़ती है। अधिकांश देशों में उपजाया जाने वाला पिस्ता काजू परिवार का ही एक सदस्य है।पिस्ता के पेड़ को इस तरह तैयार किया जाना चाहिए कि वो लगातार ऊपर की ओर बढ़ता जाए और उसका ओपन-वेस शेप में विकास हो। पेड़ के मध्य भाग को इस तरह खुला रखना चाहिए कि वो सूर्य की रोशनी को ग्रहण कर सके ताकि अच्छी तरह से फूल खिल सके और बेहतर फल लग सके। ऐसी जरूररत चौथे या पांचवें शीत ऋतु में पड़ सकती है। पेड़ों को पतला ऱखने के लिए दूसरे दर्जे की या कम महत्वपूर्ण शाखाओं की छंटाई कर देनी चाहिए। एक बार जब पेड़ का ढांचा अच्छी तरह शक्ल ले ले तब हल्की-फुल्की कटाई-छटाई की ही जरूरत पड़ेगी। पेड़ के स्वस्थ विकास और अच्छी किस्म के बादाम(नट) के लिए खर-पतवार का नियंत्रण दूसरा कार्य है। इस बात को सुनिश्चित करें कि पेड़ों के बीच अच्छी तरह सफाई रहे, नहीं तो जंगली घास पोषक तत्वों को हासिल करने के लिए संघर्ष करना शुरू कर देते हैं। बर्म्स के लिए तृणनाशक प्रक्रिया या जंगली घास(पहले उगनेवाले या बाद में उगनेवाले घास के लिए) को खत्म करने की प्रक्रिया शुरू कर देनी चाहिए। पौधे को गीले घास से ढंकने से खर-पतवार पर जहां नियंत्रण होता है वहीं, मिट्टी में पानी की मात्रा बनी रहती है।


पिस्ता की फसल की कटाई

पिस्ता का पेड़ बादाम या नट के उत्पादन के लिए काफी लंबा समय लेता है। इसके अंकुरित पेड़ अगले पांच साल तक फल देने के लिए तैयार हो जाते हैं और पौधारोपन के 12 साल के बाद से पर्याप्त फल देना शुरू कर देते हैं। (अंकुरण के पांच साल बाद पिस्ता का पेड़ फल देने लगता है। जब तक सातवां या आठवां सीजन नहीं हो जाता है तब तक इस फसल की कटाई नहीं की जाती है। पहला पूरी तरह से फल उत्पादन 12वें साल के आसपास शुरू होता है)। जब इसके गोला से छिलका उतरने लगता है तब समझ लेना चाहिए कि फल पूरी तरह तैयार हो गया है। आमतौर पर ये अवधि 6 से 10 दिनों तक बढ़ सकती है। कटाई के दौरान सावधान रहने की जरूरत है और अविकसित केरनेल से बचना चाहिए।


पिस्ता की पैदावार- पिस्ता बादाम (नट) की पैदावार मौसम, किस्में और फसल प्रबंधन के तौर-तरीके पर निर्भर करता है। पौधारोपन के 10 से 12 साल बाद पिस्ता का पौधा करीब 8 से 10 किलो का उत्पादन करता है।