किसानों के लिए कपास की खेती फायदे का सौदा साबित हो रही है। इस चालू सीजन की बात करें तो बाजार में किसानों को कपास के भाव काफी अच्छे मिल रहे है। इससे किसान कपास उत्पादक किसान उत्साहित हैं। जानकारी के अनुसार इस इस समय बाजार में कपास के भाव सरकार द्वारा तय किए गए एमएसपी से करीब 15 प्रतिशत अधिक चल रहे हैं। इससे किसानों को बाजार में कपास बेचने में अधिक मुनाफा हो रहा है। बाजार में कपास की आवक शुरू हो गई है। किसान कपास लेकर व्यापारियों को बेच रहे हैं। मीडिया से मिली जानकारी के अनुसार पिछले एक महीने में देश में कपास की कीमतों में 5 प्रतिशत वृद्धि हुई है, अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में तेजी के रुझान के चलते कपास के दाम ऊंचे हुए हैं। वहीं भारतीय कपास की मांग होने से इसका निर्यात में भी तेजी आने का अनुमान हैं। वैश्विक बाजार में रूई के दाम में आई तेजी के बाद देश में कपास का भाव इसके एमएसपी से 15 फीसदी से ज्यादा तेज हो गया है।


बाजार भाव और एमएसपी में अंतर?

सरकार ने कपास (लंबा रेशा) का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 5,825 रुपए प्रति क्विंटल और मध्यम रेशा वाली कपास का एमएसपी 55,15 रुपए प्रति क्विंटल तय किया है। कारोबारियों ने बताया कि गुजरात में कपास का भाव 6,500 रुपए प्रति क्विंटल चल रहा है। वहीं पिछले महीने के मुकाबले कपास की कीमतें 44,000 रुपए से बढक़र 46,600 रुपए प्रति कैंडी हो गई हैं, क्योंकि घरेलू कपास का उत्पादन पहले की अपेक्षा काफी कम होने की उम्मीद है। कपास की एक कैंडी 356 किलोग्राम की होती है।


वैश्विक बाजार में भारतीय कपास की मांग बढ़ने से आई कीमतों में तेजी:-

बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि कपास की कीमतों में तेजी 2021-22 में अमेरिका, ब्राजील और भारत जैसे प्रमुख कपास उत्पादक देशों में कम बुवाई के अनुमानों के कारण बनी रहेगी। अमेरिका और ब्राजील सहित प्रमुख कपास उत्पादक देशों में कपास का उत्पादन घटने का अनुमान है क्योंकि किसानों ने मक्का और सोयाबीन की बुआई को तरजीह दी है जिन्होंने घरेलू कीमतों को भी समर्थन दिया है। भारतीय कपास की कीमतें वैश्विक कपास की कीमतों से 13 प्रतिशत सस्ती हैं। निर्यात पहले के 60 लाख टन के अनुमान से अधिक होने की उम्मीद है।


देश में कपास का इस बार कितना उत्पादन?

मीडिया में प्रकाशित खबरों के आधार पर कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष के अनुसार, देश में रूई का उत्पादन चालू कॉटन सीजन 2020-21 (अक्टूबर-सितंबर) में 360 लाख गांठ है, पिछले साल का बकाया स्टॉक 125 लाख गांठ और आयात 14 लाख गांठ को मिलाकर कुल आपूर्ति 499 लाख गांठ रहेगी, जबकि घरेलू खपत मांग 330 लाख गांठ और निर्यात 54 लाख गांठ होने के बाद 30 सितंबर 2021 को 115 लाख गांठ कॉटन अगले सीजन के लिए बचा रहेगा। हालांकि कपड़ा मंत्रालय के तहत गठित कमेटी ऑनफ कॉटन प्रोडक्शन एंड कन्जंप्शन (सीओसीपीसी) के अनुसार, देश में चालू सीजन 2020-21 में कॉटन का उत्पादन 371 लाख गांठ रहने का अनुमान है, जिसमें से 28 फरवरी 2021 तक 294.73 लाख गांठ कॉटन की आवक हो चुकी थी।


अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्यों है कपास की इतनी मांग?

कपास एक नकदी फसल हैं। यह मालवेसी कुल का सदस्य है। संसार में इसकी दो किस्म पाई जाती है। प्रथम को देशी कपास (गासिपियाम अर्बोरियाम)एवं (गा; हरबेरियम) के नाम से जाना तथा दूसरे को अमेरिकन कपास (गा, हिर्सूटम) एवं (बरवेडेंस)के नाम से जाता है। इससे रुई तैयार की जाती हैं, जिसे सफेद सोना कहा जाता हैं। कपास के पौधे बहुवर्षीय, झाड़ीनुमा वृक्ष जैसे होते है। जिनकी लंबाई 2-7 फीट होती है। पुष्प, सफेद अथवा हल्के पीले रंग के होते है। कपास के फल बाल्स कहलाते है, जो चिकने व हरे पीले रंग के होते हैं इनके ऊपर ब्रैक्टियोल्स कांटो जैसी रचना होती है। फल के अन्दर बीज व कपास होती है। कपास की फसल उत्पादन के लिए काली मिट्टी की आवश्यकता पड़ती है। भारत में सबसे ज्यादा कपास उत्पादन गुजरात में होता है। कपास से निर्मित वस्त्र सूती वस्त्र कहलाते है। कपास में मुख्य रूप से सेल्यूलोस होता है। कपास तीन प्रकार की होती है- लंबे रेशे वाली कपास, मध्यम रेशे वाली कपास, छोटे रेशे वाली कपास। बता दें कि कपास की एक गांठ का वजन 170 किलोग्राम होता है।