गोबर गैस से CBG प्लांट तक – गोबर की पूरी वैल्यू चेन

25 Sep 2025 | NA
गोबर गैस से CBG प्लांट तक – गोबर की पूरी वैल्यू चेन

भारत एक कृषि प्रधान देश है जहाँ पशुपालन गाँव की अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा है। हर किसान के घर में एक या दो गाय-भैंस होती हैं, और उनसे रोज़ाना गोबर निकलता है। पहले यही गोबर खेतों में खाद डालने या उपले बनाने के काम आता था। लेकिन अब समय बदल रहा है। जिस गोबर को लोग बेकार समझते थे, वही अब किसानों की आमदनी बढ़ाने और देश को साफ ऊर्जा देने का ज़रिया बन गया है। गोबर से अब न सिर्फ बायोगैस बन रही है, बल्कि उसे प्रोसेस करके CBG यानी Compressed Biogas तैयार की जा रही है, जो पेट्रोल-डीज़ल का सस्ता और साफ विकल्प बन चुकी है।

From Gobar Gas to CBG Plant


बायोगैस कैसे बनती है?

गोबर से बायोगैस बनने की प्रक्रिया काफी आसान है। सबसे पहले गोबर को पानी में मिलाकर एक गाढ़ा घोल (जिसे स्लरी कहते हैं) बनाया जाता है। इस स्लरी को एक बंद टैंक में डाला जाता है, जिसे डाइजेस्टर कहा जाता है। इस टैंक में ऑक्सीजन नहीं होती, और वहाँ ऐसे विशेष बैक्टीरिया होते हैं जो गोबर को सड़ाते हैं। इस प्रक्रिया में मीथेन गैस बनती है, जिसे हम बायोगैस कहते हैं। यह गैस खाना पकाने, बिजली बनाने, और छोटे जनरेटर चलाने के काम आती है। इसके साथ जो स्लरी बचती है, वह एक बेहतरीन जैविक खाद होती है जिसे खेतों में इस्तेमाल किया जा सकता है।

बायोगैस से आगे – CBG क्या है? 

अब बात करते हैं CBG की। बायोगैस से आगे बढ़कर जब इस गैस को प्रोसेस किया जाता है यानी इसमें से कार्बन डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन सल्फाइड और नमी जैसे तत्व हटाए जाते हैं तो इसमें लगभग शुद्ध मीथेन बचती है। इस शुद्ध मीथेन को दबाव में संपीड़ित किया जाता है, जिससे बनती है CBG (Compressed Biogas)। CBG बिल्कुल CNG जैसी होती है और गाड़ियों में ईंधन के रूप में इस्तेमाल की जा सकती है। यह न केवल सस्ती होती है, बल्कि पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित होती है क्योंकि इसमें प्रदूषण बहुत कम होता है।

इस पूरी प्रक्रिया को हम “गोबर की वैल्यू चेन” कह सकते हैं। इसमें पहला कदम होता है गोबर इकट्ठा करना। किसान अपने पशुओं का ताज़ा गोबर इकट्ठा करते हैं, जिसे स्थानीय बायोगैस प्लांट या CBG यूनिट में भेजा जाता है। वहाँ इसे प्रोसेस करके बायोगैस बनाई जाती है। फिर उसे शुद्ध करके CBG में बदला जाता है और बाद में सिलेंडर या पाइपलाइन के जरिए ग्राहकों तक पहुँचाया जाता है – जैसे वाहन चालक, इंडस्ट्रियल यूनिट्स या गैस पंप।

किसानों को क्या फायदा

अब सवाल ये उठता है कि इससे किसानों को क्या फायदा होता है? असल में, इससे किसानों की सीधी आमदनी बढ़ती है। अगर किसान सिर्फ गोबर बेचता है, तो उसे प्रति किलो 2 से 4 रुपये तक मिल सकते हैं। अगर किसी किसान के पास 4–5 पशु हैं, तो वह रोज़ 30–40 किलो गोबर बेचकर महीने में ₹3000 तक कमा सकता है। इसके अलावा अगर कोई किसान अपने घर में छोटा बायोगैस प्लांट लगवा लेता है, तो वह LPG सिलेंडर की लागत भी बचा सकता है। साथ ही, खेत के लिए मुफ्त जैविक खाद भी मिलती है, जिससे मिट्टी की सेहत सुधरती है और रासायनिक खादों पर खर्च भी घटता है। बड़ी CBG यूनिट्स लगने से गाँव में रोज़गार के अवसर भी बढ़ते हैं। गोबर इकट्ठा करने से लेकर गैस शुद्ध करने, सिलेंडर भरने और पंप पर सप्लाई तक हर स्टेज पर स्थानीय युवाओं को काम मिल सकता है। कई जगहों पर यह काम FPOs (Farmer Producer Organizations) और स्वयं सहायता समूहों के ज़रिए भी किया जा रहा है। भारत सरकार ने भी इस दिशा में कदम उठाए हैं। 2018 में शुरू की गई SATAT योजना (Sustainable Alternative Towards Affordable Transportation) के तहत सरकार ने CBG प्लांट्स को बढ़ावा देना शुरू किया। इस योजना में इंडियन ऑयल, HPCL और BPCL जैसी कंपनियाँ CBG खरीदने की गारंटी देती हैं। इससे किसानों और उद्यमियों को स्थायी बाजार भी मिल रहा है। कई राज्य सरकारें, जैसे छत्तीसगढ़, "गोधन न्याय योजना" चला रही हैं, जिसमें सरकार किसानों से गोबर खरीदती है और उससे बायोगैस व खाद बनवाती है।

Complete Value Chain of Cow Dung


हालांकि, कुछ चुनौतियाँ भी हैं। कई गाँवों में आज भी लोगों को यह जानकारी नहीं है कि गोबर से गैस और पैसे दोनों कमाए जा सकते हैं। साथ ही, बायोगैस या CBG यूनिट लगाना शुरू में थोड़ा महंगा होता है। गोबर इकट्ठा करने की व्यवस्था भी हर जगह नहीं है। लेकिन इन समस्याओं का समाधान संभव है जैसे सरकार की तरफ से सब्सिडी देना, कंपनियों और किसानों की साझेदारी कराना, और गाँव-गाँव में मॉडल यूनिट्स बनाकर जागरूकता फैलाना।

अगर सही ढंग से इसे बढ़ावा दिया जाए, तो “गोबर से CBG” की यह वैल्यू चेन गाँवों में आमदनी, स्वच्छता, ऊर्जा और खेती – चारों में सुधार ला सकती है। देश की ऊर्जा ज़रूरतों का बड़ा हिस्सा गाँवों से पूरा हो सकता है, वो भी पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए बिना। आने वाले समय में यही मॉडल भारत को “ऊर्जा में आत्मनिर्भर” बना सकता है।

निष्कर्ष 

गोबर अब सिर्फ खेतों की खाद नहीं रहा, बल्कि ग्रामीण भारत का नया आर्थिक ईंधन बन चुका है। इससे किसानों की आमदनी बढ़ेगी, गाँवों को रोज़गार मिलेगा, और देश को मिलेगी सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा। इसलिए अब समय आ गया है कि हम गोबर को सिर्फ गंदगी न समझें, बल्कि उसे “हरित सोना” मानें जो भविष्य को रोशन कर सकता है। ऐसी अमेजिंग जानकारी के लिए जुड़े रहे Hello Kisaan के साथ और आपको ये जानकारी कैसी लगी हमे कमेंट कर के जरूर बताइये ।। जय हिन्द जय भारत ।।

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