सहजन की खेती


सहजन का पेड़ मोरिंगा अपने विविध गुणों, सर्वव्यापी स्वीकार्यता और आसानी से उग आने के लिए जाना जाता है। सहजन का पत्ता, फल और फूल सभी पोषक तत्वों से भरपूर हैं जो मनुष्य और जानवर दोनों के लिए काम आते हैं। सहजन के पौधे का लगभग सारा हिस्सा खाने के योग्य है। पत्तियां हरी सलाद के तौर पर खाई जाती है और करी में भी इस्तेमाल की जाती है। इसके बीज से करीब 38-40 फीसदी नहीं सूखनेवाला तेल पैदा होता है जिसे बेन तेल के नाम से जाना जाता है। इसका इस्तेमाल घड़ियों में भी किया जाता है। इसका तेल साफ, मीठा और गंधहीन होता है और कभी खराब नहीं होता है। इसी गुण के कारण इसका इस्तेमाल इत्र बनाने में किया जाता है।
सहजन का करीब करीब हर हिस्सा खाने लायक होता है। इसकी पत्तियों को भी आप सलाद के तौर पर खा सकते हैं। सहजन के पत्ते, फूल और फल सभी काफी पोषक होते हैं। इसमें औषधीय गुण भी होते हैं। इसके बीज से तेल भी निकलता है।
यह गर्म इलाकों में आसानी से फल फूल जाता है। इसको ज्यादा पानी की भी जरूरत नहीं होती। सर्द इलाकों में इसकी खेती बहुत प्रॉफिटेबल नहीं हो पाती क्योंकि इसका फूल खिलने के लिए 25 से 30 डिग्री तापमान की जरूरत होती है । यह सूखी बलुई या चिकनी बलुई मिट्टी में अच्छी तरह बढ़ता है । पहले साल के बाद साल में दो बार उत्पादन होता है और आमतौर पर एक पेड़ 10 साल तक अच्छा उत्पादन करता है। इसकी प्रमुख किस्में हैं - कोयम्बटूर 2, रोहित 1, पी.के.एम 1 और पी.के.एम 2.
मिट्टी और जलवायु
सहजन की मिट्टी दोमट करने के लिए एक अच्छी तरह से सूखा दोमट में सबसे अच्छी होती है। यह लंबे समय तक जल जमाव का सामना नहीं कर सकते । महाराष्ट्र में उपलब्ध मिट्टी के सभी प्रकार के सहजन की खेती के लिए उपयुक्त हैं। गर्म और आर्द्र जलवायु फूल के लिए विकास और शुष्क जलवायु के लिए उपयुक्त है। 25 डिग्री से 30 सेल्सियस के तापमान सहजन में फूल के लिए उपयुक्त है।
रोपण
सहजन के रोपण सामान्य रूप से बारिश की पहली बौछार के बाद जून के दौरान किया जाता है। 25-60 दिनों के अंकुर रोपण के लिए चुना जाता है या रोपण सीधे बीज के माध्यम से किया जाता है। दो बीज प्रत्येक गड्ढे में लगाए हैं।
दो पौधों के बीच अंतर 3 एक्स 3 लाख टन पर बनाए रखा है। 1 प्रति एकड़ संयंत्र जनसंख्या 445 नंबर करने के लिए बाहर काम करते हैं।
जल निकासी की सुविधा के लिए इस तरह के बैग पर चार छेद, (एक बैग के नीचे से इंच और ऊपर से) बनाकर प्लास्टिक की थैलियों में उठाए गए हैं। 5-10 ग्राम जैविक खाद मिट्टी के साथ बैग में जोड़ा जाता है। प्रोटेक्टंत में पहले से लथपथ बीज 1/2 सेमी की गहराई तक डूबा हुआ है और धीरे मिट्टी के साथ कवर और एक छिड़काव के साथ हर रोज पानी पिलाया जाता है।इसमे ज्यादा पानी की जरूरत होती है।

सहजन की खेती के लिए जलवायु की स्थिति
सहजन की खेती की सबसे बड़ी बात ये है कि ये सूखे की स्थिति में कम से कम पानी में भी जिंदा रह सकता है। कम गुणवत्तावाली मिट्टी में भी ये पौधा लग जाता है। इसकी वृद्धि के लिए गर्म और नमीयुक्त जलवायु और फूल खिलने के लिए सूखा मौसम सटीक है। सहजन के फूल खिलने के लिए 25 से 30डिग्री तापमान अनुकूल है।
मिट्टी की आवश्यकता
मोरिंगा या सहजन का पौधा सूखी बलुई या चिकनी बलुई मिट्टी (जिसमे 6.2 से 7.0 न्यूट्रल की मात्रा तक अम्लीय पीएच हो) में अच्छी तरह बढ़ता है। ये पौधा समुद्र तटीय इलाके की मिट्टी और कमजोर गुणवत्ता वाली मिट्टी को भी सहन कर लेती है।
नर्सरी उत्पादन
