मेरठ के बटेर पालन के उस्ताद


जब बात पशुपालन की आती है तो हमारे मन में अक्सर गाय, बकरी या मुर्गी पालन की तस्वीर उभरती है। लेकिन मेरठ के अब्बास रिज़वी ने इस परंपरागत सोच से हटकर बटेर पालन और बटेर हैचरी को अपना व्यवसाय बनाकर एक नई मिसाल पेश की है। चार साल से इस क्षेत्र में काम करते हुए अब्बास भाई न सिर्फ खुद सफल हुए हैं,बल्कि कई किसानों के लिए प्रेरणा भी बन चुके हैं।

छोटा एरिया, बड़ा सपना
अब्बास रिज़वी ने मात्र 1200 से 1300 स्क्वायर फीट के क्षेत्र में बटेर पालन और हैचरी शुरू की। इस जगह को उन्होंने चार बराबर हिस्सों में बाँटा 300-300 स्क्वायर फीट के चार शेड बनाए और और छत पर इन्होने टिन लगयी हुई हैं। एक शेड में वे करीब 1000 से 1100 बटेर पालते हैं।
35 दिन में तैयार बटेर
अगर आज कोई व्यक्ति बटेर पालन शुरू करता है तो लगभग 30 से 35 दिन में बटेर पूरी तरह से तैयार हो जाती हैं। इस काम का खास सीजन सितंबर से लेकर मार्च-अप्रैल तक रहता है जब बाजार में डिमांड भी ज्यादा रहती है। बटेर के अंडे लगभग 45 से 46 दिन में आने लगते हैं जिससे अंडों से लेकर मांस दोनों का उत्पादन किया जा सकता है।

खाना और देखभाल की प्रक्रिया
बटेरों को दिन में दो बार खाना दिया जाता है एक बार सुबह और एक बार शाम। पानी के लिए उन्होंने ऑटोमैटिक ड्रिंकर सिस्टम लगाया हुआ है। पहले 15 दिन मैन्युअल तरीके से पानी दिया जाता है उसके बाद बटेरें खुद-ब-खुद ऑटोमैटिक ड्रिंकर से पानी पी लेती हैं।
हैचरी प्रक्रिया – हर कदम वैज्ञानिक
हैचरी की बात करें तो सबसे पहले बटेरों से अंडे एक फ्रेम में इकट्ठे किए जाते हैं और 4 दिन तक स्टॉक किया जाता है। इसके बाद ये अंडे मशीन में 15 दिन तक इनक्यूबेशन में रहते हैं जहाँ तापमान 37 डिग्री सेल्सियस पर रखा जाता है। फिर ये अंडे हैचर में 3 दिन के लिए ट्रांसफर किए जाते हैं और इसके बाद उनमें से चूजे निकल आते हैं।
एक हैचरी के अंडे की कीमत करीब 10 रुपए है और एक बटेर को डे 1 से लेकर डे 35 तक पालने का खर्च लगभग 30 से 32 हजार रुपए आता है (प्रति शेड)। चूजों की पैकिंग एक बॉक्स में 200 की जाती है।

सफाई और देखरेख का महत्व
जहाँ बटेर रखे जाते हैं वहाँ पर उन्होंने मुंजी का छिलका या लकड़ी का बुरादा डाला हुआ है ताकि सफाई में आसानी हो और बटेरों को आरामदायक वातावरण मिले। हर हफ्ते सफाई की जाती है ताकि बीमारी न फैले।
ब्रीड का चयन – सफलता की कुंजी
बटेर का आदर्श वजन 180 ग्राम होना चाहिए लेकिन यह पूरी तरह ब्रीड पर निर्भर करता है। कई बार कुछ नस्लें 35 दिन में भी यह वजन नहीं पकड़ पातीं। इसलिए अच्छे क्वालिटी की ब्रीड चुनना इस व्यवसाय का अहम हिस्सा है।
सीखने वालों के लिए सलाह
अब्बास रिज़वी कहते हैं अगर कोई किसान भाई बटेर पालन करना चाहता है तो सबसे पहले हैचरी और ब्रीड की जानकारी जरूर ले। छोटे स्तर पर शुरू करें फिर अनुभव के साथ धीरे-धीरे बढ़ाएं।
निष्कर्ष
अब्बास रिज़वी जैसे नवाचार करने वाले किसान न सिर्फ अपनी आमदनी बढ़ा रहे हैं बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी सशक्त बना रहे हैं। बटेर पालन जैसे कम जगह और सीमित खर्च वाले व्यवसाय में यदि वैज्ञानिक तरीके अपनाए जाएं तो यह एक शानदार स्वरोजगार का विकल्प बन सकता है।
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