आज़ादी के बाद भारत के किसान का योगदान


15 अगस्त 1947, एक ऐसा दिन जब भारत ने अंग्रेज़ों की गुलामी की ज़ंजीरों को तोड़ा और एक आज़ाद राष्ट्र के रूप में सांस ली। लेकिन इस आज़ादी के साथ आया एक बहुत बड़ा सवाल – “अब आगे क्या?” देश का खज़ाना खाली था, उद्योग सीमित थे, और करोड़ों लोगों को दो वक्त की रोटी तक प्राप्त नहीं थी। ऐसे समय में एक ही वर्ग था जिसने बिना शोर, बिना मांग और बिना थमे देश की नींव को थामा – भारतीय किसान।आज़ादी के बाद भारत के विकास की जो कहानी लिखी गई, उसमें किसानों की मेहनत, सहनशीलता और संघर्ष सबसे मजबूत कड़ी रही है। चलिए जानते हैं कैसे

1. जब देश आज़ाद हुआ, किसान फिर भी जूझता रहा
आज़ादी के समय भारत की बड़ी आबादी कृषि पर निर्भर थी। लेकिन उस दौर की खेती बेहद पिछड़ी हुई थी – ज़मींदारी प्रथा हावी थी, सिंचाई के साधन नहीं थे, खाद-बीज की किल्लत थी, और तकनीक नाममात्र की थी। किसान मेहनत करता था लेकिन फसल का मालिक कोई ज़मींदार या साहूकार होता था। इन हालातों के बावजूद किसान डटा रहा। उसने बंजर ज़मीन को उपजाऊ बनाया, सूखे खेतों में उम्मीद बोई और भूख से लड़ते भारत को अन्न देना जारी रखा।
2. ज़मींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार: पहली क्रांति
1950 के बाद सरकार ने ज़मींदारी प्रथा को खत्म करने की दिशा में कदम बढ़ाए। भूमि सुधारों के ज़रिए किसानों को उनके खेतों का मालिकाना हक मिला। यह सिर्फ जमीन का अधिकार नहीं था, बल्कि सम्मान, आत्मनिर्भरता और सामाजिक न्याय की शुरुआत थी। गाँवों की संरचना बदलने लगी, किसान पहली बार अपने पैरों पर खड़ा हुआ – गर्व से, आत्मविश्वास से।
3. हरित क्रांति: जब किसान बना भारत का अन्नदाता
1960 के दशक में देश गंभीर खाद्यान्न संकट से जूझ रहा था। गेहूं तक अमेरिका से आयात करना पड़ता था। तब आया बदलाव – हरित क्रांति। पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसानों ने उन्नत बीज, रासायनिक खाद, ट्रैक्टर, सिंचाई तकनीक अपनाई और फसलों का उत्पादन कई गुना बढ़ा दिया। भारत अब खुद के लिए अन्न उगाने में सक्षम हो गया। ये सिर्फ तकनीक की जीत नहीं थी, ये उस किसान की जीत थी, जिसने सूखे खेतों में भी उम्मीद की फसल बोई थी।

4. श्वेत क्रांति: जब दूध बना रोज़गार का जरिया
1970 के दशक में डॉ. वर्गीज कुरियन के नेतृत्व में भारत में दूध की क्रांति हुई। सहकारी समितियों ने गांव-गांव तक अपनी पहुंच बनाई। महिलाएं बड़ी संख्या में जुड़ीं, पशुपालन को आय का स्रोत बनाया और भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश बना। ये बदलाव दिखाता है कि किसान अब सिर्फ अनाज तक सीमित नहीं था – वह नवाचार और विविधता की ओर बढ़ रहा था।