सहजन की खेती में अगर आप नर्सरी में उगाये पौधे का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो 18 सेमी की ऊंचाई और 12 सेमी की चौड़ाई वाले पॉली बैग का इस्तेमाल करें। बैग के लिए मिट्टी का मिश्रण हल्का होना चाहिए, उदाहरण के तौर पर तीन भाग मिट्टी और एक भाग बालू। प्रत्येक बैग में एक से दो सेमी गहराई में दो या तीन बीज लगाएं। मिट्टी में नमी रखें लेकिन ध्यान रखें कि वो ज्यादा भीगा न हो। बीज की उम्र और प्री ट्रीटमेंट मेथड के हिसाब से अंकुरण 5 से 12 दिन के भीतर शुरू हो जाता है। बैग से अतिरिक्त पौधा निकाल दें और एक पौधा प्रत्येक बैग में छोड़ दें। जब पौधे की लंबाई 60 से 90सेमी हो जाए तब उसे बाहर लगा सकते हैं। पौधे को बाहर लगाने से पहले बैग की तलहटी में इतना बड़ा छेद बना दें ताकि उसकी जड़ें बाहर निकल सके। इस बात का ध्यान रखें कि पौधे के जड़ के आसपास मिट्टी अच्छी तरह लगा दें।
तेज अंकुरण को प्रोत्साहित करने के लिए प्री सीडिंग ट्रीटमेंट के तीन तरीके अपना सकते हैं
1. पौधारोपन से पहले बीज को पानी में रात भर भीगने के लिए डाल दें
2. पौधारोपन से पहले छिलके को उतार लें
3. छिलके को हटाकर सिर्फ गुठली को लगाएं
खाद और ऊर्वरक
आमतौर पर मोरिंगा का पेड़ बिना ज्यादा ऊर्वरक के ही अच्छी तरह से तैयार हो जाता है। पौधारोपन से 8 से 10 दिन पहले प्रति पौधा 8 से 10 किलो फार्म खाद डाला जाना चाहिए और पौधारोपन के दौरान प्रति हेक्टेयर 50 किलो नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटास (सभी 50-50 किलो) डाला जाना चाहिए। प्रत्येक छह महीने के अंतराल पर तीनों की इतनी ही मात्रा पौधे में डाली जानी चाहिए।
सिंचाई
काली कपास भारी मिट्टी में 15-20 दिनों के अंतराल बनाए रखा जा सकता है, जबकि प्रकाश मिट्टी में, सिंचाई, 10-12 दिनों के अंतराल पर दी जा सकती है। पत्ते गिर जाते हैं क्योंकि सिंचाई फ़रवरी महीने के बाद बंद कर दिया जाना चाहिए और संयंत्र मई माह तक आराम की आवश्यकता है। सिंचाई फ़रवरी-मई के दौरान दिया जाता है, तो यह कम उत्पादन हो सकता है। सिंचित क्षेत्रों में सिंचाई नवंबर-दिसंबर के महीनों के दौरान अधिक फूल के लिए संयंत्र के लिए तनाव देने के लिए 1 अक्टूबर-20 अक्तूबर से रोका जाना चाहिए। फली के गठन तक फूल के बाद, सिंचाई के बारे में 10-20 दिन के अंतराल के लिए आवश्यक है।
फसल की कंटाई-छटाई
पेड़ की कटाई-छटाई का काम पौधारोपन के एक या डेढ़ साल बाद (ठंडे मौसम में तरजीह दे सकते हैं) की जा सकती है। दो फीट की ऊंचाई पर प्रत्येक पेड़ में3 से 4 शाखाएं छांट सकते हैं।
हानिकारक कीट और रोग
सहजन अधिकांश कीटों से लड़ने की क्षमता रखता है। जहां ज्यादा पानी जमा होने की स्थिति है वहां डिप्लोडिया रुट रॉट पैदा हो सकता है। भीगी हुई स्थिति में पौधारोपन मिट्टी के ढेर पर किया जाना चाहिए ताकि ज्यादा पानी अपने-आप बह कर निकल जाए। पशु, भेड़, सुअर और बकरियां मोरिंगा के पौधे, फल और पत्तियों को खा जाती हैं। मोरिंगा के पौधे को पशुओं से बचाने के लिए बाड़ा या पौधे के चारों ओर लिविंग फेन्स लगाया जा सकता है। कहा जाता है कि भारत में अगर कीटनाशकों का छिड़काव नहीं किया जाता है तो केटरपिलर की वजह से पत्ते झड़़ने लगते हैं ।
सहजन की खेती के महत्वपूर्ण पहलु
ड्रमस्टिक का एकमात्र फसल के रूप में 10 एकड़ पर खेती कर रहे हैं, यह शहद उद्देश्य के लिए मधुमक्खियों को पालने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। 60-100 किलो शहद की एक उपज 0.4 हा (1 एकड़) हर से प्राप्त किया जाता है । इसके अलावा, मधुमक्खियों परागण की दर में वृद्धि और परोक्ष रूप से 25 से 30% तक सहजन की उपज में वृद्धि।
इतनी हो सकती है कमाई
एक एकड़ में करीब 1500 पौधे लग सकते हैं। सहजन के पेड़ मोटे तौर पर 12 महीने में उत्पादन देते हैं। पेड़ अगर अच्छी तरह से बढ़े हैं तो 8 महीने में ही तैयार हो जाते हैं। कुल उत्पादन 3000 किलो तक हो जाता है। सहजन का फुटकर रेट आमतौर पर 40 से 50 रहता है। थोक में इसका रेट 25 रुपए के आसपास होता है। इस तरह से 7.5 लाख का उत्पादन हो सकता है। अगर इसमें से लागत निकाल दें तो 6 लाख तक का फायदा हो सकता है।
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