भारत गन्ना उत्पादन में विश्व के शीर्ष देशों में स्थान रखता है, जो देश की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में गन्ने का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण बना देता है। गन्ना न केवल चीनी उत्पादन के लिए उपयोग किया जाता है, बल्कि इससे गुड़, खांडसारी और इथेनॉल जैसे उत्पाद भी तैयार किए जाते हैं। किसानों के लिए गन्ने की अपने क्षेत्र के अनुसार श्रेष्ठ किस्मों का चयन करना अधिक उत्पादन और मुनाफा प्राप्त करने का प्रमुख आधार है। आये जानते हैं प्रमुख क्षेत्रों में उगने वाली कुछ चुनिंदा किस्मों और उनकी खूबियों के बारे में। 


उत्पादन हेतु विशेष कारक:

गन्ने की खेती के लिए मिट्टी, जलवायु, सिंचाई की सुविधा और उर्वरक का सही तालमेल आवश्यक है। विभिन्न क्षेत्रों की जलवायु और मिट्टी की प्रकृति अलग होती है, इसलिए गन्ने की किस्मों का चयन करते समय विशेष ध्यान रखना आवश्यक है। उत्तर भारत में गन्ने की खेती मुख्यतः उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और बिहार में रबी फसल के रूप में तथा ठंडी जलवायु में अच्छे से विकसित होती है।


महत्वपूर्ण किस्में-

को-0238 (Co-0238):

ये उत्तर प्रदेश और बिहार में सबसे लोकप्रिय किस्म है, जो प्रति हेक्टेयर में 80 से 100 टन तक का उत्पादन करती है। इससे चीनी का प्रतिशत भी 12 से 13% तक उत्पादित हो जाता है। इस बीज की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी उच्च है और यह 10 से 12 महीने के कम समय में ही परिपक्व हो जाता है, जिस कारण किसान भाई इसे लगाना उचित समझते हैं।


को-0118 (Co-0118):

यह किस्म भी उत्तर भारत की जलवायु और मिट्टी के लिए अनुकूल है। इस बीज को जल भराव या सुखा वाली भूमि में उगाकार भी अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। इससे उत्पादित गन्ने की लंबाई और मोटी अधिक रहती है तथा यह उच्च क्वालिटी की चीनी उत्पादित करने हेतु भी प्रसिद्ध है। 



को-05011 (Co-05011):

उत्तर प्रदेश और पंजाब में लम्बे और वजनदार गन्ने के लिए लोकप्रिय यह किस्म महत्वपूर्ण है। इसकी फसल में पत्तियां आसानी से झड़ जाती है और कटाई भी सरल होती है।पश्चिमी भारत के महाराष्ट्र और गुजरात में गन्ना मुख्य फसल है। यहाँ की जलवायु अर्ध-शुष्क है और सिंचाई की सुविधा आवश्यक है। अत: इस क्षेत्र की प्रमुख किस्मों में को-86032 (Co-86032), को-92005 (Co-92005) ये किस्म बुवाई के बाद दूसरी और तीसरी फसल के लिए भी उपयुक्त है। 


इसके अलावा दक्षिण भारत के तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश में को-99004 (Co-99004), को-86032 (Co-86032), को-62175 (Co-62175) आदि प्रमुख किस्में वरीयता के साथ उगाई जाती है। इन किस्मों का फसल कटाई के बाद पुनः अंकुरण उच्च वृद्धि के साथ किया जाता है, तथा इससे प्राप्त रस में उच्च चीनी मात्रा उत्पादित होती है। यह किस्म खेत की उर्वरक शक्ति बढ़ाने हेतु फसल चक्र के लिए भी उपयोगी है।

पूर्वी भारत में पश्चिम बंगाल, असम, और उड़ीसा में गन्ने की खेती की जाती है। यहाँ की जलवायु आर्द्र और गर्म होती है।‌ यहां की महत्वपूर्ण किस्मों में को-0238 (Co-0238), बीओ-91 (BO-91) आदि किस्म यहां की जलवायु के अनुसार किसानों के लिए लाभदायक हो सकती है। इन किस्मों में जल शोषण की क्षमता भी अधिक होती है।


गन्ना उत्पादन में वृद्धि के लिए सुझाव:

किसान भाइयों को अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए अपने क्षेत्र अनुसार किस्मों का चयन करना चाहिए। सही समय पर बुवाई और आवश्यक खाद/उर्वरक का उपयोग करें। गन्ने के लिए 3-4 सिंचाई चक्र आवश्यक होते हैं। अतः इसकी नियमित रूप से सिंचाई पर ध्यान दें। समय-समय पर कीटनाशकों और जैविक उपायों का भी उपयोग करते रहें तथा अंत में फसल कटाई के सही समय का चयन भी पूरा विश्लेषण करके करें, ताकि चीनी उत्पादन अधिक हो सकें।


अतः गन्ने की खेती में सफलता के लिए सही किस्म का चयन और प्रबंधन आवश्यक है। भारत के विभिन्न क्षेत्रों में भौगोलिक और जलवायु विविधता के अनुसार उपयुक्त गन्ना किस्मों का चयन करना किसानों को अधिक उत्पादन और मुनाफा प्रदान कर सकता है। को-0238, को-86032 जैसी उन्नत किस्में किसानों को नई ऊँचाई तक ले जाने में सहायक हैं। सही तकनीकों और सरकार द्वारा दी गई सुविधाओं का उपयोग करके किसान अपनी आय में वृद्धि कर सकते हैं। दोस्तों कैसी लगी आपको यह जानकारी कमेंट पर अवश्य बताएं तथा ऐसे ही जानकारी के लिए जुड़े रहे Hello Kisaan के साथ। धन्यवाद॥ जय हिंद, जय किसान॥