भारत की जिलावार देसी गायें: हमारी असली दौलत


भारत में गाय को हमेशा से “माँ” का दर्जा दिया गया है। यह केवल एक पशु नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, आस्था, कृषि और स्वास्थ्य का आधार है। खासतौर पर देसी गायें हमारे देश की मिट्टी, मौसम और खानपान के अनुसार ढली हुई हैं, इसलिए ये मजबूत, टिकाऊ और बहुउपयोगी होती हैं। भारत का लगभग हर राज्य और जिला अपनी अलग देसी नस्ल के लिए जाना जाता है। इन गायों की खासियत है कि ये सिर्फ दूध ही नहीं देतीं, बल्कि खेती, गोबर, गोमूत्र और पर्यावरण के लिए भी बेहद उपयोगी हैं। आइए जानते हैं भारत की कुछ प्रमुख देसी गायों की नस्लें और उनकी खासियतें

1. गिर गाय – गुजरात (जूनागढ़, अमरेली, भावनगर)
गुजरात के गिर जंगलों के आसपास पाई जाने वाली यह नस्ल पूरे देश में मशहूर है।
खासियतें: 12–20 लीटर तक A2 दूध, जो पोषक और आसानी से पचने वाला होता है। गर्मी और बीमारियों को सहन करने की क्षमता। मजबूत शरीर, रंग हल्का लाल या सफेद।
2. साहीवाल गाय – पंजाब और हरियाणा (फरीदकोट, मोगा, रोहतक)
पहले यह नस्ल पाकिस्तान में ज्यादा पाई जाती थी, लेकिन अब भारत में भी खूब पालन हो रहा है।
खासियतें: रोज़ 10–15 लीटर दूध। कम चारे में भी अच्छा उत्पादन। शांत और सरल स्वभाव।

3. थारपारकर – राजस्थान (जैसलमेर, बाड़मेर)
थार के रेगिस्तान जैसी कठिन परिस्थितियों में भी आसानी से जीने वाली नस्ल।
खासियतें: दूध और हल चलाने दोनों में उपयोगी। सफेद रंग और सूखा सहन करने की क्षमता।
4. ओंगोल – आंध्र प्रदेश (प्रकाशम जिला)
ताकतवर नस्ल, जिसके बैल खेती और गाड़ी खींचने में बेहतरीन माने जाते हैं।
खासियतें: भारी और मजबूत शरीर। खेती में उत्कृष्ट प्रदर्शन। ठीक-ठाक मात्रा में दूध देती है।
5. कांगायम – तमिलनाडु (इरोड, करूर)
कम संसाधनों में जीने वाली मेहनती नस्ल।
खासियतें: खेती और गाड़ी के काम में बेहतरीन। सफेद या हल्के भूरे रंग की।
6. राठी – राजस्थान (बीकानेर, नागौर)
राजस्थान के शुष्क इलाकों की पहचान।
खासियतें: रोज़ 6–10 लीटर दूध। गर्मी में भी मजबूत। छोटे किसानों के लिए आदर्श नस्ल।

7. देवनी – महाराष्ट्र और तेलंगाना (लातूर, निजामाबाद)
दूध और खेती—दोनों में उपयोगी नस्ल।
खासियतें: 6–8 लीटर दूध। बेहतरीन गोबर और गोमूत्र। मध्यम आकार, काम करने में सक्षम।
8. पंढरपुरी – महाराष्ट्र (सोलापुर, उस्मानाबाद)
अपने लंबे कानों और अच्छे दूध उत्पादन के लिए मशहूर।
खासियतें: 8–10 लीटर दूध। गर्मी सहन करने में सक्षम। सरल और शांत स्वभाव।
9. खिलार – महाराष्ट्र और कर्नाटक (सांगली, बेलगाम)
मेहनती और तेज बैलों वाली नस्ल।
खासियतें: खेती में बेहद उपयोगी। दूध कम देती है, लेकिन शरीर मजबूत और सधा हुआ। देसी गायों का महत्व
1. कृषि में साथी
देसी गाय का गोबर और गोमूत्र खेतों के लिए वरदान है। इससे बनने वाली जैविक खाद और वर्मी कम्पोस्ट मिट्टी को उर्वर और रसायन-मुक्त बनाते हैं। गोमूत्र से प्राकृतिक कीटनाशक तैयार किया जा सकता है, जो फसलों को सुरक्षित रखता है।
2. आय के कई स्रोत
देसी गाय सिर्फ दूध से ही नहीं, बल्कि दही, घी, पनीर, मक्खन, जैविक खाद, गोमूत्र आधारित उत्पाद और धार्मिक आयोजनों में इस्तेमाल होने वाली सामग्री से भी किसान को अच्छी आय देती है।
3. स्वास्थ्य और आयुर्वेद में महत्व
गाय का घी – आंखों की रोशनी, पाचन और मानसिक शांति के लिए लाभकारी। गोमूत्र – डिटॉक्स और कई रोगों के उपचार में सहायक। पंचगव्य – रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मददगार।
4. विदेशी और देसी नस्ल में अंतर
विदेशी नस्लें ज्यादा दूध देती हैं, लेकिन उनका दूध A1 प्रोटीन वाला होता है, जो स्वास्थ्य के लिए हमेशा उपयुक्त नहीं माना जाता। विदेशी गायों को महंगा चारा, ठंडा मौसम और ज्यादा देखभाल चाहिए, जबकि देसी गाय स्थानीय जलवायु और साधारण आहार में भी स्वस्थ रहती हैं।
निष्कर्ष
भारत की देसी गायें सिर्फ दूध नहीं देतीं, ये हमारी कृषि, संस्कृति और स्वास्थ्य की रीढ़ हैं। हर जिले की अपनी अलग नस्ल है, जो वहां की मिट्टी, मौसम और जीवनशैली से जुड़ी है। अब समय आ गया है कि हम इन नस्लों को फिर से अपनाएं, बचाएं और बढ़ाएं। इससे ना सिर्फ किसानों को फायदा होगा, बल्कि देश भी आत्मनिर्भर बनेगा। ऐसी अमेजिंग जानकारी के लिए जुड़े रहे Hello Kisaan के साथ और आपको ये जानकारी कैसी लगी हमे कमेंट कर के जरूर बताइये ।।जय हिन्द जय भारत।।
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