उत्तर प्रदेश जो सबसे बड़ा गन्ना उत्पादक राज्य हैं उसमे आईएसएमए के अनुसार, मिलों मैं किसानो का बकाया मार्च-अंत तक 7,200 करोड़ रुपये, महाराष्ट्र और कर्नाटक में 5000 करोड़ रुपये और बिहार, पंजाब, उत्तराखंड , हरियाणा, तमिलनाडु, गुजरात, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना जैसे राज्यों में 4,000 करोड़ रुपये का था।


किसानों को भुगतान चीनी मिलों को गन्ना की आपूर्ति के 14 दिनों के भीतर किया जाता है।


आईएसएमए ने मार्च के शुरू में कहा था की वर्ष 2017-18 (अक्टूबर से सितंबर) के दौरान भारत का चीनी उत्पादन 29.5 मिलियन टन का अनुमान है, साल दर साल 45% की बढ़ोतरी का अनुमान है। घरेलू खपत 25 मिलियन टन होने की संभावना है, जबकि 4.5 मिलियन टन के अतिरिक्त उत्पादन से पुरानी मीलों की कीमत में 30 रुपये प्रति किलोग्राम की गिरावट आई है।


आईएसएमए के मुताबिक, मौजूदा मिलों की कीमत उत्पादन लागत से 5 रुपये प्रति किलोग्राम कम है। घरेलू बिक्री और निराशाजनक वैश्विक चीनी बाजार से कम प्राप्ति के कारण, घरेलू मिले समय पर किसानों को कीमत का भुगतान करने के लिए पर्याप्त धनराशि पैदा करने में असमर्थ हैं।


अधिशेष स्टॉक को स्पष्ट करने के लिए, 28 मार्च को केंद्र ने चीनी मिलों को न्यूनतम सूचक निर्यात कोटा (एमआईईक्यू) योजना के तहत सितंबर तक अनिवार्य रूप से 2 मिलियन टन निर्यात करने को कहा। इससे पहले, केंद्र ने कच्ची और सफेद चीनी पर आयात शुल्क को दुगुना कर 100% कर दिया और घरेलू कीमतों में सुधार के लिए मिलों द्वारा चीनी की बिक्री पर सीमा निर्धारित की।


हालांकि, आयातकों ने 350 प्रति टन की पेशकश की है,आईएसएमए ने कहा।


भारत में किसानों को दालों और तिलहन जैसे अन्य फसलों से ज्यादा गन्ने की खेती पसंद हैं , क्योंकि इसमें हर साल कीमत केंद्र द्वारा निर्धारित की जाती है, जो निश्चित तौर पर 255 रुपये प्रति क्विंटल की गारंटीकृत निष्पक्ष और लाभकारी मूल्य (एफआरपी) प्राप्त करता है।