पुंगनूर गाय: छोटा कद, बड़ा कमाल


भारत की धरती पर गाय को हमेशा से ही एक विशेष स्थान मिला है। यह सिर्फ दूध देने वाला पशु नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, खेती और गांव की आत्मा का हिस्सा रही है। देश में कई नस्लों की गायें पाई जाती हैं, लेकिन जब बात दुनिया की सबसे छोटी गाय की होती है, तो एक ही नाम सामने आता है — पुंगनूर।

पुंगनूर गाय का जन्म आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में हुआ, एक छोटे से कस्बे में जिसे पुंगनूर कहा जाता है। उसी गांव के नाम पर इस अनोखी नस्ल का नाम पड़ा। पुंगनूर गाय का शरीर जितना छोटा है, उसके फायदे उतने ही बड़े हैं। पहली बार जिसने भी इसे देखा, उसकी आंखें हैरानी से फैल गईं। आम गाय की तुलना में इसकी ऊँचाई घुटनों तक ही होती है। लोग अक्सर इसे बछड़ा समझ लेते हैं, लेकिन यह पूरी तरह से एक व्यस्क गाय होती है, अपने आप में पूरी।
इसका कद केवल 70 से 90 सेंटीमीटर होता है और वजन मुश्किल से 100 से 200 किलो के बीच। दिखने में सुंदर, सींग छोटे और पीछे की ओर मुड़े हुए, रंग कभी सफेद, कभी भूरा तो कभी हल्का काला। इसका चेहरा मासूमियत से भरा होता है और आंखों में अजीब सा अपनापन होता है। एक बार जो पास बैठ जाए, उसका मन नहीं करता कि इसे छोड़ दे।

लेकिन पुंगनूर गाय की असली ताकत उसके शरीर में नहीं, उसके दूध में छुपी है। यह रोजाना करीब तीन से पांच लीटर दूध देती है, लेकिन उसके दूध में जो पोषण होता है, वह किसी भी महंगी विदेशी नस्ल से कहीं ज्यादा होता है। इसमें फैट कंटेंट 6 से 8 प्रतिशत तक होता है। यही कारण है कि इसका दूध पीला घी बनाता है, जो शुद्धता और औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है। आयुर्वेद में इसका विशेष महत्व है। बुजुर्ग, बच्चे, और बीमार लोग इस दूध से खास लाभ लेते हैं क्योंकि यह आसानी से पचता है और शरीर को मजबूत बनाता है।
पुंगनूर गाय की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह देखभाल में बहुत आसान है। यह कम चारा खाती है, कम जगह में रह सकती है और ज्यादा बीमार भी नहीं होती। किसान जिसे बड़ी नस्लों की गाय पालना महंगा लगता है, उनके लिए पुंगनूर गाय किसी वरदान से कम नहीं। इसे घर के आंगन में भी पाला जा सकता है। शहर में रहने वाले लोग भी अब इसे पालने लगे हैं, क्योंकि यह छोटे बाड़े में भी आराम से रहती है और घर जैसा वातावरण पसंद करती है।
एक समय ऐसा भी आया जब पुंगनूर गाय लगभग गायब होने लगी थी। विदेशी नस्लों की होड़ में देसी गायें पीछे छूट गईं। लेकिन कुछ जागरूक किसानों और संस्थाओं ने इसका महत्व समझा और इसे बचाने में लग गए। आंध्र प्रदेश सरकार ने इसे संरक्षित नस्ल घोषित किया और अब कई जगहों पर इसे फिर से पाला जा रहा है। सोशल मीडिया ने भी इसमें अहम भूमिका निभाई। जब लोगों ने पुंगनूर गाय के वीडियो देखे, उसकी छोटी सी कद-काठी और शुद्ध दूध की बातें सुनीं, तो वे खुद इसके बारे में जानने को उत्सुक हुए।
आज पुंगनूर गाय केवल भारत में ही नहीं, दुनिया भर में मशहूर हो चुकी है। गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में इसे दुनिया की सबसे छोटी गाय के रूप में मान्यता दी जा चुकी है। विदेशी भी इसे देखने और पालने की इच्छा जताते हैं।
पुंगनूर गाय यह संदेश देती है कि हर चीज़ की कीमत उसके आकार से नहीं, उसकी उपयोगिता से तय होती है। यह गाय एक मिसाल है कि कैसे सीमित संसाधनों में भी बड़ा काम किया जा सकता है। छोटे किसानों के लिए यह आत्मनिर्भरता की राह दिखाती है और शहरी लोगों के लिए देहात की खुशबू लेकर आती है।
हमें गर्व होना चाहिए कि ऐसी गाय हमारे देश में पाई जाती है। ज़रूरत है कि हम इसे बचाएं, अपनाएं और इसके दूध, घी और स्वभाव को समझें। जब देसी गायें लौटेंगी, तभी हमारी मिट्टी भी मुस्कुराएगी और खेत फिर से सोना उगलेंगे।
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