चीन और जापान के लोग दूध क्यों नहीं पीते?


अगर आप भारत, अमेरिका या यूरोप में देखें तो दूध हर किसी के आहार का अहम हिस्सा है। सुबह का नाश्ता हो, चाय-कॉफी हो या फिर मिठाइयाँ दूध के बिना सब अधूरा लगता है। लेकिन चीन और जापान में तस्वीर बिल्कुल अलग है। यहाँ के लोग दूध और डेयरी उत्पादों से दूरी बनाए रखते हैं। अब सवाल उठता है आखिर ऐसा क्यों? क्या इन्हें दूध पसंद नहीं या फिर इसके पीछे कोई गहरी वजह है? चलिए इस रहस्य की परतें खोलते हैं और जानते हैं कि चीन और जापान के लोग दूध से इतनी दूरी क्यों बनाए रखते हैं।

1. शरीर ही दूध पचाने के लायक नहीं
क्या आपको पता है कि चीन और जापान की 80-90% आबादी Lactose Intolerant है? यानी उनका शरीर दूध में मौजूद लैक्टोज नामक शुगर को पचा ही नहीं पाता।
जब ये लोग दूध पीते हैं तो पेट दर्द, गैस, डायरिया और अपच जैसी दिक्कतें होने लगती हैं। इसलिए, सदियों से इन देशों में दूध को आहार का हिस्सा ही नहीं बनाया गया।
इसके विपरीत, यूरोप और भारत में Lactose Intolerant बहुत कम पाई जाती है। इसलिए वहाँ दूध पीना आम बात है जबकि चीन और जापान में लोग इससे बचते हैं।
2. दूध परंपरागत आहार का हिस्सा नहीं था
हमारे यहाँ बचपन से दूध पिलाने की परंपरा रही है। लेकिन चीन और जापान में ऐसा कभी नहीं हुआ।
चीन में दूध क्यों प्रचलित नहीं हुआ?
पारंपरिक चीनी चिकित्सा में दूध को बलगम बढ़ाने वाला और ठंडा करने वाला माना जाता था, इसलिए इसे स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं समझा गया।
जापान में दूध क्यों नहीं पिया जाता था?
जापान में चावल और समुद्री भोजन को ज्यादा महत्व दिया जाता था।
7वीं शताब्दी में बौद्ध धर्म के प्रभाव के कारण मांस और दूध का सेवन कम हो गया।
यहाँ दूध को अलग और अनावश्यक माना जाता था।
3. मवेशी पालने की जगह ही नहीं थी
अब ज़रा सोचिए भारत, अमेरिका और यूरोप में खुले हरे-भरे चरागाह हैं, जहाँ गाय, भैंस और बकरियों को आसानी से पाला जा सकता है। लेकिन चीन और जापान की भौगोलिक स्थिति अलग है।
चीन में ज्यादातर क्षेत्र पहाड़ी और सूखा हैं जहाँ गायों को पालने के लिए पर्याप्त घास नहीं मिलती।
जापान एक द्वीप देश है जहाँ जमीन का बड़ा हिस्सा पहाड़ों और जंगलों से ढका है।
क्योकि यहाँ पशु पालन का अनुकूल वातावरण नहीं था इसलिए दूध और डेयरी उत्पादों की परंपरा भी विकसित नहीं हो पाई।
4. दूध की जगह दूसरे खाद्य पदार्थ
चीन और जापान के लोग दूध से मिलने वाले पोषण को दूसरे प्रोडक्ट्स से प्राप्त करते हैं।
सोया दूध और टोफू – सोया से बने ये उत्पाद प्रोटीन और कैल्शियम से भरपूर होते हैं।
समुद्री शैवाल – इसमें भरपूर मात्रा में कैल्शियम पाया जाता है।
मछली और हरी सब्जियाँ – इनसे उन्हें हड्डियों की मजबूती के लिए जरूरी पोषण मिलता है।
इसलिए बिना दूध पिए भी इन देशों के लोग स्वस्थ और ताकतवर रहते हैं।

5. अब क्या बदल रहा है?
हाल के वर्षों में चीन और जापान में दूध और डेयरी उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ी है।
चीन में 1990 के बाद सरकार ने दूध को सेहतमंद आहार के रूप में बढ़ावा दिया।
जापान में अब आइसक्रीम, केक और कॉफी में दूध का इस्तेमाल बढ़ा है।
हालाँकि अब भी ये देश दूध को उतना नहीं अपनाए हैं जितना भारत और पश्चिमी देश।
चीन और जापान में दूध न पीने के 5 बड़े कारण
1. लैक्टोज असहिष्णुता – ज्यादातर लोगों का शरीर दूध को पचा नहीं पाता।
2. परंपरागत आहार में दूध की जगह नहीं थी – चावल, मछली और सब्जियों पर ज्यादा जोर था।
3. पशु पालन मुश्किल था – चरागाहों की कमी के कारण दूध का उत्पादन नहीं हुआ।
4. दूध के विकल्प मौजूद थे – सोया, समुद्री भोजन और हरी सब्जियों से जरूरी पोषण मिल जाता था।
5. अब धीरे-धीरे बदलाव आ रहा है, लेकिन भारतीय और यूरोपीय देशों जितना लोकप्रिय नहीं हुआ है।
क्या भविष्य में चीन और जापान में दूध पीने की प्रवृत्ति बढ़ेगी?
संभव है सरकार के प्रयास पोषण जागरूकता और पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव के कारण इन देशों में डेयरी उत्पादों की माँग धीरे-धीरे बढ़ रही है। लेकिन यह अब भी भारतीय या पश्चिमी देशों की तुलना में बहुत कम है।अब जब भी आप किसी चीनी या जापानी व्यक्ति को दूध से बचते देखें तो समझ जाएँ कि इसके पीछे एक लंबा ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक कारण छिपा है।
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