भारत में कहीं भी कर सकते हैं नारियल की खेती, कमा रहे खूब


नारियल एक ऐसा पेड़ जिसके फलों से लेकर जड़ों तक की सभी चीजें इस्तेमाल की जाती है तथा इससे लगभग 433 प्रकार के अलग-अलग प्रोडक्ट्स भी बनाए जाते हैं। पत्तों से छप्पर बनेगा, नारियल से नारियल पानी, तो सूखने के बाद मिलेगा कोकोपीट और तने से बनेगी नाव। ऐसे कल्पवृक्ष रूपी नारियल उत्पादन में भारत दुनिया में नंबर वन है। करीब 21 राज्यों में नारियल की खेती सुचारू रूप से की जा रही है, जो बहुत ही कम मेहनत और कम लागत में सालों साल कमाई करने का जरिया बनता है। इसके पेड़ 70 से 80 साल तक हरे-भरे रहते हैं। आये जानते हैं लक्ष्मण जी से वह किस प्रकार अपने इस बड़े से फार्म पर नारियल की खेती कर रहे हैं।

नारियल खेती और फॉर्म का परिचय:
दस एकड़ क्षेत्रफल में फैले इस फार्म पर तकरीबन 1000 से ज्यादा नारियल के पेड़ उग रहे हैं। नारियल को कल्पवृक्ष भी कहा जाता है, क्योंकि इसके एक पेड़ से तकरीबन 433 प्रोडक्ट बनते हैं, जो मानव जीवन को कहीं ना कहीं फायदा पहुंचा रहे हैं। इस फॉर्म को चार हिस्सों में बांट रखा है। पहला फॉर्म 1 एकड़ क्षेत्रफल में है, जिसमें 450 के आसपास हाइब्रिड वैरायटी के प्लांट लगे हैं। पेड़ लगाते समय हाइब्रिड वैरायटी के पेड़ में चारों तरफ करीब 25 फीट का डिस्टेंस तथा डवार्फ वैरायटी में 20 फीट का डिस्टेंस देना अच्छा माना जाता है। ड्वॉर्फ वैरायटी पानी वाले नारियल के लिए अच्छी है, जबकि हाइब्रिड वैरायटी मल्टीपर्पज है, इसमें पानी और कोकोनट कोपरा अर्थात् मलाई अधिक मात्रा में निकलती है। कोपरा से नारियल का तेल बनता है। इसकी सिंचाई सामान्य या ड्रिप विधि से कर देते हैं। एक पेड़ को 1 दिन में करीबन 50 से 60 लीटर पानी देना चाहिए।

नारियल पेड़ की वैरायटी:
नारियल की किस्म की बात करें तो इनमें मुख्यतः डवार्फ वैरायटी, टोल वैरायटी है। लेकिन आजकल किसानों में हाइब्रिड वैरायटी सबसे ज्यादा प्रचलित है, क्योंकि पुरानी वैरायटी का पेड़ काफी लंबा और फल बहुत ऊंचाई पर लगता था, जिससे उसकी हार्वेस्टिंग करना काफी खर्चीला हो जाता था। डवार्फ वैरायटी में एक पेड़ पर करीब 150 से 200 के बीच नारियल आते हैं। वहीं हाइब्रिड वैरायटी वाले नारियल पेड़ पर 200 से 300 तक नारियल प्रत्येक प्लांट पर प्रति वर्ष उत्पादित हो जाते हैं।

