ऐसा समझा जाता है कि पेड़-पौधे उगाने के लिये खाद, मिट्टी, पानी और सूरज की रोशनी की जरूरत होती है। लेकिन सच यह है कि पौधे के लिये सिर्फ तीन चीजों – पानी, पोषक तत्व और सूरज की रोशनी की जरूरत होती है। इस तरह यदि हम बिना मिट्टी के ही पेड़-पौधों को किसी और तरीके से पोषक तत्व,पानी और रोशनी उपलब्ध करा दें तो बिना मिट्टी के भी पेड़-पौधे उगा सकते हैं।

 

क्या होती है हाइड्रोपोनिक खेती (Hydroponic Farming )

हाइड्रोपोनिक खेती में मिट्टी के स्थान पर नारियल के अवशेष का प्रयोग होता है । इस तकनीक से लगातार 7 महीनों तक सब्जियों का उत्पादन होता है। बिना मिट्टी के खेती करने का तरीका हाइड्रोपोनिक्स कहलाता है। इसमें फसलें उगाने के लिए द्रव्य पोषण या पौधों को दिए जाने वाले खनिज पहले ही पानी में मिला दिए जाते हैं। इस तकनीक द्वारा टमाटर, खीरा, चेरी टमाटर,तरबूज आदि की खेती की जा सकती है



पेड़-पौधे अपने आवश्यक पोषक तत्व जमीन से लेते हैं, लेकिन इस तकनीक में पौधों के लिये आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध कराने के लिये पौधों में एक विशेष प्रकार का घोल डाला जाता है। इस घोल में पौधों की बढ़वार के लिये आवश्यक खनिज एवं पोषक तत्व मिलाए जाते हैं। पानी, कंकड़ों या बालू आदि में उगाए जाने वाले पौधों में इस घोल की महीने में दो-एक बार केवल कुछ बूँदें ही डाली जाती हैं। इस घोल में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, मैग्नीशियम, कैल्शियम, सल्फर, जिंक और आयरन आदि तत्वों को एक खास अनुपात में मिलाया जाता है, ताकि पौधों को आवश्यक पोषक तत्व मिलते रहें।



किन देशों में ज्यादा हो रहा है हाइड्रोपोनिक्स तकनीक का इस्तेमाल

हाइड्रोपोनिक्स तकनीक का इस्तेमाल ज्यादातर पश्चिमी देशों में किया जा रहा है। लेकिन ऐसा नहीं है कि इस इसका इस्तेमाल हमारे देश में नहीं किया जाता है। भारत में इस तकनीक का इस्तेमाल राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे शुष्क क्षेत्रों में किया जा रहा है। जहां चारे के उत्पादन में काफी दिक्कत आती है। इन राज्य में बिना मिट्टी और जमीन के फसल उगाई जा रही है। यहां फसलों के उत्पादन के लिए विपरीत जलवायु है। बावजूद इसके यह तकनीक यह वरदान साबित हो रही है। राजस्थान के वेटरनरी विश्वविद्यालय, बीकानेर में मक्का, जौ, जई और उच्च गुणवत्ता वाले हरे चारे वाली फसलें उगाने के लिये इस तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। इस तकनीक का इस्तेमाल गोवा में भी काफी हो रहा है। दरअसल गोवा में जानवरों को चरने के लिए चारागाह की कमी है। वहां इस तकनीक का इस्तेमाल करके जानवरों के लिए चारा उगाया जा रहा है। इतना ही नहीं भारत सरकार की राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत गोवा डेयरी की ओर से इंडियन काउंसिल फॉर एग्रीकल्चरल रिसर्च के गोवा परिसर में हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से हरा चारा उत्पादन की इकाई की स्थापना की गई है। इस तरह की करीब 10 इकाइयां गोवा के विभिन्न डेहरी कोऑपरेटिव सोसायटी में लगाई गई है। हर इकाई से प्रतिदिन करीब 600 किलोग्राम हरा चारा उत्पादन किया जाता है


हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से होने वाले फायदे [Benefits of Hydroponics in Hindi]

इस तकनीक की मदद से बेहद ही कम खर्चे में अच्छे फसल की खेती की जा सकती है। अंदाज है की 5 से 8 इंच के ऊंचाई वाले पौधों के लिए इस तकनीक में प्रतिवर्ष करीब 1 रुपए से भी कम का खर्च आता है।

1. इस तकनीक के माध्यम से आपको जगह का चुनाव करने की चिंता नहीं रहती। केवल जहां आप खेती करना चाहते हैं वहां सूर्य की रोशनी मौजूद होनी चाहिए।

2. परंपरागत बागवानी करने की तुलना में हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से खेती करने पर करीब 20 प्रतिशत पानी की बचत होती है।

3. हाइड्रोपोनिक तकनीक से अगर बड़े स्तर पर खेती की जाए तो हर तरह की साग सब्जी को लोग अपने घरों में ही उपजा सकेंगे। इससे न केवल खाने-पीने की वस्तुएं सस्ती कीमतों पर उपलब्ध होंगी बल्कि ट्रांसपोर्टेशन खर्च भी बचेगा।

4. इस तकनीक से पैदा होने वाली फसलों के लिए मिट्टी की आवश्यकता नहीं होती है। जिस कारण से इनमें बीमारियां नहीं होती है। नतीजा यह होता है कि इस दौरान कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।

5. हाइड्रोपोनिक्स विधि का इस्तेमाल आप केवल घरों में ही नहीं बल्कि अपने खेतों में भी कर सकते हैं इसका फायदा यह होगा कि आपकी फसलें आधे समय में ही तैयार हो जाएंगी।

6. इस तकनीक के माध्यम से की जाने वाली खेती मैं जिन फसलों को उगाया जाता है उनमें प्रोटीन की मात्रा परंपरागत खेती करके उगाए जाने वाली सब्जियों से ज्यादा होता है।

7. इस तकनीक की मदद से गेहूं जैसे अनाजों के पौधे 7 से 8 दिन में तैयार हो जाते हैं। जबकि सामान्य तौर पर यह पौधे तैयार होने में 28 से 30 दिन का वक्त लेते हैं।



यह तकनीक कैसे काम करती है उसकी पूरी जानकारी के लिए निचे दी हुई वीडियो देखें



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