केंद्रीय गृह मंत्रालय की वार्षिक दुर्घटना में मृत्यु और भारत में आत्महत्याएं (एडीएसआई) की रिपोर्ट के अनंतिम संख्या में पता चलता हैं की एक साल पहले कृषि के क्षेत्र मैं से किसानो का पलायन होने कि वजह से आत्महत्याओं मैं इजाफा हुआ था क्योकि किसान दूसरे व्यवसाय में काम तलाशने मैं जुट गया और काम न मिलने की कारण आत्महत्या करने को मजबूर हो गया।
पिछले साल भारत में सामान्य मानसून देखी गई - जो कृषि उत्पादन के एक महत्वपूर्ण निर्णायक था, जिसके कारण 2016 मैं 2015 के मुकाबले किसानों की आत्महत्याओं में गिरावट आई, जबकि 2015 में कई राज्यों में एक अप्रिय दुष्प्रभाव देखा गया था।
2016 में कृषि आत्महत्या की संख्या 1996 हैं जो 21 सालों मैं सबसे कम है। पिछले एडीएसआई रिपोर्टों से पता चलता हैं है कि 2004 में 18,241 किसानो ने आत्महत्या की थी जो सबसे ज्यादा संख्या थी,1995 में किसान की आत्महत्या की संख्या 10,270 थी।
लोकसभा में मंगलवार को एक प्रश्न के जवाब में कृषि मंत्रालय के राज्यवार आंकड़ों के मुताबिक, 2016 में खेती मजदूरों की आत्महत्याएं 4,595 से बढ़कर 5019 हो गईं। इसमें 9.2% की वृद्धि हुई। इस तथ्य पर प्रकाश डाला गया की कि एक सामान्य मानसून के बावजूद, भारत के विशाल कृषि अर्थव्यवस्था के निचले भाग में भूमिहीन मजदूरों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा। हालांकि, भूमि धारक किसानों की आत्महत्याएं 2015 में 8,007 से 2016 में 6,351 हो गईं हैं, इसमें 21% की कमी आई हैं ।
2016 में, महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश में कुल 7,865 आत्महत्याएं हुई थीं, यह भारत मैं हुई आत्महत्यों का 70% हैं। दस राज्यों ने सात से कम आत्महत्या की रिपोर्ट दर्ज की गई । साथ ही पश्चिम बंगाल और बिहार जैसे बड़े राज्यों ने कोई भी मामला दर्ज नहीं किया।
एलायंस फॉर सस्टेनेबल एंड होलिस्टिक कृषि मैं कृषि नीति वकालत के संयोजक कविता कुरुगंती ने कहा "आंकड़े काफी विश्वसनीय नहीं हैं उदाहरण के लिए, पंजाब में, अग्रणी विश्वविद्यालयों द्वारा अध्यन से पता चलता है कि कृषि मजदूरों की आत्महत्या की दर किसानों की तुलना में अधिक है। जबकि संसद में प्रस्तुत आंकड़े एक अलग तस्वीर दिखा रहे हैं "।
पश्चिम बंगाल रिपोर्टिंग मैं कोई संदेहास्पद सवाल नहीं है क्योंकि पहले एडीएसआई रिपोर्टों में 2014 में 230 आत्महत्याएं और 2011 में 807 दिखायी गईं। राज्य में आलू के किसानों की आत्महत्या की नियमित खबरें हैं। राज्यों में 2015 की तुलना में 2016 में आत्महत्याओं में वृद्धि हुई हैं। यह दर्शाता है कि जब कृषि संकट की बात आती है तो कोई भी सरकार, राज्य या केंद्र वास्तव में कुछ नहीं कर पाती हैं।
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