बीज बनाने या उगाने की विधि:
इस रोचक से फार्म हाउस में कोकोनट पैदा करने वाले स्पेशलाइज्ड जगदीश जी बताते हैं, कि जनरली कोकोनट के पेड़ पर एक ही बंच में मेल और फीमेल दोनों फ्लावर एक साथ ही रहते हैं। जिनके आपस में संपर्क में आने पर फर्टिलाइजेशन होता है और ओवरी जेनरेट होकर आगे फ्रूट बनता है। यह सामान्यतः ह्यूमंस के जैसे ही प्रोसेस होता है। किंतु यदि हाइब्रिड वैरायटी बनानी हो तो उसमें विशेष विधि अपनाई जाती है जैसे जगदीश जी ने डि क्रास टी अर्थात् हाइब्रिड वैरायटी का बीज विकसित कर दिखाया। इसमें हाइब्रिड वैरायटी मदर पाम के रूप में तथा टाल वैरायटी फादर पाम के रूप में रहती है। हाइब्रिड वैरायटी के लिए ऊपर जहां फल लगता हैं, वहां छोटे-छोटे बहुत सारे मेल फ्लावर्स तथा कुछ थोड़ा बड़े आकार में फीमेल फ्लार्व नीचे की तरफ होते है। जैसे फीमेल फ्लावर कुछ दिन बाद थोड़ा विकसित होता है और उस पर मेल फ्लावर गिरते हैं तो वह फर्टिलाइजर हो जाता है; परंतु हाइब्रिड वेराइटी पाने के लिए इन सभी मेल फ्लावर्स को फीमेल फ्लावर की ऑवरीज खुलने से पहले ही वहां से रिमूव अर्थात् काट दिया जाता है, ताकि वह फीमेल फ्लावर्स को फर्टिलाइज ना कर सकें।

इनमें से एक सेक्रेशन लिक्विड भी रिलीज होता है, जिसमें सुक्रोज का कंटेंट रहता है। जब यह सुक्रोज कंटेंट आता है तो इनकी फर्टिलिटी के चांस बढ़ जाते हैं, जिसे रिसेप्टिव स्टेज कहते हैं। तब उस समय मॉर्निंग में 6 से 9 के बीच पेड़ पर चढ़कर एक विशेष पोलेन को फीमेल फ्लावर्स पर उंगली से टच कर देते हैं। फिर उसके बाद तीन से चार दिन के लिए इन फ्लावर्स को एक बैग से पूरी तरह कवर कर देते हैं, ताकि कोई अन्य इंसेंट इन्हें फर्टिलाइज्ड ना कर सके। इस प्रक्रिया के 13 महीने बाद यह एक मैच्योरिटी स्टेज में आ जाते हैं और टूट कर नीचे गिर जाते हैं। पकने के बाद यह ब्राउन रंग जैसा दिखता है, अब उसे उगाने के लिए नर्सरी में लगाएंगे। जैसा आपने देखा कि हमने पहले मेल फ्लावर्स को काटकर अलग कर लिया था, अब उन्हें एक निश्चित डिग्री तापमान पर सुखाकर, छलनी में छानकर, जो पाउडर प्राप्त होता है उसमें एक विशेष पोलेन होता है, जो फीमेल फ्लावर को फर्टिलाइज्ड करने में मदद करता है। यदि फीमेल फ्लोवर पर हल्का कट लगाकर इस पोलन को लगा दें तो यह खुद ही पॉलिनेट हो जाता है और फिर इसे बैग में पैक कर रख देते हैं, तो नारियल की लॉन्ग वैरायटी विकसित हो जाती है।

जो 13 महीने बाद हाइब्रिड बीज विकसित किया था उसको उगाने के लिए, जब उसका 60% पानी सूख जाता है, तब उस खेत में एक लाइन खींचकर उस पर नारियल रखते हैं और मिट्टी और रेत के मिश्रण में नारियल को दबा देते हैं, जिससे 60 से 70 दिन में नारियल के पेड़ की बड्स फूटकर बाहर आ जाती है। यदि इस बीज को दोबारा मिट्टी से बाहर निकाल कर देखें तो इसके ऊपर एक छाल चढ़ी होती है, यदि उसे भी हटा दे तो अंदर नारियल के एक विशेष स्थान से पेड़ फूट कर बाहर निकल रहा होता है जिसे यदि दोबारा मिट्टी में रोपित कर दे तो वह विकसित होना शुरू हो जाता है। यदि आप 30 साल के पेड़ को भी बाहर निकलेंगे तो उसकी जड़ भी इसी तरह रहेगी अर्थात् नारियल के पेड़ की जड़ ज्यादा गहरी नहीं जाती। तीन से चार फीट तक ही होती है, इसलिए 4 फीट नीचे कंकर मिट्टी वाली भूमि पर भी इस खेती को सफल रूप से किया जा सकता है। 13 महीने बाद निकले बीज को मिट्टी में दबाने पर लगभग 3 महीने बाद जर्मिनेशन स्टार्ट होता है। अर्थात् 16 महीने में पेड़ बड़ा होना शुरू होता है। एक पौधा किसान के खेत में जाने के लिए करीब 22 से 23 महीने का समय लेता है। इस प्रकार हाइब्रिड वैरायटी में बीज उत्पादन से लेकर फल देने तक का कुल 5 साल का समय हो जाता है।

