गौमूत्र और जीवामृत से खेती


आज के समय में खेती दो रास्तों पर चल रही है एक ओर हैं रासायनिक खाद, कीटनाशक और मशीनीकरण के बल पर की जा रही खेती। और दूसरी ओर धीरे-धीरे उभर रही है एक देसी, सादी, लेकिन दमदार तकनीक – गौमूत्र और जीवामृत से खेती। अब सवाल ये उठता है – क्या वाकई सिर्फ गोबर, गौमूत्र और कुछ देसी उपायों से खेती मुनाफा दे सकती है? क्या रासायनिक दवाओं और यूरिया के बिना खेत लहलहा सकते हैं? तो जवाब है – हां, बिलकुल! और ये हम नहीं कह रहे, खुद देशभर के हजारों किसान कह रहे हैं, जो आज प्राकृतिक खेती की ओर लौटकर फिर से खेती में मुनाफा और सुकून दोनों पा रहे हैं।

क्या है जीवामृत? और क्यों बन गया है खेती का अमृत?
जीवामृत कोई फैक्ट्री में बना टॉनिक नहीं, ये हमारे आंगन, गोशाला और खेत से निकली देसी तरकीब है। इसमें गाय का गोबर, गौमूत्र, गुड़, बेसन/आटा और खेत की मिट्टी मिलाकर एक खमीरी घोल तैयार किया जाता है।जीवामृत में जो ताकत है, वो 3 बातों में छुपी है: 1. सूक्ष्मजीवों की बमात भरमार होती है – ये मिट्टी को जिंदा कर देते हैं। 2. खेत की मिट्टी की जैविक शक्ति को बढ़ाते हैं – जिससे पौधों की जड़ों तक पोषण अच्छे से पहुंचता है। 3. नकली खाद-दवाओं की ज़रूरत ही नहीं पड़ती।
इसे हफ्ते में एक बार सिंचाई के साथ या छिड़काव के रूप में खेत में इस्तेमाल किया जाता है।
गौमूत्र – एक बहुउपयोगी अमृत
गौमूत्र सिर्फ पूजा-पाठ में काम आने वाली चीज़ नहीं है, ये खेती में: प्राकृतिक कीटनाशक (Bio-Pesticide), रोगनाशक (Anti-Fungal) और फसल बढ़ाने वाला (Growth Booster) भी है।
कैसे इस्तेमाल करें?
1 लीटर गौमूत्र + 10 लीटर पानी इस घोल को छिड़काव करें हर 10-15 दिन में। कीट भी भागेंगे, और पत्तों में हरियाली भी आएगी। कई किसान इसमें नीम की पत्तियां, लहसुन, धतूरा और अदरक मिलाकर देसी कीटनाशक काढ़ा बनाते हैं जो 100% असरदार होता है।
खेती में बदलाव: किसानों के ज़मीनी अनुभव
1. हरभजन सिंह (भटिंडा, पंजाब) “पहले हर सीजन में 25-30 हजार की खाद-दवा लगती थी। अब मैं सिर्फ 2 गायों के गोबर-गौमूत्र से 3 एकड़ संभाल लेता हूँ। लागत आधी, मुनाफा दुगना।”
2. शारदा देवी (सीतापुर, यूपी) “मुझे रसायन की गंध से चक्कर आते थे। बेटे ने जीवामृत बनाना सिखाया। आज मेरा खेत जैविक सब्जियों से भरा है – गांव की महिलाएं मुझसे आकर सीखती हैं।”
3. रवि यादव (गुंड्लुपेट, कर्नाटक) “मैंने हल्दी और अदरक में सिर्फ गौमूत्र स्प्रे किया। पहले जो फसल सड़ जाती थी, अब चमकती है। और हैदराबाद की एक कंपनी ने सीधा कॉन्ट्रैक्ट कर लिया।”

रासायनिक बनाम जीवामृत खेती – फर्क देखिए खुद
बिंदु रासायनिक खेती जीवामृत आधारित खेती
लागत बहुत ज्यादा बेहद कम
मिट्टी की सेहत खराब होती जाती है सुधरती जाती है
उत्पादन शुरू में ज्यादा थोड़ी कमी, लेकिन स्थिर
बाजार में कीमत सामान्य जैविक मार्केट में ज्यादा
रोग और कीट दवा के बिना नहीं संभलते देसी तरीके से नियंत्रण
किन फसलों में सबसे ज़्यादा असरदार?
जीवामृत और गौमूत्र का असर लगभग हर फसल पर अच्छा देखा गया है, लेकिन कुछ प्रमुख फसलें जिनमें यह खास असर दिखाता है: धान, गेहूं, जौ, मक्का चना, अरहर, मूंग, उड़द सब्जियां – लौकी, कद्दू, मिर्च, टमाटर, बैंगन, भिंडी फल – नींबू, केला, पपीता, अमरूद, आंवला मसाले – हल्दी, धनिया, अदरक
देसी सुझाव – सीधे खेत से
खेत की मिट्टी में साल में 1 बार गोबर की खाद जरूर मिलाएं। फसल बदलते रहें – जैसे एक बार दलहन, दूसरी बार अनाज। मिट्टी की जांच (Soil Testing) हर 2 साल में कराएं। एक गड्ढा बना लें जिसमें जीवामृत हर हफ्ते तैयार करें। कीट नाशक के लिए नीम, लहसुन, गौमूत्र का काढ़ा सबसे असरदार है।
ज़हर से मुक्ति, धरती से दोस्त।
गौमूत्र और जीवामृत से की गई खेती सिर्फ एक तकनीक नहीं, एक दर्शन है। यह सिर्फ खेत नहीं बदलती, किसान का नज़रिया बदल देती है। इससे जमीन दोबारा उपजाऊ बनती है। खेत की सेहत सुधरती है। किसान आत्मनिर्भर बनता है। और सबसे जरूरी – फसल में सेहत होती है, ज़हर नहीं। किसानों से एक निवेदन अगर आप भी सोचते हैं कि खेती में खर्च बढ़ गया है अगर आप बार-बार कीटनाशकों से परेशान है और अगर आप ज़मीन से रिश्ता दोबारा जोड़ना चाहते हैं तो आज ही गौमूत्र और जीवामृत से खेती की शुरुआत करें। थोड़ा सब्र रखें, थोड़ी मेहनत करें – देखना, आपकी जमीन खुद बोलेगी – "धन्यवाद किसान, तूने मुझे ज़िंदा किया!" ऐसी ही देसी, सच्ची और ज़मीन से जुड़ी जानकारी के लिए जुड़े रहिए Hello Kisaan के साथ। और अगर आपको लेख अच्छा लगा हो, तो अपने गांव के वाट्सएप ग्रुप में जरूर भेजें।। जय हिन्द जय भारत ।।
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