पिछेती गेहूं की किस्में और उनकी सफल खेती

19 Jan 2025 | NA
पिछेती गेहूं की किस्में और उनकी सफल खेती

गेहूं भारत की प्रमुख खाद्यान्न फसलों में से एक है। सामान्यतः इसकी बुवाई समय पर की जाती है, लेकिन कई बार किसानों को विभिन्न कारणों से बुवाई में देरी हो जाती है। ऐसे में पीछेती गेहूं की किस्में एक उत्कृष्ट विकल्प साबित होती हैं, जो कम समय में पकने वाली और अच्छी पैदावार देने में सक्षम हैं। इस लेख में, हम पिछेती गेहूं की किस्मों, उनकी विशेषताओं, खेती के तरीके, उपयुक्त जलवायु और उनसे होने वाले लाभों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

पिछेती गेहूं की आवश्यकता क्यों होती है?

किसानों को कई बार गेहूं की बुवाई में देरी करनी पड़ती है, जिसके कारणों में खरीफ फसलों की देरी से कटाई होना, सिंचाई व्यवस्था की समस्या, खराब मौसम या बेमौसम बारिश, खेत देर से तैयार होना आदि शामिल है। देर से बुवाई के लिए ऐसी किस्मों की आवश्यकता होती है, जो कम समय में परिपक्व हो जाएं, ठंड सहन कर सकें और अच्छी पैदावार दें। इस प्रकार की किस्मों में-

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एचडी 3059 (पुसा तेजस): यह 120-125 दिनों में परिपक्व हो जाती है। उत्तर भारत की यह किस्म समय की कमी में भी उच्च उपज देती है। यह पीला रतुआ और भूरे रतुआ के प्रति प्रतिरोधक क्षमता रखती है। और 50-55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन देती है। 

डब्ल्यूएच 1105: 115-120 दिनों में पकने वाली यह वैरायटी हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुख्य रूप से की जा रही है। ये किस्म सूखा सहन करने और रतुआ प्रतिरोधी किस्म है, जो 45-50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन करती है।

एचडी 2932: यह किस्म कम ठंडे क्षेत्रों के मध्य और पूर्वी भारत में अच्छा उत्पादन देती है तथा 115 से 120 दिनों में तैयार हो जाती है और 40-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक अच्छा उत्पादन करती है।

कर्णाल आनंद (डब्ल्यूएच 1021): उत्तर-पश्चिमी भारत के सूखा और जलभराव दोनों को सहन कर सकने वाली यह किस्म 120-125 दिनों में तैयार हो जाती है। ये प्रजाति भी 50-55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन देती है।

एचआई 1563 (पुसा पर्ल): प्रति हेक्टेयर में 40 से 45 क्विंटल पैदावार देने वाली यह किस्म मध्य और दक्षिण भारत में सफल रूप से की जाती है। इस वैरायटी की खास बात यह है कि यह सुखे और उच्च तापमान वाले क्षेत्रों में भी अच्छी उत्पादकता के साथ होती है। 

यू.पी. 262: मात्र 110 से 115 दिन में तैयार होने वाली यह वैरायटी कम उर्वरक मिट्टी में भी बेहतर उत्पादन देती है। यह उत्तर प्रदेश और बिहार के क्षेत्र में उगने वाली श्रेयस्कर किस्म में है, जो प्रति हेक्टेयर में 40 से 45 कुंतल तक गेहूं उत्पादित कर देती है।

पिछेती गेहूं की खेती के तरीके:

सर्वप्रथम खेत को अच्छी तरह जोतकर मिट्टी को भुरभुरा बनाते हैं। जब देरी से बुवाई हो रही हो तो मिट्टी की नमी बनाए रखना अति आवश्यक है। जैविक खाद और उर्वरक का सही अनुपात में उपयोग करें। दरअसल पीछेती गेहूं की बुवाई का उचित समय दिसंबर के पहले और दूसरे सप्ताह तक होता है। लेजर लैंड लेवलर का उपयोग करके समान गहराई पर बुवाई करें। और 100-120 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर के लिए पर्याप्त होता है। अच्छी फसल के लिए "ड्रिल विधि"या "जीरो टिलेज"विधि का उपयोग करें, जो देरी से बुवाई के लिए उपयुक्त है।

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उर्वरक एवं सिंचाई प्रबंधन:

प्रति हेक्टेयर में 120:60:40 किलोग्राम (NPK) का उपयोग करें। बुवाई के समय नाइट्रोजन का 50% और फॉस्फोरस व पोटाश का पूरा हिस्सा डालें, बाकी का हिस्सा पहली सिंचाई के बाद डालें। पहली सिंचाई बुवाई के 20-25 दिन बाद करें। इसके बाद फसल की स्थिति और मिट्टी के अनुसार हर 20-25 दिन पर सिंचाई होनी चाहिए। और ध्यान रहें परिपक्वता के समय फसल में पानी न लगने दें। इसी के साथ फसल को समय पर काटना आवश्यक है। कटाई के बाद उचित भंडारण करें ताकि दानों में नमी न बनी रहे।

रोग और कीट नियंत्रण:

रतुआ रोग से बचाव के लिए ट्राइकोडर्मा या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का छिड़काव करें। साथ में गंधी बग या माहू जैसे कीटों से बचाव के लिए नीम आधारित कीटनाशक का उपयोग करें।

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पिछेती गेहूं की खेती के फायदे:

पिछेती किस्में कम समय में अधिक उपज देती हैं। ये किस्में अत्यधिक ठंड और सूखे को सहन कर सकती हैं। अधिकांश पिछेती किस्में रोग प्रतिरोधी होती हैं, अतः कीट रोगों से कम खतरा रहता है। और इसी के साथ इन किस्मों में कम सिंचाई और खाद की आवश्यकता होती है। बाजार में उच्च गुणवत्ता वाले गेहूं की अच्छी मांग रहती है, जिससे किसानों को बेहतर मूल्य प्राप्त होता है। पिछेती गेहूं की किस्में किसानों के लिए एक वरदान हैं, खासकर उन परिस्थितियों में जब मौसम या अन्य कारणों से बुवाई में देरी होती है। ये किस्में कम समय में पकने के साथ-साथ उच्च उत्पादन क्षमता प्रदान करती हैं। यदि किसान सही तकनीक, समय और उर्वरक प्रबंधन के साथ इन किस्मों की खेती करते हैं, तो उन्हें बेहतर परिणाम प्राप्त होंगे। यह न केवल उनकी आय को बढ़ाएगा, बल्कि भारत की खाद्य सुरक्षा को भी मजबूत करेगा। दोस्तों कैसी लगी आपको यह जानकारी कमेंट कर अवश्य बताएं तथा ऐसी जानकारी के लिए जुड़े रहे Hello Kisaan के साथ। धन्यवाद॥ जय हिंद,जय किसान॥


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