प्रमुख सावधानियां:
उच्च गुणवत्ता वाले फल का उत्पादन करने और अपने समग्र स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए नारियल के पेड़ को पूरे वर्ष पानी की निरंतर और पर्याप्त आपूर्ति की आवश्यकता होती है। इसी के साथ नर्सरी में से दूसरे खेत में फसल रोपते समय विशेष ध्यान की आवश्यकता होती है। इसके लिए प्लांटेशन करते समय खुद ही गड्ढे को अच्छी तरह फंगस इनसाइड ट्रीटमेंट करते हैं।

इस फसल के लिए गर्म जलवायु तो चलेगी; परंतु ठंड ज्यादा ना होती हो अर्थात् 15 से 20 डिग्री से नीचे टेंपरेचर ना हो। मुख्यतः मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, गुजरात, महाराष्ट्र, दक्षिण भारत और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में भी आसानी से गया जा सकता है।
होने वाली बीमारियां:
नारियल की खेती में जब फसल छोटी अर्थात् 2 साल तक की होती है उस समय विशेष देखभाल की जरूरत है। इनमें होने वाली मुख्य बीमारियां Bud Rot, ज्यादा ठंड के कारण Leaf Blight जिसमें नारियल के पत्ते पर ब्राउन धब्बे दिखने की समस्या आती है।

इसके अलावा राइनोसेरॉस बीटल, रेड पाल्म वेविल तथा वर्तमान में प्रचलित सबसे बड़ी बीमारी व्हाइट फ्लाई है, जो नारियल के पत्ते के नीचे एक परत जम जाती है, जिससे प्रकाश संश्लेषण में अवरोध होता है और पेड़ प्रभावित हो जाता है।

इन सभी बीमारियों का दवाइयों तथा खाद के छिड़काव द्वारा ट्रीटमेंट कर लिया जाता है। तथा इन फर्टिलाइजर का नारियल से उत्पादित होने वाले फल पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता वह उतना ही गुणकारी और लाभदायक होता है।

सरकारी सहायता:
नारियल की खेती करने के लिए सरकार भी किसानों को प्रोत्साहन, ट्रेनिंग तथा अनुदान देती है। एशिया की सबसे बड़ी संस्था CPCRI केरल में स्थित है, जो नारियल के ऊपर काफी सारी रिसर्च कर रही है और कितने सारे कोर्सेज भी कराती है। आम किसान भी पहले से जानकारी दें कर यहां पर खेती सिखाने हेतु जा सकता है।

एक पेड़ का प्लांटेशन करने में लगभग ₹500 का खर्च आता है; परंतु जब इस खेती की शुरुआत की जाती है, तो सरकार सब्सिडी प्रदान करती है। जिसकी प्रत्येक राज्य के अलग-अलग हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट में संपर्क कर जानकारी ली जा सकती है। भारतीय कोकोनोट बोर्ड का भी ऑफलाइन फॉर्म भर तथा कागजी कार्रवाई पूरी कर लाभ उठाया जा सकता है। जिस प्रकार लक्ष्मण भाई को सरकार ने 135 रुपए प्रति पेड़ दर और ₹37,500 प्लाटिंग मटेरियल खर्च हेतु सब्सिडी प्रदान की।
आर्थिक मुनाफा:
इस फसल से यदि रेवेन्यू की बात करें तो किसानों से प्रति नारियल लगभग ₹20 की दर से जाता है। 1 एकड़ में करीब 108 पौधे होते हैं तथा प्रत्येक पेड़ पर वैरायटी के हिसाब से अलग-अलग नारियल की मात्रा उत्पादित होती है। जैसे टॉल वैरायटी पर 100 से 150 नारियल का उत्पादन होता है, जिस हिसाब से एक पेड़ से 20×150= 30,000 रुपए तक का रेवेन्यू हो जाता है; परंतु इस वैरायटी में फल अधिक ऊंचाई पर लगता है, जिससे हार्वेस्टिंग में किसानों का अतिरिक्त खर्च हो जाता है। वहीं नारियल की सेंसिटिव किस्म डवार्फ पर 150 से 200 नारियल तक उत्पादित हो जाते हैं और हाइब्रिड पर 250+ नारियल तक उत्पादित होते हैं, जिनसे ₹50,000 प्रत्येक पेड़ तक कमाया जा सकता है। इनमें नारियल छोटा बड़ा होने पर भाव ऊपर-नीचे हो सकते हैं। इसके अलावा इससे लगभग 400+ प्रोडक्ट भी बनते हैं, जिनको देश-विदेश तक भी निर्यात किया जाता है।

