आज के समय में जब बिजली, कोल्ड स्टोरेज और फ्रिज जैसी सुविधाएँ हर जगह मौजूद हैं तब यह सोच कर हैरानी होती है कि पुराने ज़माने में हमारे दादा-परदादा किसान किस तरह फसल, फल और सब्जियाँ लंबे समय तक सुरक्षित रखते थे। उनके पास न तो बिजली थी न आधुनिक मशीनें, फिर भी वे अनाज, आलू-प्याज, आम, अमरूद जैसी चीज़ों को महीनों और कभी-कभी सालों तक खराब होने से बचा लेते थे। आइए जानते हैं वे कौन-कौन से देसी तरीके अपनाते थे।

1. ठंडी और हवादार जगहों का इस्तेमाल

पुराने समय में किसान मिट्टी से बने घरों में रहते थे जिनकी दीवारें मोटी और छतें ऊँची होती थीं। ये घर गर्मी में ठंडे और सर्दी में गरम रहते थे। किसान सब्जियाँ और फल इन घरों के अंधेरे व ठंडे हिस्सों में रखते थे जिससे वे जल्दी खराब नहीं होते थे।

2. मिट्टी के बर्तन और घड़े का कमाल

कई सब्जियों को किसान मिट्टी के घड़ों या हांड़ियों में रखकर रेत या राख में दबा देते थे। जैसे - गाजर, शलगम और अरबी को साफ करके रेत में दबा देते थे। नींबू को नमक लगाकर घड़े में भरकर रख लेते थे जो महीनों तक खराब नहीं होता था।

3. छाया में सुखाना और सुखाकर रखना

सूखाना एक बहुत पुराना और कारगर तरीका था। किसान बहुत सी सब्जियाँ और फल धूप या छाया में सुखाकर रखते थे। जैसे - आंवला, बैंगन, भिंडी, लौकी को छोटे टुकड़ों में काटकर सुखा लेते थे। आम को सुखाकर आमचूर बना लेते थे। प्याज और लहसुन को अच्छी तरह सुखाकर छांव में टांग देते थे जिससे यह महीनों तक खराब नहीं होते थे।

4. सरसों का तेल और नमक का इस्तेमाल

सरसों का तेल और नमक दोनों ही preservatives की तरह काम करते हैं। किसान अचार बनाने में इनका खूब इस्तेमाल करते थे। नींबू, गाजर, अमिया, हरी मिर्च आदि को अचार बनाकर सालों तक संभाल कर रखते थे। तेल सब्जी को हवा से बचाता था और नमक खराब होने से रोकता था।

5. बांस की टोकरियाँ 

किसान फल-सब्जियाँ रखने के लिए बांस की बनी टोकरियों का इस्तेमाल करते थे। इनका निर्माण ऐसा होता था कि हवा आती-जाती रहे और नमी न जमे। इससे आलू-प्याज लंबे समय तक ताज़े बने रहते थे।

6. कुएं और बावड़ी का ठंडा पानी

जहाँ बिजली नहीं थी वहाँ किसान कुएं, तालाब या बावड़ी के ठंडे पानी का उपयोग करते थे। फलों को कपड़े में बांधकर पानी में लटकाया जाता था। इससे फल ताजे बने रहते और जल्दी खराब नहीं होते थे।

7. पेड़ों पर ही पकने देना

कुछ फल जैसे आम, अमरूद या जामुन को किसान पेड़ पर ही देर तक पकने देते थे और ज़रूरत अनुसार तोड़ते थे। इससे भंडारण की जरूरत कम पड़ती थी।

8. घर का भंडारण कक्ष 

कई घरों में एक खास कमरा होता था जिसे कोठी या भंडार घर कहा जाता था। यह कमरा पूरी तरह से ठंडा, अंधेरा और साफ-सुथरा होता था। इसमें अनाज, फल, सूखी सब्जियाँ और अचार सुरक्षित रखे जाते थे।

निष्कर्ष

बिजली और आधुनिक तकनीक के बिना भी पुराने समय के किसान बहुत समझदारी से काम लेते थे। वे प्राकृतिक साधनों का बुद्धिमानी से उपयोग करते थे और अनावश्यक बर्बादी से बचते थे। उनके देसी तरीके आज भी गाँवों में अपनाए जाते हैं और आज के समय में भी हमें इन पारंपरिक ज्ञान से बहुत कुछ सीखने को मिल सकता है। अगर हम इन देसी तरीकों को थोड़ा आधुनिक तरीके से अपनाएँ, तो न केवल खर्चा बचेगा, बल्कि पर्यावरण को भी कम नुकसान पहुँचेगा। यही तो है पुरानी पीढ़ी की सादगी और समझदारी का असली राज।