औषधीय पौधों का महत्व प्राचीन काल से ही आयुर्वेद, यूनानी और होम्योपैथी चिकित्सा में रहा है। आज भी इन पौधों का उपयोग फार्मास्यूटिकल, कॉस्मेटिक्स, और स्वास्थ्य उत्पादों में किया जाता है। भारत में औषधीय पौधों की खेती तेजी से लोकप्रिय हो रही है, क्योंकि इनका उत्पादन किसानों के लिए एक स्थायी आय का स्रोत बन सकता है। आज एक बार फिर से लोग देसी औषधीयों की ओर लौट आए हैं तथा उनका इस्तेमाल करने में पूर्ण विश्वास रखते हैं, जिस कारण इनकी मांग दिनों दिन बढ़ती जा रही है। आये जानते हैं कुछ ऐसे ही औषधीय पौधों की खेती के बारे में।


अश्वगंधा (Withania somnifera):

अश्वगंधा एक महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है, जिसकी जडें और पत्ते औषधिय बाजार में अपना शीर्ष स्थान बनाए हुए हैं। ये तनाव, ऊर्जा वृद्धि और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में अत्यंत कारगर है। इसकी खेती हल्की रेतीली और दोमट मिट्टी में तथा गर्म और शुष्क जलवायु में सफल रूप से होती है। इसकी फसल में पानी की बहुत ही कम आवश्यकता है तथा यह 150 से 180 दिन में तैयार हो जाती है।


एलोवेरा (Aloe vera):

एलोवेरा सौंदर्य प्रसाधन, औषधीय उत्पाद, और खाद्य पेय पदार्थों में वृहत रूप से उपयोग होता हैं। इसे गर्म और शुष्क जलवायु में तथा रेतीली और दोमट मिट्टी में अच्छी तरह उगया जाता है, जिसका pH स्तर 7.0-8.5 होना चाहिए। इसकी खेती कलमों या जड़ों के टुकड़ों से रोपाई कर के की जाती है तथा पौधों के बीच 50x60 सेमी की दूरी रखें। इसकी खेती में सिंचाई की आवश्यकता कम होती है, विशेषकर मानसून के बाद। यदि मुनाफे की बात करें तो प्रति हेक्टेयर क्षेत्र में 40-50 टन उपज उत्पादित कर औसतन 2-4 लाख रुपये प्रति वर्ष की आय प्राप्त कर सकते हैं।


सर्पगंधा (Rauvolfia serpentina):

यह एक ऐसा औषधिय पौधा जो उच्च रक्तचाप, अनिद्रा, और मानसिक विकारों के उपचार में बेहद उपयोगी है। इसकी जड़ों से बनी औषधियां उपयोग में ली जाती हैं। अच्छी खेती के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु तथा उपजाऊ दोमट मिट्टी उपयुक्त है। इसका उत्पादन बीज या कलम द्वारा प्रजनन के माध्यम से होता है और सिंचाई नियमित रूप से की जाती है। इस प्रकार प्रति हेक्टेयर 3-4 टन जड़ की उपज उत्पादित हो जाती है, जो बाजार में ₹200-300 प्रति किलो तक आसानी से बिकती है


स्टीविया (Stevia rebaudiana):

प्राकृतिक शर्करा या चीनी के विकल्प के रूप में मधुमेह रोगियों और स्वास्थ्य उत्पादों में मुख्य रूप से प्रयोग होती है। उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में उगाया जा सकता है। इसके लिए अच्छी जल निकासी वाली रेतीली दोमट मिट्टी उपयुक्त है। ये बीज, कलम या जड़ से प्रजनित होकर 4 से 5 महीने में प्रयोग हेतु तैयार हो जाता है। स्टीविया प्रति हेक्टेयर क्षेत्रफल में 30-35 क्विंटल पत्तियों की उपज दे सकता है तथा बाजार में इसकी पत्तियों का मूल्य ₹300-500 प्रति किलो तक होता है।


