क्या भैंसें सिर्फ काली होती हैं?

18 Jul 2025 | NA
क्या भैंसें सिर्फ काली होती हैं?

जब हम भैंस की बात करते हैं, तो सबसे पहले दिमाग में एक भारी-भरकम, काले रंग की जानवर की तस्वीर उभरती है। भारत जैसे देश में, जहां भैंसें दूध उत्पादन का एक बड़ा जरिया हैं, वहां यह सोच आम है कि भैंसें सिर्फ काली ही होती हैं। लेकिन क्या आपने कभी भूरी भैंस देखी है? अगर नहीं देखी, तो यह जानना दिलचस्प होगा कि भैंसों का रंग केवल काला ही नहीं बल्कि भूरा भी हो सकता है। चलिए, इस लेख में जानते हैं कि भैंसों का रंग क्यों बदलता है, भूरी भैंस कौन सी नस्ल होती है, और यह क्यों खास मानी जाती है।

क्या भैंसें सिर्फ काली होती हैं भदावरी भैंस

भदावरी भैंस: भारत की भूरी भैंस

भारत में पाई जाने वाली भदावरी भैंस (Bhadawari Buffalo) एक ऐसी नस्ल है, जिसका रंग भूरा होता है। इसका मुख्य क्षेत्र उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश का सीमावर्ती इलाका है – खासकर आगरा, इटावा, और भिंड जिलों में।

भदावरी भैंस की खासियतें:

  • रंग: चमकदार तांबई (Copper-colored) या भूरा
  • दूध उत्पादन: 6-10 लीटर प्रतिदिन
  • दूध में फैट की मात्रा: 7% से अधिक – यानी दूध गाढ़ा और पौष्टिक
  • शरीर की बनावट: मध्यम आकार की, छोटी सींगें और मजबूत टांगें
  • अनुकूलन: यह नस्ल गर्म और शुष्क जलवायु में भी आसानी से जीवित रह सकती है
  • भदावरी भैंस का भूरा रंग इसलिए होता है क्योंकि इसमें मेलेनिन की मात्रा काले रंग की भैंसों की तुलना में कम होती है। यही इसे एक अलग पहचान देता है।

भैंसों का रंग काला क्यों होता है? 

भैंसों के शरीर का रंग उनकी त्वचा में पाए जाने वाले मेलेनिन (Melanin) नामक तत्व पर निर्भर करता है।

मेलेनिन एक प्राकृतिक रंगद्रव्य (पिगमेंट) होता है, जो त्वचा, बाल और आंखों को रंग देता है। जिन भैंसों की त्वचा में मेलेनिन की मात्रा अधिक होती है, उनका रंग गहरा यानी काला होता है। यही वजह है कि ज़्यादातर भैंसों का रंग गहरा काला होता है।

काले रंग की भैंसों की त्वचा सूरज की किरणों को अधिक अवशोषित कर लेती है, जिससे उन्हें गर्मी में ज्यादा परेशानी नहीं होती। इसलिए यह रंग कई क्षेत्रों में अनुकूल माना जाता है।

क्या भैंसों का भूरा रंग भी सामान्य है?

जी हां, कुछ भैंसों का रंग हल्का भूरा या तांबई (कॉपर-ब्राउन) होता है। इसका कारण मेलेनिन की कम मात्रा होती है। इसके अलावा, भैंस की नस्ल भी इसके रंग पर असर डालती है। कुछ खास नस्लों की भैंसें स्वाभाविक रूप से भूरी होती हैं, जो कि उनके अनुवांशिक गुणों की वजह से होता है।

क्या सिर्फ नस्ल ही रंग का कारण होती है?

नहीं, नस्ल के अलावा पोषण, स्वास्थ्य, और पर्यावरणीय परिस्थितियां भी भैंस के रंग पर असर डाल सकती हैं।

1. विटामिन D की कमी

अगर भैंस को पर्याप्त धूप नहीं मिलती, तो उसकी त्वचा में विटामिन D की कमी हो सकती है। इससे त्वचा की रंगत हल्की या भूरी होने लगती है।

 समाधान: भैंसों को रोजाना कम से कम 2-3 घंटे धूप में खुला रखना चाहिए।

2. पोषण की कमी

खासकर मिनरल्स और प्रोटीन की कमी से भी त्वचा का रंग फीका पड़ सकता है। इससे भैंस सुस्त भी हो जाती है और दूध उत्पादन पर भी असर पड़ता है।

 समाधान: संतुलित आहार देना और समय-समय पर मिनरल मिक्सचर देना चाहिए।

3. उम्र और हार्मोनल बदलाव

कभी-कभी उम्र के साथ भी भैंसों की त्वचा की रंगत हल्की हो सकती है, जैसे इंसानों में बाल सफेद होते हैं।

भूरी भैंसों का पालन क्यों करें?

आज के समय में भदावरी जैसी भूरी भैंसों की मांग फिर से बढ़ रही है, और इसके पीछे कई कारण हैं:

 दूध में ज्यादा फैट – जिससे घी और मलाई अधिक निकलती है

 कम चारे में भी ज्यादा उत्पादन

 गर्मियों में बेहतर सहनशीलता

 विशेष पहचान और बाजार में अच्छी कीमत

इसके अलावा, सरकार भी देशी नस्लों के संरक्षण और संवर्धन के लिए योजनाएं चला रही है, जिनका लाभ उठाकर किसान भूरी भैंस पालकर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।

 भैंस का रंग भूरा क्यों होता है

संक्षेप में: भैंसों का रंग क्यों बदलता है?

कारण                                                                        रंग में बदलाव का असर

मेलेनिन की  मात्रा कम मेलेनिन                                         हल्का रंग, ज्यादा = काला रंग

नस्ल                                                                           भदावरी जैसी नस्लो में भूरा रंग सामान्य

विटामिन D की कमी                                                   त्वचा फीकी या हल्की भूरी

पोषण की कमी                                                           त्वचा का रंग हल्का, बाल झड़ना

उम्र और हार्मोन                                                            रंग में प्राकृतिक बदलाव

निष्कर्ष:

भैंसों का रंग केवल काला ही नहीं होता, बल्कि कुछ भैंसें भूरी भी होती हैं। इसका मुख्य कारण उनकी त्वचा में मेलेनिन की मात्रा और नस्ल होती है। खासकर भदावरी जैसी भूरी नस्लें भारत में पारंपरिक रूप से पाली जाती रही हैं और अब फिर से इनका महत्व बढ़ रहा है। साथ ही, सही पोषण, धूप और देखभाल से आप अपनी भैंस की सेहत और रंग दोनों को बेहतर बना सकते हैं।

अगर किसान भाई भी भैंस पालन की योजना बना रहे हैं, तो भूरी भैंसों पर जरूर ध्यान दें – ये कम लागत में ज्यादा मुनाफा देने वाली नस्ल साबित हो सकती हैं।  ऐसी जानकारी के लिए जुड़े रहे Hello Kisaan के साथ और आपको ये जानकारी कैसे लगी कमेंट कर के जरूर बताइये ।। जय हिंदी जय किसान ।।

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