मल्टी क्रॉपिंग तकनीक से सीखिए खेती का नया तरीका


बागपत रोड स्थित बलैनी गांव के प्रगतिशील किसान जयकरन ने यह साबित कर दिया है कि खेती केवल मेहनत का नहीं, बल्कि समझदारी और प्लानिंग का भी खेल है। उनके पास कुल 50 बीघा जमीन है, लेकिन उन्होंने खेती की शुरुआत मात्र 2 बीघा खेत से की – और इसी 2 बीघा को उन्होंने ऐसा मॉडल बना दिया है जिसे देखने आज दूर-दूर से किसान आते हैं।

खेत की तैयारी: वैज्ञानिक सोच और देसी तरीका
जयकरन ने सबसे पहले मिट्टी की गहरी जोताई की और उसमें भरपूर मात्रा में जैविक खाद मिलाई। खेत को इस तरह डिज़ाइन किया कि बेलवाली फसलें ऊपर चढ़ सकें – हर 8 फीट पर बाँस के खंभे गाड़े गए और उन्हें ऊपर तारों से जोड़ा गया। इससे खेत की ऊंचाई का भी इस्तेमाल हुआ और फसलें ज्यादा सुरक्षित रहीं।
खेत में 8 लंबे बेड तैयार किए गए जिनमें दिसंबर में करेला लगाया गया। मार्च से इन बेलों ने फल देना शुरू कर दिया और अब यह लगातार उत्पादन कर रही है।
मल्टी क्रॉपिंग का जीवंत उदाहरण
जयकरन ने अपने 2 बीघा खेत को बहुफसली खेती का आदर्श उदाहरण बना दिया है। उन्होंने एक ही खेत में कई फसलें लगाईं:
- खीरा – दिसंबर में बुवाई, मार्च से हार्वेस्टिंग
- तोरी – बेलें अब फल देने लगीं, नवंबर-दिसंबर तक उपज जारी
- करेला – मुख्य फसल, अच्छी उपज
- चीनी पत्ता गोभी और सलाद – बाजार में खास पसंद
- मिर्च और टमाटर – खेत के किनारों पर, टमाटर के लिए खास तापमान नियंत्रण (24°C)

सिंचाई और देखभाल: कम पानी, ज्यादा समझ
सिंचाई के लिए खेत में दो मुख्य नालियां बनाई गई हैं, जिनसे हर तीसरे दिन पानी छोड़ा जाता है। इससे पानी की बचत होती है और फसलें भी स्वस्थ रहती हैं। कीट नियंत्रण के लिए यह जैविक और रासायनिक विधियों का संयोजन करते हैं।
खास बात यह है कि जयकरन खेत में खुद मेहनत करते हैं, जिससे उन्हें हर फसल की स्थिति और ज़रूरत की पूरी जानकारी रहती है।
लागत और मुनाफा: हर खर्च की पूरी प्लानिंग
इस 2 बीघा खेत में लगभग ₹70,000 की लागत आई, जिसमें शामिल हैं:
- खीरे के बीज – ₹7,000
- तार और ढांचा – ₹8,000
- बाँस – ₹240
जैविक खाद, कीटनाशक, मजदूरी आदि
बीजों और फसलों का चयन इस तरह किया गया कि एक फसल के हटते ही दूसरी फसल तैयार हो जाए – यानी खेत कभी खाली न रहे। यही उनकी मुनाफे की कुंजी है।

फसल चक्र में बदलाव: मिट्टी को दें नई जान
यह हर दो साल में फसल चक्र बदलते हैं। यानी अगर दो साल करेला उगाया गया, तो अगले साल लौकी या नेनुआ लगाई जाती है। इससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है और कीटों का दबाव भी कम होता है।
निष्कर्ष: खेती में बदलाव की मिसाल
जयकरन का यह 2 बीघा खेत सिर्फ उपज नहीं दे रहा, यह सोच बदल रहा है। उन्होंने यह दिखाया कि कम जमीन और सीमित संसाधनों में भी यदि वैज्ञानिक नजरिया हो, तो खेती एक लाभकारी व्यवसाय बन सकती है।
आज बलैनी गांव के जयकरन को लोग 'किसान वैज्ञानिक' कहने लगे हैं। उन्होंने बता दिया कि जमीन वही रहती है, बदलाव नजरिए में होता है।
हर किसान भाई अगर जयकरन की तरह थोड़ी सी प्लानिंग और मेहनत करे, तो खेती घाटे का नहीं, मुनाफे का सौदा बन सकती है।
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