इसमें रिसर्च के अनुसार नारियल को जल्दी तोड़ कर उससे अनेक उत्पाद बनाए जाते हैं जो सारी चीजों में उपयोगी है। जैसे स्कीन तथा हार्ट पेशेंट के लिए 13 महीने वाला नारियल बहुत लाभदायक होता है, वहीं इसे माइंड तथा याददाश्त के लिए भी बहुत अच्छा माना जाता है।इसकी फसल में सालाना पानी की सिंचाई, खाद और थोड़ा लेबर के अतिरिक्त कोई अन्य खर्चा देखने को नहीं मिलता। एक पेड़ पर वर्ष में करीब ₹500 औसतन खर्च हो जाता है। जितनी उनकी देखभाल करेंगे यह उतना ही अच्छा उत्पादन भी देंगे, इसलिए इस फसल में न्यूट्रिशन और पर्याप्त जल की मात्रा का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है।
इसकी खेती के फायदे:
दोस्तों देवी-देवताओं की पूजा अर्चना हो या कोई भी मांगलिक कार्य नारियल के बिना अधूरा माना जाता है। अतः नारियल भारतीय संस्कृति का अभिन्न है। यह पर्यावरण के लिए भी अच्छा माना जाता है, उसी के साथ जैसा आपने ऊपर जाना कि यह आर्थिक रूप से भी समृद्ध है। एक बार लागत लगाकर तथा देखभाल के साथ इसकी खेती की शुरुआत कर दी जाए तो यह फिर स्वत: ही उत्पादन करने लगता है और भरपूर मुनाफा देता है। इस पेड़ की उम्र भी 70 से 80 साल मानी जाती है। इस शानदार नारियल फॉर्म को चला रहे लक्ष्मण भाई अन्य किसानों को संदेश देते हुए कहते हैं कि नारियल की अच्छी वैरायटी लगायें और पेड़ का एक-दो साल तक बच्चे की तरह ध्यान रखें, 2 साल का बड़ा होने के बाद उसमें स्वत: कम रोग देखने को मिलते हैं। तो दोस्तों नारियल के बारे में संपूर्ण जानकारी देता यह लेख आपको कैसा लगा कमेंट कर अवश्य बताएं और ऐसी ही अन्य जानकारी के लिए जुड़े रहे "हेलो किसान" के साथ। धन्यवाद॥
Comment
Also Read

पपीते की खेती – किसानों के लिए फायदे का सौदा
खेती किसानी में अक्सर किसान भाई यह

बकरी के दूध से बने प्रोडक्ट्स – पनीर, साबुन और पाउडर
भारत में बकरी पालन (Goat Farming)

एक्सपोर्ट के लिए फसलें: कौन-कौन सी भारतीय फसल विदेशों में सबसे ज्यादा बिकती हैं
भारत सिर्फ़ अपने विशाल कृषि उत्पादन के लिए ही नहीं, बल्कि दुनिया क

एलोवेरा और तुलसी की इंटरक्रॉपिंग – कम लागत, ज़्यादा लाभ
आज के समय में खेती सिर्फ परंपरागत फसलों तक सीमित नहीं रही है। बदलत

Bee-Keeping और Cross Pollination से बढ़ाएं फसल उत्पादन
खेती सिर्फ हल चलाने का काम नहीं, ये एक कला है और इस कला में विज्ञा
Related Posts
Short Details About