स्कूटर जमीन पर नहीं दिवार पर


क्या आपने कभी सोचा है कि स्कूटर ज़मीन की बजाय दीवार पर टंगा हो? या फिर कोई ऐसी कार जो सिर्फ चलने के लिए नहीं बल्कि देखने वालों को हैरान करने के लिए बनी हो? हरियाणा के हेरिटेज ट्रांसपोर्ट म्यूजियम में आपको कुछ ऐसे ही वाहनों की झलक मिलेगी जो तकनीक, कला और इंसानी कल्पना का अद्भुत संगम हैं।यहाँ एक ऐसा स्कूटर मौजूद है जो दीवार में पैक है बिलकुल जैसे किसी कार्टून में चीजों को खींचकर लंबा कर दिया जाता है। इस स्कूटर की डिज़ाइन देखकर लगता है जैसे वो किसी जादुई दुनिया से आया हो। बल्कि इनके पास एक ऐसे स्कूटर भी है जिसकी बॉडी, हेडलाइट्स और मिरर इतने ज़्यादा हैं कि देखकर आप बस मुस्कुरा उठेंगे।

कॉइन से सजी कार – एक रुपया, लाखों एहसास
एक और अजूबा वहाँ की वो कार है जिसे पूरी तरह ₹1 के सिक्कों से सजाया गया है। कार की बॉडी पर इतने कॉइन्स लगे हैं कि गिनते-गिनते आप थक जाएँगे। यह कार सिर्फ एक वाहन नहीं, बल्कि एक चलता-फिरता आर्ट पीस है।
बजाज चेतक और तारक मेहता का स्कूटर
इस म्यूजियम में आपको पुराने जमाने का बजाज चेतक स्कूटर भी मिलेगा वही स्कूटर जो तारक मेहता का उल्टा चश्मा में भिड़े जी चलाते हैं। ये स्कूटर आज भी अपने रंग और स्टाइल से 80 के दशक की यादें ताज़ा कर देता है।

साइकिल नहीं बाइक = अजूबा व्हीलर
यहाँ एक ऐसा वाहन है जो साइकिल और मोटरसाइकिल का कॉम्बिनेशन है कुछ-कुछ दोनों की तरह लेकिन पूरी तरह कुछ अलग। देखने में यह अनोखा व्हीलर भविष्य और अतीत दोनों का मेल लगता है।
1961 की मोपेड और क्रिस्टल रॉयल एनफील्ड
1961 की छोटी सी मोपेड भी यहाँ रखी है जो कभी सड़कों पर धूम मचाया करती थी। और एक क्रिस्टल से बनी रॉयल एनफील्ड भी है जी हाँ, मोटरसाइकिल पूरी तरह पारदर्शी क्रिस्टल जैसी लगती है देखकर आँखें चौंक जाती हैं।

कंधे पर उठाई जाने वाली रिक्शा
म्यूजियम में एक पुरानी हैंड-पुल रिक्शा भी है जिसे लोग कंधे पर रखकर खींचते थे। आज भी कोलकाता में इनका अस्तित्व कहीं-कहीं देखने को मिलता है। ये सिर्फ परिवहन का साधन नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा हैं।

1948 का एयरक्राफ्ट – पायलट ट्रेनिंग के लिए
यहाँ एक 1948 मॉडल एयरक्राफ्ट भी रखा है जो पायलट ट्रेनिंग के लिए इस्तेमाल होता था। इसमें दो सीटें हैं – एक पायलट के लिए और एक ट्रेनर के लिए। आज भी यह इतिहास की उड़ान को महसूस करने का मौका देता है।

रस्सियों से सिला गया वुडन बोट – पाडुआ बोट
म्यूजियम की एक और खास बोट है पाडुआ बोट, जो पूरी तरह लकड़ी से बनी है और रस्सियों से जोड़ी गई है। यह बोट समुद्र में चलने के लिए बनाई जाती थी और इसकी बनावट आज भी लोगों को हैरान करती है।
मल्टी-सिम्प्लिसिटी कार – आइनों की दुनिया
1962 की एक कार को मिरर और डोम्स से सजाया गया है जिसका नाम है मल्टी सिम्प्लिसिटी। जब आप इसके सामने खड़े होते हैं तो उसमें खुद की कई परछाइयाँ दिखती हैं जैसे हर कोण से एक नया रूप।
स्टेपलर पिन से बना ट्रैक्टर
पूजा ईरना जी ने स्टेपलर पिन से एक ट्रैक्टर जैसी संरचना बनाई है। यह मेटल आर्ट का एक शानदार उदाहरण है।
गेमिंग सिमुलेटर कार – असली जैसा अनुभव
इस म्यूजियम में एक कार सिमुलेटर भी है जिसमें बैठकर आप ऐसे महसूस करेंगे जैसे टेम्पल रन या कोई रेसिंग गेम खेल रहे हों। गॉगल्स पहनकर आप मूवी भी देख सकते हैं और कार पूरे केबिन के साथ हिलती है – असली गेमिंग का मज़ा।
F1 रेसिंग कार
यहाँ एक F1 रेसिंग कार भी है जिसकी डिज़ाइन और बटन बेहद खास हैं। इसकी स्पीड 350 किमी प्रति घंटा से ज़्यादा है और इसका लुक किसी रेसिंग मूवी से कम नहीं।

कोट्स लिखे ट्रैक्टर्स और कॉम्पैक्ट कार
पुराने ज़माने के ट्रैक्टर्स पर लिखे गए रोमांटिक कोट्स भी यहाँ मिलेंगे जैसे वो कौन थी जो मुस्कुरा कर चली गई। और एक कॉम्पैक्ट कार है जिसमें पाँच लोग बैठ सकते हैं और सामान रखने की जगह भी है।
निष्कर्ष
हेरिटेज ट्रांसपोर्ट म्यूजियम एक ऐसा स्थान है जहाँ वाहन सिर्फ चलने के साधन नहीं बल्कि कला, इतिहास और कल्पना की उड़ान बन जाते हैं। अगर आप भी इन अजूबों की दुनिया में खो जाना चाहते हैं तो ये जगह ज़रूर देखें यहाँ हर कोना, हर पहिया, हर हैंडल एक कहानी कहता है।
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