शतावरी (Asparagus racemosus):

बेहद प्राचीन और कारगर औषधि शतावरी का उपयोग स्त्रियों के स्वास्थ्य, प्रजनन क्षमता, और पाचन तंत्र के सुधार के लिए किया जाता है। ये गर्म जलवायु की उपजाऊ और रेतीली मिट्टी में 12 से 18 महीने में तैयार हो जाता है। इसकी जड़ें और सूखे पत्ते आयुर्वेदिक उत्पादों में उपयोग होते हैं।


कालमेघ (Andrographis paniculata):

ये औषधी यकृत, पाचन तंत्र और प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने के लिए इस्तेमाल की जाती है। इसकी खेती उष्णकटिबंधीय जलवायु की दोमट और रेतीली मिट्टी में तीन से चार महीने में पक कर तैयार हो जाती है। अन्य औषधियों की तरह इसकी भी औषधीय बाजार में अत्यधिक मांग रहती है।


ब्राह्मी (Bacopa monnieri):

स्मरण शक्ति, तनाव, और मानसिक स्वास्थ्य के लिए कारगर ब्राह्मी औषधि का सेवन विभिन्न रूपों में होता है। इसकी खेती आद्र और गर्म जलवायु की उपजाऊ और नम मिट्टी में सफल रूप से की जाती है। बाजार में ब्राह्मी के तेल और चूर्ण की मांग लगभग हमेशा ही बनी रहती है।


सामान्य सुझाव:

इन गुणकारी औषधीय खेती से बने विभिन्न प्रकार के उत्पाद के अलग-अलग फायदे होते हैं। इन औषधियों को किसान द्वारा सीधे बाजार में बेचने के बजाय प्रसंस्करण अर्थात् उत्पाद बनाकर बेचना अधिक लाभदायक होता है।इस प्रकार की खेती के लिए विभिन्न सरकारी सब्सिडी और प्रशिक्षण कार्यक्रम भी उपलब्ध होते रहते हैं। इनकी मांग फार्मास्यूटिकल, एफएमसीजी, और आयुर्वेदिक उद्योगों में अधिक है। उचित योजना और आधुनिक तकनीक का उपयोग करके औषधीय खेती से अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। पारंपरिक फसलों की तुलना में औषधीय पौधे कम लागत में अधिक लाभ देते हैं। ये न सिर्फ घरेलू बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी हर्बल उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ रही है। राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड (NMPB) और अन्य योजनाएं किसानों को सब्सिडी और प्रशिक्षण प्रदान करती हैं।

इस प्रकार औषधीय पौधों की खेती किसानों के लिए एक लाभकारी और टिकाऊ विकल्प है। यदि सही तकनीक और सरकारी योजनाओं का उपयोग किया जाए, तो यह खेती न केवल आर्थिक दृष्टि से फायदेमंद होगी, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और स्वास्थ्य सुधार में भी योगदान देगी। भारत में आयुर्वेदिक उत्पादों की बढ़ती मांग औषधीय पौधों की खेती को बढ़ावा दे रही है। पतंजलि, डाबर, हिमालया जैसी बड़ी कंपनियां औषधीय पौधों के लिए किसानों से सीधे अनुबंध कर रही हैं। इसके अलावा किसान अपने उत्पाद ऑनलाइन प्लेटफॉर्म जैसे Amazon और Flipkart के जरिए भी बेच सकते हैं। इस प्रकार की खेती करने वाले किसानों को सरकार द्वारा आयोजित किए जाने वाले प्रशिक्षण और जागरूकता कार्यक्रमों में भाग लेकर सही जानकारी के साथ ही खेती को सुचारू रूप से करना चाहिए। दोस्तों कैसी लगी आपको यह जानकारी कमेंट करके बताएं तथा ऐसी ही जानकारी के लिए जुड़े रहे Hello Kisaan के साथ। धन्यवाद॥ जय हिंद,जय किसान॥