सरकार के साथ साझा कर रहे हैं अपने अनुभवों को , जिससे मिल सके किसानों को सरकार की योजनाओं का लाभ:- 

मिली जानकारी के अनुसार,उनका जन्म राजपुरा गांव, तहसील कुचामन सिटी, नागौर में  हुआ। बी.एससी. करने के बाद एक कम्पनी में नौकरी मिल गई, पर वो तो कुछ अलग ही करना चाहते थे। संन 2004 में अखबार में ‛राजस्थान मेडिसिनल प्लांट्स बोर्ड’ द्वारा जारी विज्ञप्ति देखी। उन्होंने किसानों से औषधीय खेती के लिए प्रस्ताव मांगे थे। फिर वो बोर्ड कार्यालय गये और पूरी जानकारी प्राप्त की। औषधीय व सगंध पौधों की खेती कब की जाती है, फसलों को कब बोया जाता है, किस समय हार्वेस्ट किया जाता है, यह सब पता किया । यहीं से मन बनाया कि जीवन में कुछ नया करना है।”

2005-06 में सबसे पहले राकेश ने जड़ी-बूटियों की खेती शुरू की। पिताजी, ताऊजी सहित कुछ रिश्तेदारों को औषधीय फ़सलों की खेती के लिए जैसे-तैसे तैयार किया। परियोजना प्रस्ताव बनाकर बोर्ड कार्यालय में जमा करवाया। 


परेशानियों का भी करना पड़ा सामना:-

जब भी आप कुछ नये कार्य की शुरुआत करते हैं, तो कुछ परेशानियो का सामना तो करना ही पड़ता है। इसी प्रकार कुछ परेशानियां राकेश जी के सामने भी आयी परन्तु उन्होंने इससे हार नहीं मानी और पूरी लगन और मेहनत के साथ लगे रहे।समुचित जानकारी के अभाव में शुरुआत में गलत फ़सलों का चयन किया, जिससे फायदा नहीं मिल सका। वे फ़सलें स्थानीय वातावरण के अनुकूल नहीं थीं। मुलेठी, स्टीविया, सफेद मूसली जैसी फ़सलों के कारण किसानों को नुकसान हुआ। मन विचलित हुआ, पर हार नहीं मानी। इस बार गर्म जलवायु व कम पानी वाले वातावरण के लिए कुछ फ़सलों ऐलोवेरा, सोनामुखी, तुलसी, आँवला, बेलपत्र, गोखरू, अश्वगंधा को चुना, जिससे न सिर्फ़ लाभ हो, बल्कि किसानों को आसानी से बाज़ार भी मिल जाए।


सवा सौ से अधिक फ़सलों की कर रहे खेती:-

एलोवेरा, अश्वगंधा, तुलसी, आँवला, सफेद मूसली, स्टीविया, गिलोय, कोंच, लेमन ग्रास, गुड़मार, करौंदा, कट करंज, शतावर, भूमि आँवला, बेल पत्र, नीम, हिंगोट, सहजन, काकनाशा, इसबगोल, असालिया, अलसी, गोखरू, गुड़हल, हीना, सनाय, गुग्गल सहित 90 प्रकार के उत्पादों का किसान भंडारण कर रहे हैं।