शानदार मुरमुरे और चाय बनाने की तकनीक

27 May 2024 | others
शानदार मुरमुरे और चाय बनाने की तकनीक

कार्य तो सभी करते हैं लेकिन अगर किसी कार्य को थोड़ा अलग ढंग और रोचकता के साथ किया जाए तो कामयाबी हाथ धो कर पीछे पड़ जाती है। आज जानते हैं ऐसे ही दो लोगों के बारे में जिसमें एक शानदार तरीके से चावल के मुरमुरे बनाकर लाभ कमा रहे हैं और दूसरे एक भाई साहब जो चाय को बेहद अनोखे ढंग से चिमनी द्वारा बना रहे हैं। आईए देखते हैं किस तरह से करते हैं यह यह शानदार कार्य


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चावलों से मुरमुरे बनने की प्रक्रिया:

मुरमूरों से तो आप सभी परिचित होंगे। लेकिन ये बनते कैसे हैं? शायद यह आप आज ही जानेंगे। सबसे पहले मुरमुरे बनाने के लिए एक विशेष किस्म का मोटा बोना चावल लेते है। जिसको तसला भर के एक भट्टी में डाला जाता है और इस भट्टी का तापमान थोड़ा काम ही रहता है। इस भट्टी में नीचे की तरफ चावलों की उल्टा पलटी करने के लिए पंखा लगा रहता है जो उन्हें घूमता है तथा चावल में टेस्ट और कुरकुरेपन के लिए नमक के पानी का छिड़काव करते हैं। 2 मिनट तक ऐसा करने के बाद चावल थोड़े से मोटे और गर्म हो जाते हैं तब उन्हें अलग निकाल लेते हैं। और दूसरी भट्टी में डाल कर और 2 मिनट के लिए भूनते हैं। फिर उसे निकाल कर तीसरी भट्टी में डालते हैं जहां पर चावल में एक प्रकार से पॉलिशिंग होती है। तीनों भट्ठियों में चावलों को घूमने के लिए पंखे लगे होते हैं जो एक ही मोटर से अटैच होते हैं। चावलों को बाद में निकाल कर एक कच्ची भट्टी में भूनकर खिलने के लिए डाल दिया जाता है जिसमें पहले से ही गर्म बालू भरा होता है। गर्म बालू के साथ घूमकर वे भुने हुए चावल खिल कर सफेद हो जाते हैं। तथा अब इनको छलनी के द्वारा भट्टी से निकालकर एक जगह इकट्ठा कर लेते है और बड़े-बड़े कट्टों में भरकर मार्केट में बेचने के लिए तैयार कर दिया जाता है।


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चाय बनाने की एक विशेष तकनीक:

यह चाय की दुकान पिछले 100 सालों से इसी तकनीक से चाय बनाते हुए आ रही है जिसको पीने के लिए लोग दूर-दूर से उनके पास आते हैं। इस तकनीक में एक छोटे से तांबे की टंकी में चारों सतह कि तरफ पानी तथा बीच में कोयला भरा हैं और ऊपर एक चिमनी लगी होती है। इन कोयलों द्वारा पानी को गर्म किया जाता है जिसका प्रयोग चाय बनाने में करते हैं। अब यह चाय बनाने के लिए  इस तांबे की टंकी से हुए गर्म पानी और भैंस के दूध, चाय पत्ती तथा अन्य मसाले डालकर चाय बनाते हैं। जिसका टेस्ट सामान्य चाय से अधिक बेहतर होता है। 1968 में इस चाय का रेट 8 पैसे था जो अब बढ़कर ₹15 हो गया है तथा इसको पीने के लिए लंबी लाइन लगी रहती है। 


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तो दोस्तों आपने पढ़ा कैसे एक छोटे से और परंपरागत कार्य को भी अनोखे ढंग से कर एक ऊंचे पायदान पर ले जाया जा सकता है और खूब नाम तथा पैसा भी कमाया जा सकता है।



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