प्राकृतिक खेती का जीवंत उदाहरण


हरियाणा के करनाल जिले के रसूलपुरा गांव में एक किसान हैं – सचिन आहूजा। नाम भले ही बड़ा शांत लगे, लेकिन काम ऐसा कि खेती की सोच ही बदल दे। इन्होंने 3.5 एकड़ ज़मीन पर पूरी तरह प्राकृतिक खेती का ऐसा प्लॉट मॉडल खड़ा किया है, जिसे देखकर बड़े-बड़े किसान और वैज्ञानिक भी हैरान हो जाएं।

प्लॉट नंबर 1: शेल्टर और पशुधन आधारित खेती
इस भाग में सचिन जी ने शेल्टर बनाया है, जिसमें देसी गायें और अन्य जानवर रहते हैं। उन्होंने गायों के लिए चारे के रूप में बरसीम भी लगाया है। यही गायें उनके प्राकृतिक खेती मॉडल की आत्मा हैं। गोबर, गौमूत्र, और अन्य जैविक अवशेषों से यह खेत आत्मनिर्भर बना हुआ है।
प्लॉट नंबर 2: मिश्रित सब्जी उत्पादन
यह भाग पूरी तरह से मिक्स्ड वेजिटेबल्स को समर्पित है। इसमें घीया, टोरी, कुसुम साग, और देसी टमाटर जैसे मौसमी सब्जियां उगाई जाती हैं। धनिया का बीज भी यहीं तैयार किया जाता है। खास बात यह है कि यहां मल्चिंग तकनीक का उपयोग किया जाता है जिससे नमी संरक्षित रहती है और खरपतवार नियंत्रित होते हैं। खेती के लिए वह पावर ट्रिलर का इस्तेमाल करते हैं, ट्रैक्टर का नहीं, जिससे पर्यावरण पर कम असर पड़ता है।
प्लॉट नंबर 3: लहसुन और गेहूं की जैविक खेती
इस खंड में देसी लहसुन लगाया गया है, जिसकी सुगंध और औषधीय गुण खास होते हैं। साथ ही, यहां गेहूं भी लगाया गया है, जिसका बीज उन्होंने मध्य प्रदेश से मंगवाया है। पूरी खेती रसायन मुक्त और प्राकृतिक तरीके से होती है।
प्लॉट नंबर 4: देसी चना और आलू की विविधता
यहां काला चना, डायमंड आलू, बैंगन और चुकंदर की खेती की जा रही है। सभी फसलें शुद्ध जैविक हैं जिनमें न तो कोई कीटनाशक डाला गया है, न ही कोई यूरिया।
बफर जोन: प्राकृतिक रक्षा और विविध उत्पादन
पूरे खेत के बीच में एक 20 फीट चौड़ा बफर जोन बनाया गया है, जिसमें 5 लेयर फसलें लगाई गई हैं:
1. नेपियर घास – जो आसपास के खेतों से केमिकल स्प्रे के असर को रोकती है
2. गन्ना – शर्करा का स्त्रोत
3. मिक्स्ड फ्रूट्स – जैसे केला, पपीता
4. हल्दी – औषधीय गुणों से भरपूर
5. पेड़-पौधे – आम और चीकू जैसे फलदार पेड़, जो पर्यावरण संतुलन बनाए रखते हैं

बायोगैस और खाद निर्माण: आत्मनिर्भरता की मिसाल
सचिन जी ने खेत में एक बायोगैस प्लांट भी लगाया है। इसमें गाय का गोबर, गौमूत्र और गुड़ डालकर उसे किण्वित किया जाता है। गर्मियों में 1 दिन और सर्दियों में 2-3 दिन में गैस तैयार हो जाती है। गैस को पाइप के माध्यम से रसोई में भेजा जाता है, और बचे हुए फर्मेंटेड घोल को खाद के रूप में खेत में प्रयोग किया जाता है। यह प्रक्रिया न सिर्फ पर्यावरण के लिए हितकारी है, बल्कि खेत की उर्वरता भी बनाए रखती है।

पशुधन आधारित खाद प्रणाली
सचिन जी के पास गायों के अलावा मुर्गी, बत्तख, खरगोश और बकरियां भी हैं। इन सबके मल-मूत्र से अलग-अलग प्रकार की जैविक खाद तैयार की जाती है। वह ताजा गोबर सीधे खेत में नहीं डालते, बल्कि उसमें गुड़ का पानी, डिकंपोजर और बायोगैस से निकला पानी मिलाकर उसे 2-3 महीनों तक कंपोस्ट बनाते हैं। इससे मिट्टी को गर्मी नहीं लगती और दीमक जैसी समस्याएं भी नहीं आतीं।
खास फसलें और बीज संग्रह
सचिन जी काली हल्दी की खेती भी करते हैं, जिसका बीज उन्होंने मेघालय से मंगवाया था। इसके अलावा उनके पास देसी बीजों का अच्छा संग्रह है, जो उन्हें आत्मनिर्भर बनाता है और फसल की गुणवत्ता को बनाये रखता है।
निष्कर्ष
सचिन आहूजा जी का फार्म सिर्फ एक खेत नहीं, बल्कि एक जीवित प्रयोगशाला है, जहां परंपरा, विज्ञान और प्रकृति का अद्भुत संगम होता है। उनके मॉडल से हमें यह सीख मिलती है कि कम उत्पादन के बावजूद भी अगर गुणवत्ता बेहतर हो, तो किसान न सिर्फ आत्मनिर्भर हो सकता है, बल्कि पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए भी वरदान साबित हो सकता है।
यह फार्म न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि भविष्य की खेती का दिशा-निर्देशक भी है।
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