बारिश के मौसम में बोई जाने वाली फसलें


बारिश का मौसम यानी खेती के लिए नई ऊर्जा का समय। जब धरती पर बूंदें गिरती हैं, तो खेतों की मिट्टी मुस्कुराने लगती है और किसान के चेहरे पर उम्मीद की चमक दिखाई देती है। भारत में खरीफ का मौसम (जून से सितंबर तक) खासतौर पर बारिश पर आधारित होता है। इस मौसम में अगर वैज्ञानिक तरीकों से खेती की जाए, तो बंपर उत्पादन संभव है और किसानों की आय कई गुना बढ़ सकती है।
इस लेख में हम बात करेंगे उन प्रमुख फसलों की जिन्हें बारिश के मौसम में बोया जाता है और साथ ही जानेंगे वैज्ञानिक तकनीकों से कैसे उपज बढ़ाई जा सकती है।

1. बारिश के मौसम में बोई जाने वाली मुख्य फसलें
(क) धान (चावल) - बुवाई का समय: जून के मध्य से जुलाई तक
जल की आवश्यकता: अधिक (150-200 सेमी) प्रमुख राज्य: पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, बिहार विविधता: MTU-1010, Pusa Basmati-1, IR-64
(ख) मक्का (कॉर्न) - बुवाई का समय: जून के अंत से जुलाई तक
जल की आवश्यकता: मध्यम उपयोग: चारे, भोजन, तेल व औद्योगिक उपयोग उन्नत किस्में: HQPM-1, Bio-9637, DHM-117
(ग) सोयाबीन - बुवाई का समय: जून से जुलाई
जल की आवश्यकता: 50-60 सेमी राज्य: मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान प्रमुख किस्में: JS-335, NRC-37, MACS-1188
(घ) बाजरा (पर्ल मिलेट) -सहनीयता: सूखा और अधिक तापमान
उपयोग: मोटा अनाज, पोषण से भरपूर किस्में: HHB-67, Raj-171, Pusa 605

(ङ) उड़द और मूंग (दालें) - जल की आवश्यकता: कम
भूमि: मध्यम उपजाऊ भूमि में अच्छी उपज किस्में: IPU-2-43 (मूंग), T-9 (उड़द)
(च) कपास - बुवाई का समय: जून के मध्य
जल की आवश्यकता: 70-80 सेमी उन्नत किस्में: Bt-Cotton, MECH-12, RCH-134

2. वैज्ञानिक तरीके जो बंपर उत्पादन सुनिश्चित करें
(1) बीज उपचार और उन्नत बीजों का चयन - रोगों से बचाने के लिए बोआई से पहले बीजों को ट्राइकोडर्मा या कार्बेन्डाजिम से उपचारित करें।
उन्नत और प्रमाणित बीजों का उपयोग करें ताकि अंकुरण अच्छा हो और पौधे स्वस्थ रहें।
(2) मिट्टी की जांच और सुधार - मिट्टी की pH जांचें: फसल के अनुकूल pH (5.5 – 7.5) सुनिश्चित करें। ज़रूरत के अनुसार जैविक खाद (गाय का गोबर, वर्मी कम्पोस्ट) या रासायनिक खाद का संतुलित उपयोग करें। सल्फर, जिंक और बोरॉन की कमी न हो, इसका ध्यान रखें।
(3) जल प्रबंधन - फसलों के अनुसार जल निकासी का सही इंतज़ाम करें। धान के खेतों में खालियां (bunds) बनाकर पानी रोकें, जबकि उड़द/मूंग में पानी का जमाव बिल्कुल न हो। रेन वॉटर हार्वेस्टिंग तकनीक अपनाकर जल संग्रह करें।
(4) मल्चिंग और इंटरक्रॉपिंग तकनीक - मल्चिंग: खेत में खरपतवार कम करने और नमी बनाए रखने के लिए गीली घास या प्लास्टिक शीट का प्रयोग करें। इंटरक्रॉपिंग: जैसे मक्का के साथ मूंग या सोयाबीन बोना, इससे भूमि उपयोग बेहतर होता है और कुल लाभ अधिक मिलता है।
(5) जैविक और समेकित कीट नियंत्रण - नीम का तेल, ट्राइकोडर्मा और बीटी बैक्टीरिया जैसे जैविक कीटनाशकों का प्रयोग करें। ट्रैप (pheromone traps, yellow sticky traps) लगाकर कीटों की संख्या पर निगरानी रखें। अत्यधिक रसायन का प्रयोग न करें — इससे भूमि की उर्वरता घटती है।
(6) फसल चक्र और रोटेशन - हर साल फसल बदलें ताकि मिट्टी में पोषक तत्व संतुलन बना रहे। जैसे – पहले वर्ष धान, अगले वर्ष दाल या तिलहन।
3. अतिरिक्त सुझाव – लाभ और सरकारी योजनाएं
PM-Kisan योजना के अंतर्गत ₹6,000 सालाना किसानों को सीधे मिलते हैं। किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) से सस्ती ब्याज दर पर कृषि ऋण लिया जा सकता है। फसल बीमा योजना के अंतर्गत प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा मिलती है।
निष्कर्ष
बारिश का मौसम केवल खेतों के लिए नहीं, किसानों की तरक्की के लिए भी सबसे अहम होता है। यदि वैज्ञानिक तरीकों से खेती की जाए – जैसे मिट्टी की जांच, उन्नत बीज, जल प्रबंधन और जैविक कीटनाशक – तो उपज में बंपर वृद्धि संभव है। आज का किसान यदि स्मार्ट तरीके से मौसम और तकनीक का इस्तेमाल करे, तो खेती एक घाटे का सौदा नहीं, बल्कि मुनाफे का ज़रिया बन सकती है। यही समय है बदलाव लाने का – अपने खेत को एक प्रयोगशाला बनाइए, और हर मौसम को अवसर में बदल दीजिए।
टिप: अगर आप स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) से संपर्क करते हैं तो क्षेत्रीय मिट्टी और मौसम के अनुसार सबसे उपयुक्त फसल व तकनीक की जानकारी मिल सकती है। ऐसी अमेजिंग जानकारी के लिए जुड़े रहे Hello Kisaan के साथ और आपको ये जानकारी कैसी लगी कमेंट कर के जरूर बताइये ।। जय हिन्द जय भारत ।।
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