तेज़ गंध और छोटे कंकड़ की तरह दिखने वाले हींग की बहुत थोड़ी सी मात्रा भी खाने का स्वाद बदल देती है। भारत में रसोई घरों में रहने वाली यह एक ज़रूरी मसाला है। हींग का इस्तेमाल पूरे भारत में बड़े पैमाने पर होता है। हालांकि कई लोग हींग की गंध को पसंद नहीं करते हैं लेकिन यह पाचक की तरह भी इस्तेमाल किया जाता है।

यह अमूमन सूरज की रौशनी से दूर एयर-टाइट बॉक्स में रखा जाता है। अचानक हींग की चर्चा इसलिए शुरू हो गई क्योंकि हिमाचल प्रदेश में हींग की खेती शुरू हुई है। कौंसिल फॉर साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रीयल रिसर्च (सीएसआईआर) का कहना है कि यह पहली बार है जब भारत में हींग की खेती हो रही है।

सीएसआईआर ने पालमपुर स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ़ हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नॉलॉजी (आईएचबीटी) इसकी खेती शुरू होने की घोषणा की है।

हिमाचल के लाहौल स्पीति क्षेत्र में हींग की खेती शुरू की गई है। सीएसआईआर के डायरेक्टर शेखर मांदे का दावा है कि भारत में पहली बार हींग की खेती की जा रही है।

क्या वाकई में भारत में हींग की खेती करना बहुत मुश्किल काम है? अगर भारत में हींग की खेती नहीं होती तो ये फिर कहाँ से आता है और इतने बड़े पैमाने पर भारत में क्यों इस्तेमाल किया जाता है।


भारत में हींग कहाँ से आता है?

भारत हींग नहीं उपजाता लेकिन भारत में इसका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल ज़रूर होता है। एक अनुमान के मुताबिक दुनिया में पैदा होने वाले हींग का 40 फ़ीसदी भारत में इस्तेमाल होता है।

भारत में इस्तेमाल होने वाला हींग ईरान, अफ़ग़ानिस्तान और उज़्बेकिस्तान जैसे देशों से आता है। कुछ व्यापारी इसे कज़ाख़स्तान से भी मंगवाते हैं।अफ़ग़ानिस्तान से आने वाले हींग की मांग सबसे ज़्यादा है।

सीएसआईआर के मुताबिक भारत हर साल 1,200 टन हींग इन देशों से 600 करोड़ रुपये खर्च कर आयात करता है। इसलिए अगर भारत में हींग उपजाने में कामयाबी मिलती है तो जितनी मात्रा में हींग आयात होता है, उसमें कमी आएगी और इसकी क़ीमत भी कम होगी। हालांकि हींग का उत्पादन इतना आसान नहीं।


हींग इतना महंगा क्यों है?

हींग का पौधा गाजर और मूली के पौधों की श्रेणी में आता है। ठंडे और शुष्क वातावरण में इसका उत्पादन सबसे अच्छा होता है।

पूरी दुनिया में हींग की क़रीब 130 किस्में हैं। इनमें से कुछ किस्में पंजाब, कश्मीर, लद्दाख और हिमाचल प्रदेश में उपजाई जाती है लेकिन इसकी मुख्य किस्म फेरुला एसाफोइटीडा भारत में नहीं पाई जाती है।

सीएसआईआर जिस बीज की मदद से हींग की खेती कर रहा है वो ईरान से मंगवाया गया है. दिल्ली स्थित नेशनल ब्यूरो ऑफ़ प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेज (आईसीएआर-एनबीपीजीआर) ने ईरान से हींग की नौ किस्में मंगवाई है। आईसीएआर-एनबीपीजीआर ने यह साफ़ किया है कि तीस साल में पहली बार हींग के इस बीज को भारत लाया गया है।

लेकिन सिर्फ़ पौधे उगाने का कतई मतलब नहीं है कि ये हींग पैदा करेगा। हालांकि बीज बोने के बाद चार से पांच साल लगेंगे वास्तविक उपज पाने में. एक पौधे से क़रीब आधा किलो हींग निकलता है और इसमें क़रीब चार साल लगते हैं। इसलिए हींग की क़ीमत इतनी ज़्यादा होती है।

हींग की क़ीमत इस पर भी निर्भर करती है कि इसे कैसे पैदा किया जा रहा है। भारत में शुद्ध हींग की क़ीमत अभी क़रीब 35 से 40 हज़ार रुपये है। इसलिए सीएसआईआर के वैज्ञानिकों को लगता है कि अगर हींग की खेती कामयाब हुई तो इससे किसानों को जोरदार फ़ायदा होगा।


हींग की खेती कब ओर कैसे की जाती है ?

हींग सोफ की प्रजाति का एक ईरानी मूल का पाैधा है, जो पहाड़ी क्षेत्रों मे फलत-फूलता है | साल 2020 से भारत में हींग की बड़े स्तर पर खेती की शुरुआत हो चुकी है | नए किसानों को सलाह है की उचित ज्ञान और प्रशिक्षण प्राप्त करके ही इसकी खेती करें, बता दे की इस रिसर्च से पहले भारत में हींग की खेती सम्भव नहीं हो सकी थी या फ़िर यू कहे की एक ग्राम भी हींग की उत्पादन नहीं हो सका।


हींग पौधे के किस भाग से प्राप्त की जाती है ?

इनके पौधे के नीचे मिट्टी मे प्रकन्दों और ऊपरी जडों से गोंद के जैसे शुष्क वानस्पतिक दूध रिसता रहता है, इनको एकत्र करके पाउडर बनाके हींग के रूप में प्रयोग लिया जाता है | बाजारों मे हिंग को स्टार्च व गोंद मिला कर ईट के रुप में बेचा जाता है।