ब्लड मील जानिए क्या है 'नॉन वेज मिल्क' से इसका संबंध?


कृषि की दुनिया में आज हर कोई जैविक और प्राकृतिक उर्वरकों की ओर लौट रहा है। गोबर, कंपोस्ट, वर्मी कम्पोस्ट – ये सब तो आपने सुना ही होगा। लेकिन एक ऐसा भी उर्वरक है जिसका नाम सुनते ही कुछ लोग चौंक जाते हैं – ब्लड मील (Blood Meal)। नाम से ही साफ है कि ये खून से जुड़ा है। पर क्या वाकई इसे खेती में इस्तेमाल किया जाता है? क्या यह 'नॉन वेज मिल्क' से जुड़ा है? और क्या यह किसानों के लिए वरदान है या विवाद?
चलिए इस पूरे विषय को सरल भाषा में समझते हैं।

क्या होता है ब्लड मील?
ब्लड मील एक जैविक उर्वरक है जो जानवरों के खून को सुखाकर बनाया जाता है, विशेषकर गाय, भैंस, बकरी या सूअर जैसे स्लॉटरहाउस में कटे जानवरों का। इस खून को उच्च तापमान पर सुखाकर उसका पाउडर बनाया जाता है जो गहरे लाल-भूरे रंग का होता है। इसे मिट्टी में मिलाया जाता है ताकि उसमें नाइट्रोजन की मात्रा बढ़े, जो पौधों की वृद्धि के लिए अत्यंत जरूरी तत्व है।
ब्लड मील की मुख्य विशेषताएं:
गुण विवरण
नाइट्रोजन मात्रा लगभग 12% से 15% तक – जो इसे सबसे शक्तिशाली प्राकृतिक नाइट्रोजन स्रोत बनाता है
गंध तीखी और जानवरों जैसी, जो जंगली जानवरों को भी आकर्षित कर सकती है
उपयोग पत्तेदार फसलों जैसे पालक, मेथी, धनिया, फूलगोभी, भिंडी आदि में विशेष उपयोगी
प्रभाव तेजी से असर दिखाता है, पौधों में हरियाली और ताकत लाता है
खेती में उपयोग कैसे करें?
1. मिट्टी में मिलाना: ब्लड मील को रोपण से पहले मिट्टी में अच्छी तरह मिलाएं।
2. तरल घोल बनाना: पानी में ब्लड मील घोलकर पौधों की जड़ों में डाल सकते हैं।
3. खास ध्यान: ज्यादा मात्रा में उपयोग से पौधे जल सकते हैं, इसलिए मात्रा संतुलित रखें (एक वर्ग मीटर में 1-2 टेबल स्पून पर्याप्त)।

ब्लड मील के नुकसान:
ज्यादा प्रयोग से पौधे जल सकते हैं कुत्ते, बिल्ली या जंगली जानवरों को आकर्षित कर सकता है शाकाहारी किसानों को नैतिक आपत्ति हो सकती है विवादास्पद होने के कारण कुछ जगहों पर प्रतिबंधित
क्या यह 'नॉन वेज उर्वरक' है?
जी हां! ब्लड मील एक तरह का 'नॉन वेज फर्टिलाइज़र' है, क्योंकि ये जानवरों के शरीर के एक अंग (खून) से बनाया जाता है।
इसी तरह से, हाल के समय में 'नॉन वेज मिल्क' या 'बायो मिल्क' जैसे शब्द भी सामने आए हैं। अमेरिका जैसे देशों में डेयरी उद्योग में गायों को प्रोटीन युक्त फीड देने के लिए मांसाहारी बाय-प्रोडक्ट जैसे: सूअर का खून,मछली की हड्डी और मांस,पोल्ट्री वेस्ट और मृत जानवरों के अवशेष
भारत में स्थिति:
भारत में ब्लड मील का उपयोग अभी बहुत ज्यादा नहीं है, परंतु गाजर, मूली, गोभी, फूलों की खेती करने वाले कुछ किसानों ने इसके प्रभावी परिणाम देखे हैं।
लेकिन धार्मिक और सामाजिक कारणों से बहुत सारे किसान इससे दूरी बनाए रखते हैं।
क्या ब्लड मील भविष्य है?
भविष्य में जैसे-जैसे जैविक खेती का दायरा बढ़ेगा और किसानों को कम समय में अधिक उत्पादन की जरूरत पड़ेगी, वैसे ही ऐसे तेज़ असर वाले उर्वरकों की मांग भी बढ़ेगी। परंतु इसका प्रयोग करना हर किसान की नीति, धार्मिक सोच और बाजार की मांग पर निर्भर करेगा।
निष्कर्ष:
ब्लड मील एक शक्तिशाली लेकिन संवेदनशील उर्वरक है। अगर आपका लक्ष्य जैविक खेती में बेहतर उत्पादन और मिट्टी की सेहत सुधारना है, तो यह एक विकल्प हो सकता है – बशर्ते आप इसकी उत्पत्ति से सहमत हों। जैसे 'नॉन वेज मिल्क' नई सोच को जन्म दे रहा है, वैसे ही ब्लड मील भी खेती में एक नया और असरदार अध्याय है – जो विज्ञान, परंपरा और सोच का संतुलन मांगता है। ऐसी जानकारी के लिए जुड़े रहे Hello Kisaan के साथ ।। जय हिन्द जय भारत।।
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