क्या पुंगनुर गाय सबसे छोटी गाय है ?


भारत में पशुपालन केवल आजीविका का साधन नहीं, बल्कि परंपरा, आस्था और विज्ञान का अद्भुत संगम भी है। भारत की हर नस्ल की गाय अपने विशेष गुणों के लिए जानी जाती है – कोई अधिक दूध देती है, कोई कम चारा खाकर भी स्वस्थ रहती है, तो कोई गर्मी-सर्दी सहन करने में माहिर होती है। इन्हीं में से एक है पुंगनुर गाय (Punganur Cow) – जिसे अक्सर “दुनिया की सबसे छोटी गाय” कहा जाता है। लेकिन क्या ये सच में प्राकृतिक रूप से इतनी छोटी है? या फिर इसे इंसानों ने विशेष तरीके से विकसित किया है? आइए विस्तार से जानते हैं।

पुंगनुर गाय का परिचय
पुंगनुर गाय का नाम आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले के एक कस्बे “पुंगनूर” के नाम पर पड़ा है। यह नस्ल भारत की दुर्लभ और लुप्तप्राय देसी नस्लों में गिनी जाती है। इसकी खास बात है इसका बहुत छोटा कद, कम चारा खाने की क्षमता और अच्छा दूध उत्पादन।
क्या पुंगनुर गाय सबसे छोटी है?
हाँ, पुंगनुर गाय को दुनिया की सबसे छोटी गायों में से एक माना जाता है।
एक वयस्क पुंगनुर गाय की ऊँचाई लगभग 90 से 110 सेंटीमीटर होती है और वजन 100 से 200 किलोग्राम के बीच होता है।
इसका रंग सफेद, धूसर या हल्का भूरा हो सकता है। इसके सींग छोटे, मुड़े हुए और मोटे होते हैं।
क्या पुंगनुर गाय प्राकृतिक रूप से छोटी है या यह सिलेक्टिव ब्रीडिंग (Selective Breeding) का नतीजा है?
उत्तर है – दोनों।
प्राकृतिक रूप से छोटी नस्ल: पुंगनुर नस्ल दक्षिण भारत के सूखे और गर्म क्षेत्रों में पनपी। इन इलाकों में चारे और पानी की कमी होती है, इसलिए यहां की देसी नस्लों ने खुद को धीरे-धीरे छोटे आकार में ढाल लिया ताकि कम भोजन में भी जी सकें।
सिलेक्टिव ब्रीडिंग से और छोटा आकार: स्थानीय किसानों और पशु पालकों ने पुंगनुर गायों में छोटे कद, कम चारे में जीवित रहने की क्षमता और दूध उत्पादन जैसे गुणों को ध्यान में रखकर चुनिंदा प्रजनन (Selective Breeding) किया। इससे यह नस्ल और भी परिष्कृत होती गई।
नतीजा: सिलेक्टिव ब्रीडिंग के कारण पुंगनुर गाय आज इतनी छोटी दिखती है कि वह बकरी जैसी लगती है, लेकिन उसके अंदर एक अच्छी दूध देने वाली गाय के सारे गुण हैं।
पुंगनुर गाय का दूध – गुणों की खान
- पुंगनुर गाय भले ही आकार में छोटी हो, लेकिन इसका दूध गुणवत्ता में बेहद उत्कृष्ट होता है।
- इसमें ए2 प्रोटीन, अधिक फैट (8% तक) और औषधीय गुण पाए जाते हैं।
- यह दूध बच्चों और बुजुर्गों के लिए बहुत फायदेमंद माना जाता है।
- दिन में यह गाय औसतन 2 से 4 लीटर दूध देती है।
कम खर्च, ज्यादा मुनाफा
पुंगनुर गाय का एक बड़ा फायदा ये है कि यह कम चारा खाती है, कम पानी पीती है और बहुत कम जगह में भी पल सकती है।
यह गुण शहरी और छोटे किसानों के लिए इसे बहुत उपयोगी बनाता है।
इसके रखरखाव का खर्च भी कम होता है, जिससे छोटे पशुपालकों के लिए यह एक बढ़िया विकल्प बनती है।

विलुप्ति की कगार पर
एक समय था जब पुंगनुर गाय बड़ी संख्या में मिलती थी, लेकिन आज इसकी संख्या बहुत कम रह गई है।
आधुनिक क्रॉस ब्रीडिंग और विदेशी नस्लों की ओर बढ़ते झुकाव ने पुंगनुर जैसी देसी नस्लों को पीछे कर दिया।
सरकार और कुछ संस्थाएं अब इसके संरक्षण के लिए प्रयास कर रही हैं।
संरक्षण और पुनर्विकास
भारतीय सरकार और कुछ निजी संगठन पुंगनुर गाय के संरक्षण के लिए काम कर रहे हैं:
- नेशनल ब्यूरो ऑफ एनिमल जेनिटिक रिसोर्सेज (NBAGR) ने इसे एक दुर्लभ नस्ल के रूप में सूचीबद्ध किया है।
- आंध्र प्रदेश में कुछ गौशालाएं और किसान समूह इसके संरक्षण और प्रचार में लगे हुए हैं।
- देसी नस्लों के बढ़ते महत्व के कारण अब शहरी लोग भी पुंगनुर को पालने लगे हैं।
निष्कर्ष
पुंगनुर गाय न केवल सबसे छोटी नस्लों में से एक है, बल्कि यह भारतीय देसी नस्लों की एक अमूल्य धरोहर भी है।
इसका छोटा आकार प्राकृतिक अनुकूलन और मानव द्वारा सिलेक्टिव ब्रीडिंग – दोनों का परिणाम है।
यह गाय कम संसाधनों में भी अच्छा दूध देती है और छोटे किसानों व शहरी पशुपालकों के लिए एक बेहतरीन विकल्प है।
आज जरूरत है कि हम ऐसी देसी नस्लों को बचाएं, अपनाएं और इनके महत्व को समझें। पुंगनुर जैसी गायें भारत की जैव विविधता की पहचान हैं और इनका संरक्षण हम सभी की जिम्मेदारी है। ऐसी जानकारी के लिए जुड़े रहे Hello kisaan के साथ,।। जय हिंदी जय किसान।।
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