शांतिलाल परमार - गोबर से बना रहे CNG, चला रहे कार, बाइक और ट्रैक्टर

12 Mar 2025 | Innovation
शांतिलाल परमार - गोबर से बना रहे CNG, चला रहे कार, बाइक और ट्रैक्टर

मध्य प्रदेश के शाजापुर जिले के रहने वाले इंजीनियर शांतिलाल परमार ने एक ऐसा अनोखा सिस्टम तैयार किया है, जिससे वे गाय के गोबर से CNG (कंप्रेस्ड नेचुरल गैस) बना रहे हैं। इस गैस का इस्तेमाल वे अपनी बाइक, कार और ट्रैक्टर चलाने में कर रहे हैं। यह न केवल पर्यावरण के अनुकूल है, बल्कि डीजल और पेट्रोल से भी सस्ता पड़ता है।

कैसे बनती है CNG?

शांतिलाल जी के पास 180 गाय हैं, जिनका गोबर वह इकट्ठा करके CNG बनाने के लिए इस्तेमाल करते हैं। उन्होंने अपने फार्म में एक विशेष मशीन लगाई है, जिससे गोबर आसानी से एक जगह इकट्ठा हो जाता है।

1. गोबर इकट्ठा करने की प्रक्रिया

  • उन्होंने अपने ट्रैक्टर में एक सुवडी (स्वीपर) लगाई है, जिससे गाय का सारा गोबर इकट्ठा हो जाता है।
  • यह गोबर पाइप के जरिए एक टैंक में चला जाता है।
  • पानी मिलाकर इसे लिक्विड फॉर्म में बदला जाता है।
  • इसके बाद, इसे एक बड़े टैंक में डाल दिया जाता है, जहाँ इसे 45 दिनों तक सड़ने (फर्मेंट) दिया जाता है।

शांतिलाल परमार - गोबर से बना रहे CNG, चला रहे कार, बाइक और ट्रैक्टर_6046

2. बायोगैस से CNG बनाने की प्रक्रिया

  • इस टैंक में गैस बनती है, जो पाइप के जरिए एक CNG प्लांट तक पहुंचती है।
  • यहाँ गैस को फिल्टर किया जाता है ताकि उसमें मौजूद पानी अलग हो जाएँ।
  • इसके बाद, एक कंप्रेस्ड मशीन की मदद से बिओगास को CNG में कन्वर्ट कर देते है फिर हाई-प्रेशर पंप से गैस को कंप्रेस किया जाता है और सिलेंडर में भर दिया जाता है।
  • एक सिलेंडर को भरने में 4-5 घंटे लगते हैं।

CNG का उपयोग कहाँ होता है?

शांतिलाल जी ने अपनी बाइक, कार और ट्रैक्टर को CNG से चलाने के लिए मॉडिफाई किया है।

1. बाइक

उन्होंने अपनी बाइक को CNG से चलने लायक बना लिया है, जिससे यह पेट्रोल के मुकाबले सस्ता और ज्यादा किफायती हो गया है।

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2. कार और ट्रैक्टर

  • उनकी कार और ट्रैक्टर भी इसी CNG गैस से चलते हैं।
  • ट्रैक्टर में गेहूं काटने की रीपर मशीन लगी है, जिसे भी उन्होंने CNG से चलने के लिए मॉडिफाई किया है।

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3. खेतों में बचा हुआ गोबर

  • CNG बनाने के बाद जो बचा हुआ गोबर होता है, उसे पाइप के जरिए खेतों में डाल दिया जाता है।

यह खाद के रूप में काम करता है, जिससे फसल अच्छी होती है और रासायनिक खाद की जरूरत कम पड़ती है।

शांतिलाल परमार की इस खोज के फायदे

  •  डीजल-पेट्रोल की जरूरत नहीं पड़ती
  •  गाय का गोबर बेकार नहीं जाता, बल्कि उपयोगी बनता है
  •  खेतों को प्राकृतिक खाद मिलती है
  •  पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होता

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निष्कर्ष

शांतिलाल जी का यह अनोखा तरीका देश के किसानों और आम लोगों के लिए एक प्रेरणा है। यह दिखाता है कि अगर सही तकनीक और मेहनत से काम किया जाए, तो साधारण चीजें भी बड़े काम की बन सकती हैं। उनका यह इनोवेशन डीजल और पेट्रोल के महंगे खर्च से बचाने में मदद कर सकता है और पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद है।

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