भारत और ऑस्ट्रेलिया की खेती में तुलना


"खेतों में पसीना बहाने वाला किसान असली हीरो होता है।" किसान देश को खाना देता है, जीवन देता है। भारत और ऑस्ट्रेलिया – दोनों ही देश खेती में आगे हैं, लेकिन दोनों के तरीके अलग हैं। भारत में खेती भाव से जुड़ी है, वहीं ऑस्ट्रेलिया में खेती को एक बिज़नेस की तरह देखा जाता है।
चलिए जानते हैं कि इन दोनों देशों की खेती में क्या फर्क है और कौन-सी बातें एक-दूसरे से सीखी जा सकती हैं।

1. मौसम और जमीन
भारत: भारत एक बड़ा देश है। यहाँ हर तरह का मौसम मिलता है – कहीं गर्मी, कहीं ठंड, कहीं ज़्यादा बारिश तो कहीं सूखा। इसलिए भारत में पूरे साल खेती की जाती है। भारत की आधे से ज़्यादा जमीन खेती के लिए सही है। उत्तर भारत में गेहूं और चावल, दक्षिण में दालें और तिलहन, पश्चिम में कपास और गन्ना, और पूर्व में चाय व जूट उगाया जाता है।
ऑस्ट्रेलिया: ऑस्ट्रेलिया का बहुत बड़ा हिस्सा सूखा और गर्म है। यहाँ सिर्फ 6% जमीन खेती के लिए ठीक है। यहाँ गेहूं, जौ, फल, सब्जी और अंगूर की खेती होती है। साथ ही मवेशी पालन भी बहुत होता है।
2. खेती करने का तरीका
भारत: भारत में बहुत से किसान अब भी पुराने तरीके से खेती करते हैं। बैल और हल, ट्यूबवेल, बारिश पर निर्भर रहना, गोबर या यूरिया से खाद देना – ये सब आम बात है।अब कुछ जगहों पर ट्रैक्टर, ड्रिप सिंचाई और जैविक खेती शुरू हुई है, लेकिन हर किसान तक ये चीजें अभी नहीं पहुंची हैं।
ऑस्ट्रेलिया: ऑस्ट्रेलिया में खेती मशीनों से होती है। वहाँ के किसान GPS, सेंसर, ड्रोन और कंप्यूटर से खेत की निगरानी करते हैं। वहाँ खेती स्मार्ट तरीके से होती है – कम मेहनत, ज्यादा फायदा।

3. फसल की पैदावार
भारत: भारत में फसलें बहुत उगाई जाती हैं, लेकिन प्रति एकड़ में उत्पादन थोड़ा कम होता है। जैसे गेहूं की औसत पैदावार 3-4 टन प्रति हेक्टेयर होती है। भारत में भंडारण, बाजार और दाम की दिक्कतों की वजह से नुकसान होता है।
ऑस्ट्रेलिया: यहाँ पैदावार थोड़ी कम है – करीब 2.5 टन/हेक्टेयर गेहूं – लेकिन गुणवत्ता बहुत अच्छी होती है। यहाँ का गेहूं, अंगूर और फल विदेशों में बेचे जाते हैं और बहुत अच्छे दाम मिलते हैं।
4. किसानों की स्थिति
भारत: भारत का किसान बहुत मेहनती है, लेकिन उसे कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है – कर्ज, मौसम की मार, फसल का कम दाम और बिचौलियों की लूट। 86% किसान छोटे हैं, जिनके पास बहुत कम ज़मीन होती है।
ऑस्ट्रेलिया: ऑस्ट्रेलिया के किसान पढ़े-लिखे और तकनीकी जानकारी वाले होते हैं। वहाँ खेती एक व्यवसाय की तरह होती है। सरकार किसान को हर सुविधा देती है, इसलिए किसान आर्थिक रूप से मज़बूत होते हैं।
5. सरकार की मदद
भारत: सरकार किसानों के लिए कई योजनाएं चलाती है – जैसे MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य), फसल बीमा, सस्ती खाद और बिजली। लेकिन इनका फायदा हर किसान तक नहीं पहुंचता। कई बार जानकारी की कमी और कागज़ी झंझट हो जाती है।
ऑस्ट्रेलिया: यहाँ सरकार किसानों को नई मशीनें खरीदने में मदद देती है। उन्हें खेती सीखने के लिए ट्रेनिंग भी दी जाती है। वहाँ की नीतियाँ साफ और आसान होती हैं।

6. मवेशी पालन और दूध
भारत: भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है। यहाँ गाय, भैंस और बकरी पालना आम है। लेकिन दिक्कत ये है कि पशु आहार और इलाज की सुविधाएं कम हैं, जिससे उत्पादन प्रभावित होता है।
ऑस्ट्रेलिया: यहाँ मवेशी पालन पूरी तरह से वैज्ञानिक तरीके से होता है। गायों को चिप लगाकर उनकी सेहत और दूध की जानकारी रखी जाती है। यहाँ का दूध और चीज़ विदेशों में बिकता है।
7. जैविक खेती और टिकाऊ खेती
भारत: भारत में अब जैविक खेती फिर से शुरू हो रही है। उत्तराखंड, सिक्किम और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में किसान रसायन छोड़कर गोबर और जैविक खाद से खेती कर रहे हैं। लेकिन जैविक उत्पादों को बेचने में दिक्कत होती है।
ऑस्ट्रेलिया: यहाँ टिकाऊ और जैविक खेती को बढ़ावा दिया जाता है। यहाँ के जैविक उत्पादों की मांग विदेशों में भी बहुत है।
क्या दोनों देश एक-दूसरे से कुछ सीख सकते हैं?
भारत को ऑस्ट्रेलिया से सीखना चाहिए: खेती में मशीनों और तकनीक का इस्तेमाल, खेती को व्यवसाय की तरह देखना, वैज्ञानिक ढंग से पशुपालन, अच्छी पैकिंग और फसल की ब्रांडिंग
ऑस्ट्रेलिया भारत से ये बातें सीख सकता है: अलग-अलग तरह की फसलें उगाना, पारंपरिक खेती का अनुभव, सहकारी खेती का तरीका, कम लागत में ज्यादा उत्पादन करना
निष्कर्ष:
भारत और ऑस्ट्रेलिया – दोनों देश खेती में अपनी-अपनी तरह से मजबूत हैं। भारत में भाव और मेहनत है, ऑस्ट्रेलिया में तकनीक और स्मार्ट प्लानिंग। अगर दोनों देश एक-दूसरे से अच्छी बातें सीखें, तो किसानों की जिंदगी और भी बेहतर हो सकती है। ऐसी ही आसान और काम की जानकारी के लिए जुड़े रहिए Hello Kisaan के साथ। और अपकाये जानकारी कैसी लगी हमे कमेंट कर के जरूर बताइये ।। जय हिंदी! जय भारत ।।
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