5. 1991 के बाद: नई अर्थव्यवस्था, नई चुनौतियाँ
आर्थिक उदारीकरण के बाद भारत ने तेज़ी से विकास की ओर कदम बढ़ाया, लेकिन किसानों के लिए यह दौर कई नई चुनौतियाँ लेकर आया – बीज, खाद, डीज़ल महंगे हुए, फसल की कीमतें कम मिलीं, जलवायु बदलाव और प्राकृतिक आपदाओं ने हालात और कठिन बनाए। लेकिन किसान कहां रुकने वाला था? उसने जैविक खेती अपनाई, नई तकनीकों का उपयोग किया, एग्री स्टार्टअप्स और मोबाइल एप्स की मदद से बाज़ार से सीधा जुड़ना सीखा। आज हजारों युवा किसान एग्रो-प्रेन्योर बनकर खेती को एक नया आयाम दे रहे हैं।
6. पर्यावरण और समाज में किसान की भूमिका
आज़ादी के बाद किसान ने सिर्फ अनाज नहीं उगाया, उसने धरती की सेहत का भी ध्यान रखा। मिट्टी संरक्षण, पारंपरिक बीजों का संरक्षण, जल संचयन, और प्राकृतिक खेती जैसे प्रयासों से वह पर्यावरण का संरक्षक भी बना। महिलाओं की भागीदारी बढ़ी, सहकारी समितियों के ज़रिए सामूहिक निर्णय लेने की शक्ति आई। गांवों में शिक्षा, स्वच्छता और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार में भी किसान परिवारों की अहम भूमिका रही।
7. कोरोना काल: जब देश थमा, किसान नहीं
2020 में जब कोरोना महामारी ने दुनिया को रोक दिया, शहरों में सन्नाटा था, फैक्ट्रियाँ बंद थीं – लेकिन खेतों में हल चलते रहे। किसानों ने सामाजिक दूरी के नियमों का पालन करते हुए खेती की, कटाई की और सुनिश्चित किया कि देश को भूखा न सोना पड़े। यह साबित करता है कि संकट चाहे जितना भी बड़ा हो, किसान कभी पीछे नहीं हटता।
8. आज का किसान: बदलाव की अगली लहर
आज भारत का किसान सिर्फ गेहूं या धान नहीं उगा रहा – वह मशरूम, एलोवेरा, ड्रैगन फ्रूट, वैनिला जैसी नई-नई फसलों में प्रयोग कर रहा है। वह इंटरनेट, FPOs, ई-कॉमर्स, प्रोसेसिंग यूनिट और कृषि पर्यटन जैसे क्षेत्रों में आगे बढ़ रहा है। आज का किसान सिर्फ अन्नदाता नहीं, विकासदाता बन गया है – वह खेती को उद्यमिता की तरह देख रहा है और भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में अग्रसर है।
निष्कर्ष: जब किसान चलता है, तब देश संभलता है
भारत की आज़ादी के बाद अगर देश खड़ा हुआ, भूख पर जीत पाई, आत्मनिर्भर बन पाया – तो इसका सबसे बड़ा श्रेय किसान को जाता है। उसने कभी शिकायत नहीं की, बस लगातार काम किया – खेतों में, समाज में और राष्ट्र के निर्माण में। इस स्वतंत्रता दिवस पर, आइए एक संकल्प लें Hello Kisaan जैसे मंचों के साथ मिलकर हम अपने किसानों को जानकारी, तकनीक और समर्थन देंगे। लोकल कृषि उत्पाद अपनाएँ, कृषि शिक्षा को फैलाएँ और अपने अन्नदाता को सम्मान दें। क्योंकि जब तक किसान हँसता है, भारत महकता है।
।।जय हिन्द जय भारत।।
Comment
Also Read

पपीते की खेती – किसानों के लिए फायदे का सौदा
खेती किसानी में अक्सर किसान भाई यह

बकरी के दूध से बने प्रोडक्ट्स – पनीर, साबुन और पाउडर
भारत में बकरी पालन (Goat Farming)

एक्सपोर्ट के लिए फसलें: कौन-कौन सी भारतीय फसल विदेशों में सबसे ज्यादा बिकती हैं
भारत सिर्फ़ अपने विशाल कृषि उत्पादन के लिए ही नहीं, बल्कि दुनिया क

एलोवेरा और तुलसी की इंटरक्रॉपिंग – कम लागत, ज़्यादा लाभ
आज के समय में खेती सिर्फ परंपरागत फसलों तक सीमित नहीं रही है। बदलत

Bee-Keeping और Cross Pollination से बढ़ाएं फसल उत्पादन
खेती सिर्फ हल चलाने का काम नहीं, ये एक कला है और इस कला में विज्ञा
Related Posts
Short Details About