कचरे से बनी गैस और बिजली

27 Apr 2025 | Technology
कचरे से बनी गैस और बिजली

कहते हैं अगर सोच नई हो, तो कचरा भी खजाना बन सकता है। कुछ ऐसा ही कर दिखाया है उज्जैन के मोहन चौहान जी ने, जिन्होंने वेस्ट मैनेजमेंट के ज़रिए बिजली बनाने का एक चमत्कारी और प्रेरणादायक तरीका अपनाया है। उनके इस नवाचार को देखकर हर कोई हैरान रह जाता है क्योंकि यहां फल-सब्ज़ियों और होटलों के फेंके गए कचरे से 24 घंटे बिजली बनाई जा रही है।

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कैसे बनती है कचरे से बिजली?

हर दिन उज्जैन की मंडियों और होटलों से टनों कचरा निकलता है जिसमें फल, सब्ज़ियाँ और अन्य ऑर्गेनिक वेस्ट होता है। इस कचरे को सबसे पहले एक विशेष यूनिट में लाया जाता है जहाँ से प्लास्टिक और पन्नियाँ अलग कर दी जाती हैं। इसके बाद बचा हुआ ऑर्गेनिक कचरा एक मिक्सचर मशीन में डाला जाता है।

मिक्सचर से डाइजेस्टर तक का सफर

मिक्सचर मशीन इस कचरे को अच्छे से पीसकर उसका गाढ़ा पेस्ट तैयार कर देती है। यह पेस्ट पाइपलाइन के माध्यम से एक बड़े डाइजेस्टर (सड़न टैंक) में भेजा जाता है। इस डाइजेस्टर में लगभग 15 दिनों तक यह सामग्री सड़ती है। जैसे-जैसे कचरा सड़ता है उससे बायोगैस उत्पन्न होती है जो धीरे-धीरे ऊपर की ओर इकट्ठा होती है यह गैस चैम्बर 5 फीट तक फूल जाता है जिससे यह संकेत मिलता है कि गैस बन चुकी है।

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गैस से बिजली का निर्माण

जब गैस पूरी तरह बन जाती है तब उसे पाइपलाइन के ज़रिए एक विशेष बैलून (गैस स्टोरेज) में इकठ्ठा किया जाता है। इस प्रक्रिया में गैस के साथ जो पानी निकलता है उसे भी पाइपलाइन से बाहर निकाला जाता है। अब यह गैस जनरेटर तक पहुँचती है जहाँ पर इंजन के माध्यम से एक आर्मी चेयर की तरह घूमने वाला डिवाइस होता है। जैसे ही इंजन शुरू होता है यह घूमने लगता है और बिजली उत्पादन शुरू हो जाता है। यही बिजली पूरे सिस्टम को पावर देती है।

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70 यूनिट प्रतिदिन की उत्पादन क्षमता

इस पूरी प्रक्रिया से हर दिन लगभग 70 यूनिट बिजली उत्पन्न होती है। इतनी बिजली से एक घर के टीवी, कूलर, पंखा जैसे सभी उपकरण आसानी से चल सकते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि इससे पूरे इलाके को 24 घंटे बिजली मिल सकती है बिना किसी बिजली बिल के जिसे बिजली बचती है और साथ ही साथ बिजली का बिल भी। 

उज्जैन म्युनिसिपल कॉपरेशन की सराहनीय पहल

यह परियोजना उज्जैन नगर निगम के सहयोग से चल रही है और शहर को स्वच्छ, हरित और आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक ठोस कदम है। यह न केवल वेस्ट मैनेजमेंट का बेहतरीन उदाहरण है, बल्कि एक प्रेरणा भी है कि सीमित संसाधनों में भी बड़ा बदलाव संभव है।

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निष्कर्ष:

मोहन चौहान जी जैसे लोग इस बात का प्रमाण हैं कि बदलाव सोच से शुरू होता है। उन्होंने साबित कर दिया कि अगर इरादा मजबूत हो और तकनीक का सही इस्तेमाल हो, तो कचरा भी देश की ऊर्जा बन सकता है। उज्जैन का यह मॉडल देश के हर शहर और गांव में लागू किया जा सकता है ताकि हम एक स्वच्छ, सशक्त और ऊर्जा संपन्न भारत की ओर अग्रसर हो सकें।


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