एलोवेरा और तुलसी की इंटरक्रॉपिंग – कम लागत, ज़्यादा लाभ


आज के समय में खेती सिर्फ परंपरागत फसलों तक सीमित नहीं रही है। बदलते समय और बढ़ती मांग के अनुसार किसान अब औषधीय पौधों की खेती की ओर भी बढ़ रहे हैं। इसमें एलोवेरा और तुलसी दो ऐसे पौधे हैं जिनकी मांग देश-विदेश में लगातार बढ़ रही है। खास बात यह है कि यदि इन दोनों पौधों की इंटरक्रॉपिंग (मिश्रित खेती) की जाए, तो किसान को कम लागत में ज़्यादा मुनाफा मिल सकता है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि एलोवेरा और तुलसी की इंटरक्रॉपिंग कैसे करें, इसके फायदे क्या हैं, और बाजार में इसकी मांग कितनी है।
एलोवेरा और तुलसी
एलोवेरा एक रसीला पौधा है जो मुख्य रूप से सौंदर्य प्रसाधन, आयुर्वेदिक दवाइयों और पेय पदार्थों में इस्तेमाल होता है। यह कम पानी में भी अच्छी उपज देता है और इसकी पत्तियां सालभर काटी जा सकती हैं।
तुलसी (Holy Basil) भारतीय संस्कृति में पवित्र मानी जाती है और इसका उपयोग औषधीय उत्पादों, काढ़ा, चाय और आयुर्वेदिक दवाओं में बड़े पैमाने पर होता है। तुलसी की खेती भी तुलनात्मक रूप से आसान होती है और इसमें कीटनाशक की ज़रूरत बहुत कम होती है।

इंटरक्रॉपिंग क्या है?
इंटरक्रॉपिंग का मतलब होता है – एक ही खेत में एक से अधिक फसलों की साथ में खेती करना। इससे जमीन का पूरा उपयोग होता है, कीटों का प्रकोप कम होता है और उपज में वृद्धि होती है।
एलोवेरा और तुलसी की इंटरक्रॉपिंग एक बेहतरीन उदाहरण है, क्योंकि ये दोनों पौधे एक-दूसरे के पोषक तत्त्वों के लिए प्रतिस्पर्धा नहीं करते। तुलसी हल्की छाया में भी बढ़ सकती है, जो एलोवेरा की छाया में उसे मिल जाती है।
खेती की विधि
भूमि का चयन: दोनों फसलों के लिए हल्की दोमट या रेतीली मिट्टी उपयुक्त होती है। जल निकासी अच्छी होनी चाहिए।
खेत की तैयारी: खेत की गहरी जुताई करें और मिट्टी को भुरभुरी बना लें। गोबर की खाद या जैविक खाद मिलाएं।
बुवाई का समय: तुलसी: जून-जुलाई (मानसून की शुरुआत) एलोवेरा: फरवरी से अप्रैल या जून में रोपाई की जा सकती है।
पौधों की दूरी: एलोवेरा की कतारें 60x60 सेमी दूरी पर लगाएं। एलोवेरा की दो कतारों के बीच में तुलसी की एक कतार लगाएं।
सिंचाई: तुलसी को शुरू में नियमित पानी चाहिए, बाद में कम। एलोवेरा को बहुत कम पानी की जरूरत होती है, 15–20 दिन में एक बार।
खाद और उर्वरक: जैविक खाद दोनों पौधों के लिए उत्तम है। तुलसी के लिए नाइट्रोजन और फॉस्फोरस युक्त उर्वरक फायदेमंद होते हैं एलोवेरा में बहुत कम उर्वरक देना चाहिए। लागत और लाभ का विश्लेषण
लागत: तुलसी की एक एकड़ में खेती की औसतन लागत ₹15,000–₹20,000 तक होती है। एलोवेरा की रोपाई और देखरेख की लागत ₹25,000 तक होती है (प्रति एकड़)। इंटरक्रॉपिंग करने पर एक ही भूमि, पानी और श्रम से दोनों फसलों की देखभाल हो जाती है, जिससे कुल लागत में 25–30% तक की बचत होती है।
आय: तुलसी से एक एकड़ में 8–10 क्विंटल सूखी पत्तियां प्राप्त होती हैं, जिनकी कीमत ₹60–₹100 प्रति किलो तक मिल सकती है। एलोवेरा की पत्तियों से जेल निकाला जाता है, और एक एकड़ से लगभग 25–30 टन पत्तियां मिल सकती हैं, जिनसे ₹60,000–₹1,00,000 तक की आय हो सकती है। इस प्रकार, कुल मिलाकर एक एकड़ से ₹1.5 लाख तक की आमदनी संभव है, जबकि लागत ₹40–₹50 हजार के बीच होती है।

औषधीय महत्त्व और बाजार में मांग
एलोवेरा: त्वचा रोगों, बालों की देखभाल, पाचन और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में उपयोगी। एलोवेरा जेल, फेसवॉश, जूस, क्रीम आदि में उपयोग होता है।
तुलसी : सर्दी-जुकाम, बुखार, तनाव, डायबिटीज और इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाने में कारगर। तुलसी चाय, काढ़ा, कैप्सूल, तेल और साबुन में प्रयुक्त होती है।
बाजार में मांग: देशी और विदेशी कंपनियां जैसे Patanjali, Dabur, Himalaya, Baidyanath, और आयुर्वेदिक उत्पाद बनाने वाली अन्य कंपनियां लगातार इन दोनों फसलों की खरीद कर रही हैं।
निर्यात के लिए भी तुलसी और एलोवेरा की भारी मांग है।
इंटरक्रॉपिंग के मुख्य फायदे
1. कम लागत – एक ही भूमि, पानी और संसाधनों से दो फसलों की उपज। 2. उच्च उत्पादन – तुलसी और एलोवेरा दोनों से अच्छा रिटर्न। 3. प्राकृतिक कीट नियंत्रण – तुलसी की खुशबू से कीट कम आते हैं। 4. मिट्टी की उर्वरता में सुधार – तुलसी की जड़ें मिट्टी को पोषक बनाती हैं। 5. बाजार में स्थायी मांग – दोनों फसलें आयुर्वेदिक उद्योग की रीढ़ हैं।
सुझाव: जैविक खेती को प्राथमिकता दें। राज्य सरकारों और आयुष मंत्रालय से जुड़ी योजनाओं की जानकारी लें, जहां इन फसलों पर सब्सिडी मिलती है। स्थानीय हर्बल कंपनियों से पहले से संपर्क बनाएं ताकि फसल बेचने में परेशानी न हो।
निष्कर्ष
एलोवेरा और तुलसी की इंटरक्रॉपिंग न सिर्फ किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाती है, बल्कि पर्यावरण की दृष्टि से भी यह एक अनुकूल विकल्प है। कम लागत, कम पानी और कम देखभाल में तैयार होने वाली ये फसलें भारत के किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती हैं। यदि किसान सही तकनीक, योजना और विपणन रणनीति अपनाएं, तो इस मिश्रित खेती से वे शानदार लाभ कमा सकते हैं। ऐसी अमेजिंग जानकारी के लिए जुड़े रहे Hello Kisaan के साथ और आपको ये जानकारी कैसी लगी हमे कमेंट करके जरूर बताइये ।। जय हिन्द जय भारत ।।
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