भारतीय कॉफी दुनिया भर की सबसे अच्छी गुणवत्ता की कॉफ़ी मानी जाती है, क्योंकि इसे छाया में उगाया जाता है, इसके बजाय दुनिया भर के अन्य स्थानों में कॉफ़ी को सीधे सूर्य के प्रकाश में उगाया जाता है। भारत में लगभग 250000 लोग कॉफ़ी उगाते हैं; इनमें से 98 प्रतिशत छोटे उत्पादक हैं। 2009 में, भारत का कॉफ़ी उत्पादन दुनिया के कुल उत्पादन का केवल 4.5% था। भारत में उत्पादन की जाने वाली कॉफ़ी का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा निर्यात कर दिया जाता है। निर्यात किये जाने वाले हिस्से का 70 प्रतिशत हिस्सा जर्मनी, रूस संघ, स्पेन, बेल्जियम, स्लोवेनिया, संयुक्त राज्य, जापान, ग्रीस, नीदरलैंड्स और फ्रांस को भेजा जाता है। इटली को कुल निर्यात का 29 प्रतिशत हिस्सा भेजा जाता है। अधिकांश निर्यात स्वेज़ नहर के माध्यम से किया जाता है।


कभी सोचा है अगर आप कॉरपोरेट सेक्टर में 14 साल की आरामदायक नौकरी को छोड़कर खेती करने का फैसला लेते हैं तो लोग आपको क्या कहेंगे? यही न कि पागल हो गए हो क्या या ये कि दिमाग फिर गया है। कर्नाटक के रहने वाले मैडिएरा थिमइयाह ने 9 साल पहले ऐसा ही एक फैसला लिया और आज वे लोगों को रोजगार देने के साथ ही लाखों रुपये कमा भी रहे हैं।


दक्षिण भारत में कॉफी पीने का चलन आम है और दिन-ब-दिन इसकी खपत भी बढ़ रही है। यही वजह है कि बेहतर भविष्य के लिए अब अच्छी जॉब छोड़ कर युवा कॉफी की खेती करने की ओर आगे बढ़ रहे हैं। मैडिएरा थिमइयाह इनमें से एक हैं और कुर्ग जिले से 15 किलोमीटर दूर मडिकेरी तहसील के रहने वाले हैं। वे मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छी जॉब करते थे, लेकिन अब नौकरी छोड़कर कॉफी की खेती मे अपना भविष्य संवार रहे हैं।


मिली जानकारी के अनुसार मैडिएरा बताते हैं, "मैं बैंकिंग और बीमा के क्षेत्र में अच्छी जॉब कर रहा था, लेकिन कॉरपोरेट कल्चर से परेशान मैंने जॉब छोड़ दी और खेती करने की ओर रुख किया। पिछले 9 सालों में हमने कॉफी की खेती में कई नए तरह के प्रयोग किए हैं और उन प्रयोगों की वजह से हमारी कॉफी बड़ी-बड़ी कंपनियों में जा रही है। इसके साथ ही कॉफी के शौकीन भी सीधे हमसे कॉफी खरीदते हैं।"


सात एकड़ से 45 हेक्टेयर तक बढ़ा रकबा थिमइयाह के मुताबिक 9 साल पहले जब उन्होंने कॉफी की खेती शुरू की थी तो मात्र 7 एकड़ का रकबा उनके पास था। आज वे अपनी कड़ी मेहनत के साथ 45 हेक्टेयर जमीन पर खेती कर रहे हैं। इसके साथ ही उन्होंने लोगों को रोजगार भी दिया। शुरुआत दौर में 5-6 लेबर काम करते थे, जिनकी संख्या आज 50 के करीब है।